शिक्षक में सदैव गुरुत्व होता है – मनोज भावुक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रोफेसर सिद्धार्थ सिंह मंत्रमुग्ध कर देते हैं। NLF के एक आध्यात्मिक सत्र की अध्यक्षता करते हुए वह बोल रहे थे। मैं सामने बैठा सुन रहा था। वक्ता के रूप में प्रख्यात अभिनेता अखिलेन्द्र मिश्र जी व कत्थक लीजेंड शोभना नारायण जी थे। …शायद नालंदा ऐसे ही सत्रों के लिए जाना जाता हो। …तो ठीक ही जगह पहुँचे हैं प्रोफेसर सिद्धार्थ सिंह।
प्रो. सिंह नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय (डीम्ड विश्वविद्यालय) के कुलपति हैं, जो संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन है। स्थायी पद पर वे भारत के वाराणसी स्थित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) के पाली एवं बौद्ध अध्ययन विभाग में वरिष्ठ प्रोफेसर हैं। प्रो. सिद्धार्थ सिंह वर्ष 2018 से 2022 तक टोक्यो स्थित भारतीय दूतावास में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक तथा राजनयिक भी रहे, जहाँ उन्होंने जापान में भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार और भारत–जापान के सौम्य (सॉफ्ट) कूटनीतिक संबंधों को सुदृढ़ करने हेतु व्यापक रूप से कार्य किया।
उन्हें जापान फ़ाउंडेशन फ़ेलोशिप, जापान (2003–04), फुलब्राइट सीनियर रिसर्च फ़ेलोशिप, अमेरिका (2011–2012) तथा वज्रयान व्यास राष्ट्रपति पुरस्कार, भारत (2005) से भी सम्मानित किया जा चुका है।
डॉ. सिद्धार्थ स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय में भारतीय अध्ययन के विज़िटिंग प्रोफेसर (आईसीसीआर चेयर ऑफ इंडियन स्टडीज़, 2014–2015) रहे हैं। इसके अतिरिक्त वे कार्लस्टैड विश्वविद्यालय, स्वीडन (धर्मों के इतिहास संकाय, 2006 एवं 2008) तथा हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में भी अतिथि प्रोफेसर रहे हैं।
उनकी प्रकाशित चार प्रमुख पुस्तकें हैं—
सद्धम्मसंगहो (13वीं शताब्दी तक बौद्ध धर्म का इतिहास) — प्रकाशक: मोतीलाल बनारसीदास
जिनचरित (भगवान बुद्ध की जीवनी) — प्रकाशक: पिलग्रिम्स पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
ज़ेन बौद्ध धर्म-संगीत — प्रकाशक: साहित्य भंडार, इलाहाबाद
रिमेम्बरिंग द लेजेंड: कोसेत्सु नोसू — प्रकाशक: महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया
उन्होंने हिंदी, अंग्रेज़ी और जापानी भाषाओं में 80 से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित किए हैं, जिनमें भारतीय संस्कृति और बौद्ध धर्म के विविध पक्षों को समाहित किया गया है। साथ ही उन्होंने भारत तथा अमेरिका, जापान, चीन, स्वीडन, एस्टोनिया, थाईलैंड, सिंगापुर, श्रीलंका, म्यांमार, वियतनाम और नेपाल जैसे देशों में अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय अवसरों पर व्याख्यान दिए हैं तथा शोध-पत्र प्रस्तुत किए हैं।
डॉ. सिंह की प्रमुख रुचियाँ बौद्ध धर्म के अनुप्रयुक्त पक्ष, भारतीय संस्कृति, विश्व धर्म एवं दर्शन, पाली एवं संस्कृत साहित्य तथा जापानी बौद्ध धर्म हैं।
सब बातों के बाद, उनसे बनारस, रेनुकूट और भोजपुरी कनेक्शन जुड़ा तो आत्मीयता और बढ़ गई। लगा अपने बड़े भाई से मिल रहा हूँ। तस्वीर में साथ में भौजाई भी हैं। अच्छा लगा।


