चुनाव को लेकर महागठबंधन में गजब की स्थिति है,क्यों?

चुनाव को लेकर महागठबंधन में गजब की स्थिति है,क्यों?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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आरजेडी प्रमुख लालू स्रसाद यादव कांग्रेस नेता राहुल गांधी को कम से कम 2 मौकों पर बता चुके हैं कि वे उन्हें कोई भाव नहीं देते. यह अलग बात है कि लालू कभी सोनिया गांधी के बचाव में खुलकर सामने आ गए थे. बाद में भी कुछ मौकों पर लालू ने सोनिया गांधी के सुपुत्र राहुल गांधी का साथ दिया. विपक्षी एकता के लिए पहली बैठक पटना में हुई तो लालू ने राहुल गांधी को परिहास के अंदाज में विपक्ष का दूल्हा बनने का संकेत दिया.
राहुल ने लालू के इस अतिशय प्रेम को सम्मान भी दिया. मानहानि मामले में जब राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली तो वे सीधे दिल्ली स्थित मीसा भारती के आवास ही पहुंचे, हां लालू यादव स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे. तब लालू ने स्वास्थ्य की चिंता छोड़ बिहारी स्टाइल का मटन बनवाया, उसकी रेसिपी समझाई और राहुल को खिलाया भी.
इतनी गलबहियां के बावजूद राहुल गांधी से लालू या उनके परिवार के साथ आंतरिक तौर पर रिश्तों में मिठास का अभाव दिखा. बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने जब इंडिया ब्लॉक की लीडरशिप पर सवाल उठाकर खुद कमान संभालने का प्रस्ताव दिया तो लालू ने राहुल के साथ खड़ा होने के बजाय ममता का ही समर्थन कर दिया. दूसरा मौका बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त आया है, जब लालू ने मनमानी करते हुए सीट बंटवारे की बात फाइनल होने के पहले ही सिंबल बांटना शुरू कर दिया.
सोनिया का साथ दिया था लालू ने
लालू और राहुल गांधी के परिवार की नजदीकी उस वक्त बढ़ी, जब सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा. लालू सोनिया के साथ खड़े दिखे. तभी से दोनों परिवारों के बीच अनजानी नजदीकी रही है. सोनिया का साथ देने के बजाय तब कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भी इसे हवा दी थी. इसी मुद्दे पर शरद पवार नॉर्थ ईस्ट के कद्दावर नेता संगमा ने कांग्रेस से किनारा कर लिया था.
तब लालू प्रसाद यादव को लोगों ने शिद्दत से सोनिया का साथ देते देखा. लालू ने उन्हें देश की बहू बताकर उनका बचाव किया. लालू से लताड़ खाने के बाद भी कांग्रेस और आरजेडी की अगर पटरी बैठती रही है तो इसके पीछे गांधी परिवार पर लालू के एहसान का नैतिक दबाव माना जाना चाहिए.
कांग्रेस ने चारा घोटाला में फंसाया
लालू परिवार को जरूर इस बात की टीस रही होगी कि सोनिया का साथ देने के बजाय बहुचर्चित चारा घोटाला में कांग्रेस ने लालू को फंसाया. इसके लिए राहुल गांधी को ही जिम्मेवार माना जाना चाहिए. मनमोहन सिंह सरकार ने दागी नेताओं को बचाने के लिए विधेयक का ड्राफ्ट तैयार किया तो राहुल गांधी ने उस पर घोर आपत्ति जताते हुए उसे फाड़ कर फेंक दिया था.
नतीजा यह हुआ कि लालू का राजनीतिक करियर ही समाप्त हो गया. अब लालू अपने बेटे तेजस्वी यादव को राजनीति में प्रमोट कर रहे हैं. उन्हें हर हाल में इस बार सीएम बनाने की लालू ने ठानी है. पर, कांग्रेस इसमें अड़ंगा डाल रही है. कांग्रेस ने चुनाव परिणाम आने से पहले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने से साफ मना कर दिया है. इतना ही नहीं, सीटों के बंटवारे पर कांग्रेस ने ऐसा पेंच फंसाया कि बनी बनाई महागठबंधन की एकता छिन्न-भिन्न होने के कगार पर पहुंच गई है.
