स्टार्टअप संस्कृति भारत की विकास गाथा लिख रही है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मौजूदा चुनावी माहौल में देश में इस प्रस्थापना को काफी हवा दी जा रही है कि केंद्र सरकार निजीकरण की मुहिम के तहत उन बहुत से सार्वजनिक उपक्रमों को बेच रही है, जो नौजवानों को रोजगार देते रहे हैं। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि अपने वादे के अनुरूप दो करोड़ रोजगार पैदा करने से उलट मोदी सरकार ने रहे-बचे रोजगार खत्म कर दिए हैं। निश्चित ही भारत जैसे एक आबादी बहुल मुल्क में रोजगार बड़ा मुद्दा होता है।

अतीत की सरकारों को भी इसके लिए काफी भला-बुरा कहा जाता रहा है। सवाल है कि क्या रोजगार सिर्फ सरकारी नौकरियों के रूप में और सतत घाटे में चलते सार्वजनिक उपक्रमों को भारी-भरकम पूंजी देकर बचाए रखते हुए ही पैदा किए जा सकते हैं? क्या सरकार का काम एक कारोबारी की तरह अपनी बैलेंस शीट साधने और मालिक-कर्मचारी की भूमिका को कायम रखना है? इन सवालों का एक ठोस जवाब देश में बढ़ते स्टार्टअप की संख्या और विभिन्न कामकाज में उनके बढ़ते योगदान से मिला है।

भारत के उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 10 जनवरी, 2022 तक देश में 61,400 से अधिक स्टार्टअप कंपनियों को मान्यता दी जा चुकी है। तथ्य बताते हैं कि वर्ष 2016-17 के दौरान सरकार ने सिर्फ 733 स्टार्टअप मंजूर किए थे, जबकि वर्ष 2021 में 14 हजार नए स्टार्टअप को मान्यता दी गई। सिर्फ यही नहीं, देश में इस दौरान यूनिकार्न की श्रेणी में आने वाले स्टार्टअप की संख्या भी तेजी से बढ़ी है।

वर्ष 2021 में 44 स्टार्टअप कंपनियां यूनिकार्न की श्रेणी में आई हैं, जिसके बाद भारत में यूनिकार्न की संख्या 83 हो गई है। संस्था पीडब्ल्यूसी इंडिया की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में करीब 50 स्टार्टअप तो 2022 में ही यूनिकार्न बन सकते हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में एक अरब डालर से अधिक मूल्यांकन वाले स्टार्टअप की कुल संख्या 100 से अधिक हो सकती है। यूनिकार्न उस कंपनी को कहते हैं, जिसका बाजार मूल्य एक अरब डालर यानी करीब 7470 करोड़ रुपये हो।

भारतीय स्टार्टअप जगत में जगे इस उत्साह का नतीजा यह है कि सरकार समेत कई बड़े उद्योगपतियों ने इनमें बड़ी पूंजी का निवेश शुरू कर दिया है। तथ्य है कि वर्ष 2021 में रिलायंस ने स्टार्टअप कंपनियों में सात हजार करोड़ रुपये का निवेश किया। टाटा और वेदांता समूह ने भी कई नए स्टार्टअप्स में पैसा लगाया है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के मुताबिक खुद सरकार स्टार्टअप कंपनियों में एक हजार करोड़ रुपये का निवेश कर रही है।

सरकार और देसी-विदेशी निवेशकों के बल पर भारतीय स्टार्टअप कंपनियों ने वर्ष 2021 में 36 अरब डालर का फंड जुटाया था। इसी आधार पर सरकार ने वर्ष 2022 में 75 नए यूनिकार्न बनने की उम्मीद जताई है। इसकी पुष्टि आर्थिक सर्वेक्षण से भी हो रही है। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत के 555 जिलों में कम से कम एक स्टार्टअप की शुरुआत हुई है।

दावे कुछ और भी हैं। जैसे कहा जा रहा है कि स्टार्टअप कंपनियों की मौजूदगी बढ़ने से हमारा देश दुनिया में सबसे युवा स्टार्टअप मुल्क बन गया है। आंकड़ों के मुताबिक देश में 72-75 फीसद स्टार्टअप कंपनियों के संस्थापक 35 साल से कम उम्र के हैं। यही नहीं, रोजगार तलाश करने वाले प्रतिभाशाली युवा बड़ी कंपनियों के बजाय इनमें काम कराना ज्यादा पसंद कर रहे हैं।

