नए वर्ष का प्रारम्भ वर्षप्रतिपदा के दिन से होता है।

नए वर्ष का प्रारम्भ वर्षप्रतिपदा के दिन से होता है।

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार नए वर्ष का प्रारम्भ वर्षप्रतिपदा के दिन होता है। वर्षप्रतिपदा की तिथि निर्धारित करने के पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं। ब्रह्मपुराण पर आधारित ग्रन्थ ‘कथा कल्पतरु’ में कहा गया है कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी और उसी दिन से सृष्टि संवत की गणना आरम्भ हुई।

भारतीय की संस्कृति में पुरातन काल से नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से ही माना जाता रहा है। इस तिथि को भारतीय संस्कृति में अति पावन दिन माना गया है। क्योंकि इसी प्रतिपदा दिन रविवार को सूर्योदय होने पर ब्रह्मा ने सृष्टि के निर्माण की शुरुआत की थी। इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं। यह प्राकृतिक संयोग ही है कि अब भारत के नागरिक अपनी मूल की ओर लौट रहे हैं। जो लोग कल तक अपने नव वर्ष मनाने वाले समाज की हंसी उड़ाता था, वे स्वयं होकर नव वर्ष मनाने की ओर प्रवृत हो रहे हैं।

इसलिए यह कहा जा सकता है कि भारत अपने स्वत्व की ओर लौट रहा है। भारत के नागरिकों को यह आभास होने लगा है कि हमारा देश किसी भी मामले में दुनिया के देशों से पीछे नहीं रहा, बल्कि उसे षड्यंत्र पूर्वक पीछे कर दिया गया था। अब यह षड्यंत्र भी समझ में आने लगा है। इसलिए अब बहुत बड़ी संख्या में भारत का अपना नव वर्ष मनाने के लिए एकत्रित होने लगे हैं।

वर्तमान में जिस प्रकार से श्रद्धा केन्द्रों पर भीड़ बढ़ रही है, वह इस बात का प्रमाण है कि भारत का युवा जाग्रत हो रहा है। उसे सांस्कृतिक रूप से अपने पराए का बोध हो रहा है। समाज अपने विवेक से श्रेष्ठ और बुराई के बीच तुलनात्मक अध्ययन करने लगा है। समाज के व्यवहार में भी व्यापक परिवर्तन आया है। जो बुद्धिजीवी पहले हर बात की अपने हिसाब से व्याख्या करते थे, आज वे भी भारतीय संस्कृति के अनुसार चलते की ओर प्रवृत हुए हैं। इसलिए अब भारतीय समाज को भ्रमित करने के दिन बहुत दूर जा चुके हैं।

आज विश्व के कई देशों के नागरिक अपनी भोगवादी विकृति को छोड़कर भारतीय संस्कृति की ओर उन्मुख हो रहे हैं। धार्मिक दृष्टि से आस्था के क्षेत्र के रूप में विद्यमान नगरों में यह दृश्य आम हो गए हैं। आज गंगा के घाट पर विदेशी नागरिक भजन करते हुए मिल जाते हैं तो ब्रज की गलियों में कृष्ण भक्ति में लीन अनेक विदेशी नागरिक भी दिखाई देते हैं।

भारत की संस्कृति में इस बात की स्पष्ट कल्पना है कि भगवादी विकृति से मन विकृत हो जाता है। आत्मा की शुद्धि करना है तो उसके लिए भारतीय संस्कृति ही सर्वोत्तम है। जब विदेशी लोग भारतीय संस्कृति को पसंद करके उसकी राह पर चलने के लिए आगे आ रहे हैं, तो फिर यह हमारी अपनी है। यह हमारा स्वत्व है। इसलिए हम अपना नव वर्ष धूमधाम से मनाएं और अपने जीवन को सफल करें।

Leave a Reply

error: Content is protected !!