राहुल के नेतृत्व पर सवाल उठाया
यह जानना जरूरी है कि सब कुछ ठीक होने के बावजूद कांग्रेस लालू के सपने को साकार होने में बाधक क्यों बन रही है. दरअसल लालू ने जब राहुल गांधी को शादी की सलाह देने के बहाने विपक्ष का दूल्हा बनने की सलाह दी, अब वे उन्हीं की कब्र खोदने में लग गए हैं. सीटों पर अंतिम बातचीत के लिए तेजस्वी यादव राहुल से मिलना चाहते थे. तेजस्वी को यह काम इसलिए भी आसान लगता था,
क्योंकि बिहार में राहुल की वोटर अधिकार यात्रा के दौरान उन्होंने सारथी की भूमिका निभाई थी. पर, उन्हें यकीनन यह बुरा लगा होगा कि राहुल ने उन्हें मिलने का समय नहीं दिया. हालांकि, बिहार चुनाव के मुद्दे पर ही राहुल कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव आयोग की बैठक में शामिल रहे. बिहार के कांग्रेस नेताओं से भी वे मिलते रहे. राहुल से मुलाकात की तेजस्वी की तमन्ना अधूरी रह गई. उन्हें कांग्रेस महासचिव वेणु गोपाल से मिलने को कह दिया गया.
राहुल ने CM फेस पर पेच फंसाया
तेजस्वी को तो यह बात पहले से ही बुरी लग रही थी कि कांग्रेस उन्हें सीएम फेस घोषित करने को तैयार नहीं है. वह भी तब, जब वे खुद को अपनी सभाओं में महागठबंधन के भावी सीएम के रूप में पेश करते रहे हैं. राहुल की इस मुद्दे पर जुबान खुले, इसके लिए तेजस्वी ने वोटर अधिकार यात्रा के दौरान ही जनता से खुली अपील की थी कि मुझे आप लोग सीएम बनाएं और 2029 में राहुल को पीएम बनाने के लिए वोट करें.
राहुल ने इस मुद्दे पर चुप रहने की ठान ली थी, इसलिए उनकी जुबान ही नहीं खुली. यहां तक कि पत्रकारों ने इस बाबत तेजस्वी की मौजूदगी में जब राहुल से सवाल किया तो उन्होंने सीधा जवाब देने के बजाय महागठबंधन की एकता की बात करने लगे.
सीट बंटने से पूर्व लालू ने बांटे चिह्न
सीटों पर फैसले में इतना विलंब कांग्रेस ने किया कि लालू यादव का धैर्य जवाब दे गया. लालू ने बंटवारे की घोषणा से पहले ही सिंबल बांटने की शुरुआत कर दी. नतीजा यह हुआ कि एक ही सीट पर महागठबंधन की पार्टियों ने भी उम्मीदवार उतारने शुरू कर दिए. बिहार में 6 से अधिक सीटें ऐसी हैं, जहां आरजेडी और दूसरे घटक दलों के उम्मीदवार भी नामांकन कर चुके हैं. राहुल को सबक सखाने के लिए लालू ने कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ भी उम्मीवार उतारने का संकेत दे दिया है.
सीटों के बंटवारे में महागठबंधन में सबसे अधिक क्लैरिटी सीपीआई (एमएल) में दिखती है. उसे 20 सीटें मिलीं तो उन्हीं पर उसने उम्मीदवार दिए हैं. बाजाप्ता सूची भी जारी की है. कांग्रेस और आरजेडी में अब भी स्पष्टता नहीं है. इन दोनों के झगड़े में सबसे अधिक दुर्गति मुकेश सहनी की वीआईपी की हुई है.
पहले चरण के नामांकन की आखिरी रात वीआईपी को 15 सीटें दी गईं. मुकेश मान तो गए, लेकिन उम्मीदवारों को लेकर दुविधा की स्थिति पैदा हो गई. कई सीटों पर वीआईपी के टिकट पर आरजेडी का उम्मीदवार है तो कुछ पर दोनों दलों का एक ही कैंडिडेट है.
कांग्रेस क्या दिल्ली वाला खेल करेगी
कांग्रेस ने अभी 2 किस्तों में 51 उम्मीदवारों की सूची जारी की है. उसे कितनी सीटों पर लड़ना है, आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा हुई ही नहीं है. मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जाता रहा है कि कांग्रेस को हिस्से में 58 सीटें मिली हैं. अगर सीटों का बंटवारा हो गया है तो फिर टकराव की स्थिति क्यों पैदा हो रही है. अब तो यह भी आशंका जताई जाने लगी है कि कहीं कांग्रेस दिल्ली और हरियाणा वाला काम न कर दे. वहां आम आदमी पार्टी से सीटों के सवाल पर ही तालमेल नहीं हो पाया था.

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