आशा और एएनएम के प्रयासों से बदली गांवों की सोच, गृह प्रसव से संस्थागत प्रसव की ओर सफर
श्रीनारद मीडिया, पंकज मिश्रा, अमनौर, सारण (बिहार):

छपरा : “पहले हम सोचते थे कि घर में ही प्रसव हो जाए तो ठीक है। अस्पताल जाने से डर लगता था। लेकिन आशा दीदी ने बार-बार समझाया कि अस्पताल में माँ और बच्चे दोनों सुरक्षित रहते हैं। जब मेरा समय आया तो एक कॉल पर एंबुलेंस गांव तक आ गई। अस्पताल में डॉक्टर और नर्स ने मेरा पूरा ध्यान रखा। दवा, जांच और देखभाल सब कुछ मुफ्त मिला। उस दिन मुझे लगा कि अगर अस्पताल न आई होती, तो पता नहीं क्या होता। अब मैं दूसरी महिलाओं से भी यही कहती हूँ कि प्रसव के लिए अस्पताल जाना ही सबसे सही फैसला है।” अमृता देवी की इन बातों में स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति बढ़ा विश्वास झलकता है।
सारण जिले के पानापुर प्रखंड की कोंध और बसहियां पंचायतों में मातृत्व स्वास्थ्य को लेकर यही सोच अब आम होती जा रही है। वर्षों से चली आ रही गृह प्रसव की परंपरा धीरे-धीरे टूट रही है और महिलाएं सुरक्षित व सम्मानजनक संस्थागत प्रसव को अपना रही हैं। इस बदलाव के पीछे आशा और एएनएम कार्यकर्ताओं का विशेष प्रशिक्षण, स्वास्थ्य सेवाओं में किया गया सुनियोजित व्यवस्था परिवर्तन और प्रशासन की सक्रिय भूमिका है।
जहां कभी इन पंचायतों में 40 से 45 प्रतिशत तक प्रसव घरों में होते थे, वहीं आज दोनों पंचायतें लगभग शत-प्रतिशत संस्थागत प्रसव की ओर बढ़ चुकी हैं। यह बदलाव अचानक नहीं आया, बल्कि महीनों की निरंतर मेहनत, घर-घर संवाद और भरोसे की मजबूत नींव का परिणाम है।
विशेष प्रशिक्षण से बदली सोच, आशा बनी भरोसे की कड़ी:
गृह प्रसव की अधिकता स्वास्थ्य विभाग के लिए लंबे समय से चिंता का विषय थी। इसे दूर करने के लिए कोंध पंचायत की 13 और बसहियां पंचायत की 11 आशा कार्यकर्ताओं को चरणबद्ध तरीके से विशेष प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण में गर्भवती महिलाओं की सटीक लाइन-लिस्टिंग, अंतिम तिमाही की समय पर पहचान, जोखिम वाले मामलों का त्वरित रेफरल और परिवारों को संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करने जैसे अहम बिंदुओं पर फोकस किया गया।
प्रशिक्षण के बाद आशा कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर अपनी भूमिका और मजबूत की। उन्होंने नियमित घर-घर विजिट की, महिलाओं और उनके परिजनों से बैठकर बात की और सुरक्षित प्रसव के महत्व को सरल भाषा में समझाया। परिणामस्वरूप समुदाय का भरोसा सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों पर बढ़ता चला गया।
हर माह 20–25 संस्थागत प्रसव, आंकड़े बन रहे गवाह:
अब दोनों पंचायतों में हर महीने औसतन 20 से 25 संस्थागत प्रसव हो रहे हैं।
कोंध पंचायत में जनवरी 2025 से अगस्त तक 92 संस्थागत प्रसव दर्ज किए गए, जबकि केवल एक गृह प्रसव हुआ।
बसहियां पंचायत में इसी अवधि के दौरान 86 महिलाओं का प्रसव सरकारी अस्पताल में हुआ और मात्र दो गृह प्रसव सामने आए।
एक कॉल पर एंबुलेंस, टूटी गृह प्रसव की सबसे बड़ी बाधा:
गृह प्रसव की एक बड़ी वजह समय पर एंबुलेंस सेवा न मिलना भी था। इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए कोंध और बसहियां पंचायतों को प्राथमिकता सूची में शामिल किया गया। एंबुलेंस सेवा की मॉनिटरिंग मजबूत की गई और इन क्षेत्रों से आने वाले कॉल को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई।
अब जैसे ही आशा कार्यकर्ता या लाभार्थी कॉल करता है, एंबुलेंस बिना देरी गांव तक पहुंच जाती है।
प्रसव कक्ष सुदृढ़, संस्थागत प्रसव को मिला भरोसे का आधार:
पानापुर प्रखंड प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव कक्ष की व्यवस्था को पूरी तरह सुदृढ़ किया गया। स्वच्छता, पर्याप्त रोशनी, साफ बिस्तर, आवश्यक उपकरण और दवाओं की नियमित उपलब्धता सुनिश्चित की गई। स्टाफ नर्सों को सुरक्षित प्रसव, जटिलताओं की पहचान और नवजात देखभाल को लेकर विशेष प्रशिक्षण दिया गया। 24×7 सेवाओं के प्रभावी संचालन ने महिलाओं और उनके परिवारों का भरोसा और मजबूत किया।
जमीनी बदलाव की आवाज़:
“विशेष प्रशिक्षण के बाद हमें समझ में आया कि किस गर्भवती को कब अस्पताल भेजना है। अब हम एक भी महिला को जोखिम में नहीं छोड़ते। पहले लोग कहते थे घर में ही सब ठीक हो जाता है, लेकिन अब महिलाएं खुद फोन कर अस्पताल चलने को कहती हैं। सरिता देवी, आशा कार्यकर्ता, कोंध पंचायत ने बताया।
गृह प्रसव मुक्त पंचायत की ओर मजबूत कदम
कोंध और बसहियां पंचायतों में दिख रहा यह बदलाव साबित करता है कि जब प्रशिक्षित फ्रंटलाइन कार्यकर्ता, मजबूत स्वास्थ्य व्यवस्था और संवेदनशील प्रशासन एक साथ काम करते हैं, तो समुदाय की सोच बदलती है और सुरक्षित मातृत्व का सपना साकार होता है।
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