खुद सरकार को स्टार्टअप कंपनियों में देश का बेहतर भविष्य दिखाई दे रहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय भी उन्हें प्रोत्साहित करने की योजना पर काम कर रहा है। आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और बंगाल जैसे कई राज्यों की सरकारों ने स्टार्टअप कंपनियों को वित्तीय मदद देने और जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। इस प्रोत्साहन के पीछे यह विचार काम कर रहा है कि इससे बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन होगा। साथ ही देश में कुछ नया सोचने, करने और देश के विकास में सहयोग देने का माहौल बनेगा।

नौकर नहीं, मालिक बनें : हमारे देश में एक दौर ऐसा भी था जब सरकारी नौकरी को सबसे सुरक्षित माना जाता था। इसके बाद प्राइवेट सेक्टर में ऊंची नौकरी को प्रतिष्ठा की नजर से देखने का दौर आया, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों की आमद के साथ थोड़ा फीका पड़ गया, लेकिन जैसी सनसनी पिछले एक दशक के भीतर स्टार्टअप कंपनियों ने अपनी कामयाबी से फैलाई है, उससे एक नई उम्मीद देश में जगी है।

अब ज्यादातर युवा अपना स्टार्टअप शुरू करने को एक रुतबे की बात मानते हैं। इसी सोच का नतीजा है कि देश में पिछले सात वर्षो में कई बेहतरीन स्टार्टअप्स शुरू हुए हैं जिन्होंने बाजार का रुख ही बदलकर रख दिया है। टैक्सी बुकिंग, भोजन का आर्डर, आनलाइन शापिंग, फ्लाइट-होटल आदि की बुकिंग से लेकर कई ऐसे काम हैं, जिनमें पहले कई झंझट थे, पर स्टार्टअप कंपनियों ने ई-कामर्स का सहारा लेकर ये सारे काम इतने आसान कर दिए हैं कि अब वे चुटकी बजाते हो जाते हैं।

यही नहीं, अब कई बड़ी स्थापित पुरानी कंपनियों में भी स्टार्टअप कंपनियों को लेकर दिलचस्पी जग रही है। वे इसमें या तो निवेश कर रही हैं या फिर अपना कामकाज इन्हें सौंप रही हैं। जैसे 2015 में दिग्गज आइटी कंपनी इन्फोसिस ने घोषणा की थी कि वह करीब ढाई करोड़ डालर का निवेश भारतीय स्टार्टअप कंपनियों में करेगी। टाटा की सहयोगी इलेक्ट्रानिक कंपनी क्रोमा अपने कामकाज का कुछ हिस्सा स्टार्टअप कंपनियों को सौंप चुकी है।

ये उदाहरण साबित करते हैं कि देश में स्टार्टअप्स में निवेश के लिए कितना उत्साही माहौल है। इस उत्साह का कारण यह है कि यहां उपभोग का एक बड़ा बाजार उपलब्ध है। ऐसे ग्राहकों की भारी संख्या मौजूद है, जो इंटरनेट से जुड़कर खरीद-बिक्री का दायरा बढ़ा रहा है। बड़े शहरों में ही नहीं, गांवों-कस्बों में भी तकनीक के सहारे व्यवसायी अपना सामान बेचने में सफल हो रहे हैं। ग्राहकों को आनलाइन शापिंग के जरिये वह सुविधा मिल रही है कि वे देश के किसी भी कोने में बैठकर अपनी इच्छानुसार कोई सामान खरीद सकते हैं।

क्यों सफल हुए स्टार्टअप : स्टार्टअप की सफलता का एक मुख्य आधार मोबाइल इंटरनेट का तेज प्रसार भी है। कुछ साल पहले फिल्मों के टिकट खरीदने के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता था। शापिंग से लेकर होटल या फ्लाइट की बुकिंग के लिए दुकान पर जाना या किसी एजेंट की मदद लेना ही एकमात्र चारा होता था। पर मोबाइल इंटरनेट के चलन में आते ही इंटरनेट पर इन सारी चीजों को मुहैया कराने वाले स्टार्टअप सामने आए, जिनसे घंटों का काम चुटकियों में करना मुमकिन हो गया।

