‘राजनीति में बौद्धिकता की दुर्दशा’

‘राजनीति में बौद्धिकता की दुर्दशा’

श्रीनारद मीडिया : आलेख  धनंजय मिश्र  सीवान :

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‘बौद्धिकता’ जब केवल व्यावसायिकता का पर्याय होकर राजनीति-कूटनीति का भी शिकार होने लगे..! तब वहां सुविज्ञता व सुविवेक तिरोहित होने लगते हैं..! राजनीति में बौद्धिकता की विशिष्टता व महता अत्यावश्यक है ! किन्तु, बौद्धिकता केवल राजनीति, कूटनीति और रणनीति का बंधुआ बन जाए ! तब यह स्थिति सर्वसमाज हेतु अत्यधिक घातक सिद्ध होने लगती है !

दूजा, यह कि राजनीति में ‘बौद्धिकता’ जब मर्यादाहीनता की शिकार होने लगे तो स्वयं के लिए भी हानिकारक होती है! क्योंकि, राजनीति के सहचर-झूठ, फरेब, प्रपंच, षड़यंत्र,हिंसा-प्रतिहिंसा, संस्कारहीनता, अनुशासनहीनता , अनैतिकता,आपसी प्रतिद्वंदिता, ईर्ष्या, अहंकार आदि ही होते हैं !

वस्तुत: बिहार में भी विगत कई दशकों से शुचितापूर्ण राजनीति की बहुचर्चाएं तो होती रही हैं !..और इसके ‘नारे-ए-वादे’ भी होते रहे हैं! मगर, शुचितापूर्ण एवं सुशासन के नाम पर भ्रष्टाचार के ‘महा-खेल’ भी तो यहां होते रहे हैं..!

दरअसल, गहराई से इस पर मनन किया जाए तो अंततः यह स्पष्ट प्रतीत होगा कि देश व प्रदेशों में भ्रष्टाचार के महानायक हमारे राजनय के भ्रष्ट खिलाड़ी ही हैं ! जनकथित यह भी कि बहुतेरे तो ये जन ऊपर से सफेद और अंतस से बहुत ही भ्रष्ट हैं!

उन सरकारी कर्मचारियों और पदाधिकारियों की तरह बेशक ईमानदार हैं! जब तक ये ‘जांच-एजेंसियों’ के हत्थे नहीं चढ़ जाते हैं..! मगर, सच तो यह है कि इनके विरूद्ध कथित कानूनी कार्रवाइयां भी तो कुछेक ही हो पाती हैं! हो भी तो कैसे..? क्योंकि, अंतस से तो जनकथित ये उन जनश्रुतियों के माफिक ही हैं, गोया..मौसेरे भाई की ! आप सबों का क्या परामर्श है..?

धनंजय मिश्रा

लेखक सीवान जिले के वरिष्‍ठ पत्रकार है

 

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