हिंदी विरोध की आग तमिलनाडु से कर्नाटक तक पहुंची

हिंदी विरोध की आग तमिलनाडु से कर्नाटक तक पहुंची

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने हिंदी विरोध की जो आग सुलगाई थी, वह अब दूसरे राज्यों तक भी पहुंचने लगी है। अब कर्नाटक में भी त्रिभाषा फॉर्मूले के विरोध में आवाज उठने लगी है। कर्नाटक डिवेलपमेंट अथॉरिटी ने राज्य के सीएम सिद्धारमैया को पत्र लिखा है कि वह द्विभाषा नीति को ही लागू करें। अथॉरिटी के चीफ पुरुषोत्तम बिलिमाले ने लिखा कि राज्य को दो भाषाओं की ही जरूरत है।

इसमें हिंदी को शामिल नहीं करना चाहिए। कन्नड़ लैंग्वेज लर्निंग रूल्स-2017 के अनुसार प्रदेश में पढ़ने वाले सभी बच्चों को दूसरी भाषा के तौर पर कन्नड़ सीखनी होगी। भले ही वे किसी भी बोर्ड से मान्यता प्राप्त स्कूल में पढ़ाई कर रहे हों। यही नहीं एक अधिकारी ने कहा कि देश में भाषाई असमानता की स्थिति है। क्षेत्रीय भाषाओं की गरिमा किसी भी तरह से कम नहीं होनी चाहिए।

वहीं सीएम सिद्धारमैया ने कहा कि हिंदी भाषा थोपने के खिलाफ अपनी आवाज तेज करनी होगी। इस विवाद को और तेज करते हुए तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन ने नया सवाल उठा दिया है। उन्होंने कहा कि आखिर हिंदी के अलावा अन्य किसी भाषा के लिए दिवस क्यों नहीं मनाया जाता। उन्होंने कहा कि हिंदी दिवस के अलावा संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल अन्य 21 भाषाओं के लिए कोई दिवस निर्धारित क्यों नहीं है।

डीएमके के कार्यकर्ताओं को एमके स्टालिन ने एक पत्र लिखा है, जिसका शीर्षक है- हम हमेशा हिंदी थोपने का विरोध करेंगे। इसमें वह लिखते हैं कि क्या हिंदी की तरह अन्य 21 भाषाओं के लिए भी कोई सेलिब्रेशन डे है? आखिर हिंदी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं के साथ ऐसा पक्षपात क्यों किया जा रहा है।

आखिर करेंसी नोट में छपी सभी भाषाओं को देश की आधिकारिक भाषा घोषित ररने में सरकार को किस चीज की हिचक है। उन्होंने कहा कि यदि पीएम नरेंद्र मोदी और अन्य भाजपा नेताओं के दिलों में तमिल के लिए जगह है तो फिर उसे आधिकारिक भाषा क्यों नहीं घोषित किया जा रहा।

यही नहीं खतरनाक भाषा का प्रयोग करते हुए एमके स्टालिन ने यूएसएसआर के विखंडन का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सोवियत संघ का बिखराव सिर्फ राजनीतिक कारणों से नहीं हुआ था। इसका एक कारण यह भी था कि देश पर रूसी भाषा थोपी जा रही थी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को नजरअंदाज किया गया। इसके चलते जब सोवियत संघ टूट गया तो उससे निकले कई देशों में रूसी बोलने वाले ही अल्पसंख्यक हो गए। लेकिन आज वही रूसी लातविया जैसे देश में रूसी को आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब लोगों पर भाषा थोपने के कारण बिखराव हो गया। उन्होंने कहा कि मैं ऐसे कई उदाहरण गिना सकता हूं, जब ऐसी नीतियों के चलते देश ही टूट गए। बता दें कि नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा फॉर्मूले को लेकर बात कही गई है, जिसका विरोध शुरू हो गया है। सबसे पहले तमिलनाडु से ही इसके खिलाफ आवाज उठी थी और अब कर्नाटक ने भी ऐसी ही राय जाहिर की है। माना जा रहा है कि देश के अन्य दक्षिणी राज्यों में भी ऐसे ही चर्चा शुरू हो सकती है।

 

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