हमारे देश में आज 45 से 50 करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़े हुए हैं। वे इंटरनेट का इस्तेमाल ईमेल भेजने से लेकर फेसबुक, वाट्सएप का प्रयोग करने के अलावा आनलाइन शापिंग में कर रहे हैं। देश में मोबाइल इंटरनेट काफी तेजी से बढ़ रहा है। इस कारण यह अनुमान लगाया जा रहा है कि स्टार्टअप के मामले में अमेरिका ने जो मुकाम 20 वर्षो में और चीन ने जिस जगह को 10 साल में हासिल किया है, भारत के युवा वह लक्ष्य अगले चार-पांच वर्षो में ही हासिल कर लेंगे। आज देश में करोड़ों लोग रोजाना मोबाइल इंटरनेट पर सक्रिय रहते हैं। इसके आधार पर कहा जा सकता है कि वे ऐसे संभावित ग्राहक हैं, जिनकी तलाश सैकड़ों स्टार्टअप को हो सकती है।

क्या होता है स्टार्टअप : प्राय: स्टार्टअप ऐसी कंपनी को कहा जाता है, जो अभी अपने शुरुआती दौर में है। यानी किसी उद्यमी ने अपने किसी विचार को मूर्त रूप देना शुरू ही किया है। एक तरह से यह प्रायोगिक तौर पर किसी व्यवसाय की शुरुआत करना हुआ। ऐसी कंपनियां छोटे स्तर पर शुरू की जाती हैं और आगे बाजार में टिके रहने के लिए इन्हें अक्सर किसी पूंजीपति से अतिरिक्त धन की जरूरत होती है।

पिछली सदी के आखिरी दशक में कई डाटकाम (इंटरनेट) कंपनियों की स्थापना के दौर में यह शब्द चलन में आया था। आइआइटी और आइआइएम जैसे संस्थानों से शिक्षा हासिल करने के बाद कई युवाओं ने फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, शादीडाटकाम जैसे स्टार्टअप न सिर्फ शुरू किए, बल्कि सफल भी हुए। उन्होंने साबित कर दिया कि कैसे देश में हजारों नए रोजगार और बेशुमार पूंजी पैदा की जा सकती है।

मिसाल के तौर पर वर्ष 2007 में महज 40 हजार रुपये से शुरू किए गए स्टार्टअप ‘फ्लिपकार्ट’ ने यह उदाहरण सामने रखा है कि हजारों करोड़ रुपये का कारोबार करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी चीज है जज्बा। वर्ष 2007 में आइआइटी, दिल्ली से पढ़ाई करके निकले सचिन बंसल और बिन्नी बंसल अमेरिकी कंपनी ‘अमेजन’ में कुछ साल की नौकरी करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे थे कि क्यों न देश में ही खरीदारी का कोई ऐसा आनलाइन प्लेटफार्म बनाया जाए, जो लोगों को घर बैठे सामान खरीदने की सुविधा दे।

आज यह कंपनी अरबों रुपये का व्यवसाय करती है। नई सोच के साथ शुरू किए गए कई अन्य स्टार्टअप ने फ्लिपकार्ट जैसी ही सफलताएं दोहराई हैं। हालांकि अभी अधिकांश स्टार्टअप सेवा क्षेत्र से जुड़े हैं। इसका विस्तार मैन्यूफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र में भी होना चाहिए। कृषि क्षेत्र में तकनीकी उच्चता प्राप्त करने के लिए स्टार्टअप को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, क्योंकि भारत में अब भी श्रम शक्ति का एक बड़ा हिस्सा कृषि से आजीविका कमा रहा है।

ऐसे में उनके विकास के लिए एग्रीटेक में उन्नति जरूरी है। पिछले कुछ वर्षो से यह बात साबित हो रही है कि अब भारत का आर्थिक विकास न तो सिर्फ कृषि आधारित होगा और न ही बड़े उद्योगों के द्वारा संचालित होगा, बल्कि भारत कई छोटे और मध्यम श्रेणी के उद्योगों के बल पर आगे बढ़ेगा।

उल्लेखनीय है कि 2014 के बाद मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में बेहतरीन काम किया है, जिसके बाद देश के युवाओं ने नए विचारों के साथ जोखिम लेते हुए कई स्टार्टअप्स शुरू किए, जो अब देश के विकास की नई कहानी लिख रहे हैं। शायद यही वजह है कि कुछ ही समय पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में हर साल 16 जनवरी को राष्ट्रीय स्टार्टअप दिवस मनाने का एलान किया है।

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