मीडिया में बेकार का हो-हल्ला,प्रयागराज में गंगा किनारे शव दफन करने की परंपरा है.

मीडिया में बेकार का हो-हल्ला,प्रयागराज में गंगा किनारे शव दफन करने की परंपरा है.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कोरोना वायरस संक्रमण की सेकेंड स्ट्रेन में हुई मौत को लेकर इंटरनेट मीडिया पर दुष्प्रचार में तीर्थनगरी प्रयागराज को बेवजह लपेटा गया है। प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर घाट पर 2018 में दफनाए गए शवों की अधिकांश तस्वीर को इंटरनेट मीडिया पर वायरल करके उसको कोरोना वायरस संक्रमण से हुई मौत को जोड़ा जा रहा है। जबकि यह तो सत्या है कि 2018 में कोरोना का संक्रमण नहीं था।

तीर्थराज प्रयाग में पीढिय़ों से कई हिंदू परिवारों में शवों को गंगा नदी के तीरे रेती में दफनाने की परंपरा है। दफनाए गए शवों की ताजा तस्वीरों को कोरोना में हुई मौतों से जोड़कर इंटरनेट मीडिया में हो-हल्ला मचाया जा रहा है। दैनिक जागरण के पास 18 मार्च, 2018 की श्रृंगवेरपुर घाट पर दफनाए गए शवों की ऐसी ही तस्वीर है, जो तब और अब के हालात में एक जैसी ही दिखती है

गंगा नदी के किनारे शवों का सच: भारत और उत्तर प्रदेश क्या विश्व के किसी भी देश में 2018 में कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं था। इसके बाद भी तीन वर्ष पहले की ऐसी ही तस्वीर इंटरनेट मीडिया पर वायरल है। प्रयागराज में कई हिंदू परिवारों में गंगा किनारे शव दफन करने की पुरानी परंपरा है। यहां के फाफामऊ के साथ ही श्रृंगवेरपुर में ऐसे हजारों शव दफन होंगे। यहां पर सफेद दाग, कुष्ठ रोग, सर्पदंश सहित अकाल मौतों से जुड़े शव किए जाते हैं। आजकल यहां पर दफन कई वर्ष पुराने शव को दिखाकर उसको कोरोना वायरस संक्रमण से हुई मौत से जोड़ा जा रहा है। हद है कि इंटरनेट मीडिया पर ऐसी ही शवों की फोटो को वायरस कर सनसनी फैलाई गई है।

सनसनी फैलाने वाले गौर से देखें तस्वीर: संगमनगरी प्रयागराज में गंगा किनारे दफनाए गए शवों को हालिया करार देते हुए इंटरनेट मीडिया पर हो-हल्ला मचाने वालों को यह पुरानी तस्वीर गौर से देखनी चाहिए। यह तस्वीर 18 मार्च 2018 की है, जब कुंभ 2019 के क्रम में तीर्थराज प्रयाग के श्रृंगवेरपुर का कायाकल्प हो रहा था। इसे अपने कैमरे में कैद किया था दैनिक जागरण के फोटो जर्नलिस्ट मुकेश कनौजिया ने। उस समय न कोरोना जैसी आपदा थी और न शवों को दफ्न करने की कोई मजबूरी। बस थी तो एक परंपरा जो यहां कई हिंदू परिवारों में पुरखों से चली आ रही है। एक ऐसी परंपरा जो बहुत पुरानी है, लेकिन गंगा नदी की निर्मलता के लिहाज से उचित नहीं है। प्रयागराज में श्रृंगवेरपुर और फाफामऊ घाट पर अरसे से शव दफनाने की परंपरा रही है।

