वैशाखी के साथ सिखों का नया साल शुरू.

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नववर्ष पर परंपराओं और संस्कृतियों की दिखती है झलक.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत की विविधता में एकता यहां के त्‍योहारों में भी दिखती है। यहां अलग-अलग क्षेत्रों में नया साल (New Year) भी कई बार मनाया जाता है। कहीं सोलर कैलेंडर तो कहीं नए अनाज की कटाई के आधार पर नया साल का जश्‍न मनाया जाता है। आज की बात करें तो वैशाखी (Baisakhi) के साथ सिख नववर्ष शुरू हो रहा है। इसी तरह जुड़ शीतल (Jude Sheetal) बिहार (Bihar) और झारखंड (Jharkhand) में मैथिली नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। बीहू (Bohag Bihu) उत्‍तर-पूर्वी राज्‍यों (North Eastern States) में तो गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) महाराष्‍ट्र (Maharashtra) में नववर्ष के रूप में मनाए जाते हैं। जमशेदी नवरोज (Jamshedi Navroz) पारसी नव वर्ष है तो उगादी (Ugadi) दक्षिण भारत तथा पोहिला बैशाख (Pohela Boishakh) पश्चिम बंगाल (West Bengal) में नववर्ष के रूप में मनाए जाते हैं।

वैशाखी के साथ सिख (Sikh) नववर्ष शुरू

वैशाखी के साथ सिख (Sikh) नववर्ष शुरू होता है। खालसा कैलेंडर का निर्माण खलसा 1 वैसाख 1756 विक्रमी (30 मार्च 1699) के दिन से शुरू होता है। इस दिन पंजाब में परपरागत भांगड़ा और गिद्दा नृत्‍य किए जाते हैं। फिर शाम में लोग आग के आसपास इकट्ठे होकर नई फसल की खुशियां मनाते हैं। अरदास के बाद गुरु को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है। लोग ‘गुरु के लंगर’ में शामिल होते हैं। इस दिन गुरु गोविन्द सिंह और पंच प्यारों के सम्मान में शबद-कीर्तन गाए जाते हैं।

आज देशभर में बैसाखी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। सिख धर्म के प्रमुख त्योहारों में से इसे एक माना जाता है। इस दिन को समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से रबी की पकी फसल की कटाई शुरू हो जाती है। बैसाखी पर्व में लोग अपने दोस्तों, करीबियों के साथ भांगड़ा करके खुशी मनाते हैं। इसके साथ ही विभिन्न तरह के पकवान बनाए जाते हैं।

सिख पंथ के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने 13 अप्रैल 1699 को खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी के साथ बैसाखी पर्व की भी शुरुआत हुई थी। जहां पंजाब से इसे बैसाखी के नाम से जानते हैं। वहीं, असम में बिहू, केरल में विशु और बंगाल में पोइला बैसाख के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही आज सूर्य मेष राशि में प्रवेश कर गए हैं जिसे मेष संक्रांति के नाम से जाना जाता है। आज के दिन गुरुद्वारे में कीर्तन आदि होते हैं।

जुड़ शीतल: बिहार का मैथिली नववर्ष

बिहार की बात करें तो यहां जुड़ शीतल (Jude Sheetal) मैथिली नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। इसे सतुआनी (Satuani) भी कहते हैं। यह पारंपरिक तिरहुत पंचांग का पहला दिन होता है, जिसका अनुसरण मिथिला और नेपाल के मैथिली समुदाय के लोग करते हैं। इसे झारखंड (Jharkhand) में भी मनाया जाता है। इस दिन गुड़ और सत्तू के साथ ऋतु फल और जल से भरे घड़े का दान करने की परंपरा है। रबी फसल की कटाई की खुशी में किसान इसे बैसाखी के पर्व के रूप में मनाते हैं।

पूर्वोत्‍तर में बीहू से शुरू होता नया साल

पूर्वोत्‍तर भारत में बीहू धूमधाम से मनाया जाता है। इसके साथ वहां नया साल शुरू होता है। असम में बोहाग बिहू का जश्न पूरे सप्ताह धूम-धाम से चलता है। इसे रोंगाली बिहू भी कहते हैं। किसानों को समर्पित यह पर्व फसलों का पर्व भी कहा जाता है।

महाराष्‍ट्र में ‘गुड़ी पड़वा’ तो दक्षिण में ‘उगादि‘

महाराष्‍ट्र में नया साल गुड़ी पड़वा से शुरू होता है। ‘गुड़ी’ का अर्थ ‘विजय पताका’ होता है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व तेलंगाना में इसे ‘उगादि‘ के रूप में मनाया जाता है। इसे मराठी-पड़वा भी कहते हैं। इसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। इसी दिन चैत्र नवरात्र आरंभ होता है।

पोहिला बैशाख से शुरू होता बंगाली नववर्ष

पश्चिम बंगाल में नया साल पोहिला बैशाख से शुरू होता है। चैत्र का महीना खत्म होते ही बंगाली नववर्ष पोइला बोइशाख वैशाख माह के पहले दिन आता है। इस दिन बंगाली लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और नए कपड़े पहनकर पूजा करते हैं। सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन भी किए जाते हैं।

पारसी धर्मावलंबी हर साल अगस्त में नवरोज मनाते हैं। इस दिन पारसी नववर्ष शुरू होता है। फारस (Persia) के राजा जमशेद ने पारसी कैलेंडर का आरंभ किया था। यह उत्सव ब्रह्मांड में सभी चीजों के वार्षिक नवीनीकरण का प्रतीक है।

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