यहां पर 85 वर्ष के पंडा राममूरत मिश्रा कहते हैं कि मैं तो श्रृंगवेरपुर में अपने बचपन से ही शवों को जलाने के साथ ही दफनाने का सिलसिला देख रहा हूं। सफेद दाग और सांप कटा तो दफनावै जात रहेन। छह-सात जिलन से संपन्न से लेकर गरीब परिवार तक भी शव लेकर आवत हैं। उनकेरे यहां दफनावै कै परंपरा बा। ऐसा ही कुछ कहना है कि ननकऊ पांडेय का। वे बताते हैं कि पुरखों से चली आ रही परंपरा के तहत कुष्ठ रोगियों व अकाल मौतों से जुड़े शव को जलाया नहीं बल्कि दफनाया जा रहा है। कानपुर से आए करीब पचास वर्ष के पंकज बताते हैं कि हमार चाचा तो आपन जगह अपने जितबै तय कर दिए रहे। वा टीला की ओर दफनावा गै रहा। उनकै अम्मा कै भी यहीं माटी दीन (दफनाया) रही। आज भी दफनाने के लिए आए रहे, लेकिन दफनावै नाही देहेन। इस बार को कोरोना संक्रमण काल में कई लोगों ने शवों को घाटों पर दफनाया। रोर गांव से आए शैलेंद्र दुबे बताते हैं कि हम लोग गांव से शव लेकर श्रृंगवेरपुर आए थे लेकिन नंबर में बहुत देर थी तो यहीं घाट किनारे दफन कर दिए। इसके अलावा बिहार, बाबूगंज, उमरी, पटना, मोहनगंज, सेरावां, शकरदहा आदि गांव के लोगों ने भी शव को दफन करना या परंपरा या पर्याप्त संसाधनों की मजबूरी बताया।

एक ही गांव के 50 मौतों में से 35 के शव दफनाए गए: श्रृंगवेरपुर से महज तीन किमी दूरी पर है गांव मेंडारा। यहां दस अप्रैल से लेकर दस मई तक के बीच करीब 50 लोगों की मौत हुई। नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान महेश्वर कुमार सोनू का कहना है कि इनमें से करीब 35 शव गंगा की रेती पर परंपरा के तहत दफनाए गए। मरने वालों में कोई कैंसर से पीडि़त था तो किसी की अस्थमा और हार्ट अटैक से मौत हुई। इनमें अधिकतर लोग 60 वर्ष से अधिक की उम्र के थे। हां, यह भी सच है कि किसी की कोरोना जांच नहीं हुई थी।

न तो परंपरा को ठेस पहुंचानी है और न ही पर्यावरण की अनदेखी करनी है: जिलाधिकारी, प्रयागराज भानुचंद्र गोस्वामी ने कहा कि प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर और फाफामऊ घाट पर हिंदू परिवारों में शव दफन करने की परंपरा अरसे से है। हमें परंपरा को भी ठेस नहीं पहुंचानी है न ही नदी पर्यावरण की अनदेखी करनी है। ऐसे में बीच का रास्ता निकालने की कोशिश है। शव दफनाने वालों से आग्रह किया जा रहा है कि वह लोग दाह संस्कार करें, गरीब परिवारों को इसके लिए आॢथक मदद भी दी जा रही है।

शव दफनाते हैं शैव सम्प्रदाय के अनुयायी: शासन की रोक के बाद भी शैव सम्प्रदाय के अनुयायी यहां शव दफनाते आते हैं। घाट पर मौजूद पंडित कहते हैं कि शैव संप्रदाय के लोग गंगा किनारे शव दफनाते रहे हैं। यह बहुत पुरानी परंपरा है। इसे रोका नहीं जा सकता। इससे लोगों की धाॢमक भावनाएं आहत होंगी। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल इसी वर्ष पांच मार्च को श्रृंगवेरपुर आई थीं। उन्होंने यहां पूजा-अर्चना भी की थी। उनके दौरे से पहले ही जिला प्रशासन ने एसडीएम व क्षेत्रीय पुलिस अधिकारी को भेजकर घाट पर शवों को दफनाने की सीमारेखा तय की थी। पत्थर के पिलर भी गाड़े गए थे। वो पिलर आज भी मौजूद हैं, पर प्रशासन की अनदेखी और कोरोना के कारण बढ़ती मौतों के बाद यह सीमा रेखा कब की पार हो चुकी है।

ये भी पढ़े….

Leave a Reply

error: Content is protected !!