सीवान के ठेपहा के एक ही परिवार के दो अमर बलिदानियों ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन को किया था ऊर्जस्वित
ठेपहा के एक ही परिवार के मात्र 13 वर्ष के बच्चन प्रसाद और 50 वर्ष के सीताराम भगत ने मां भारती के चरणों में दिया था सर्वोच्च बलिदान
✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में सिवान के क्रांतिकारियों ने मां भारती के चरणों में अपना सर्वोच्च बलिदान देकर स्वतंत्रता आंदोलन को और ऊर्जा प्रदान किया था। सिवान के लिए गौरव की बात यह रही कि यहां के जीरादेई प्रखंड में स्थित ठेपहा गांव के एक ही परिवार के दो महान अमर बलिदानियों बच्चन प्रसाद और सीताराम भगत ने 1942 में अपने सर्वोच्च बलिदान से मां भारती की सेवा की थी।
अमर बलिदानी बच्चन प्रसाद 13 अगस्त 1942 को मात्र 13 साल के थे। परंतु राष्ट्र प्रेम उनके अंदर कूट कूट कर भरा हुआ था। 11 अगस्त 1942 को जब पटना सचिवालय पर सात अमर बलिदानियों ने तिरंगा फहराने के क्रम में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया तब उसमें सिवान के मात्र 19 वर्ष के उमाकांत सिंह ने भी अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। इस खबर के सिवान पहुंचते ही यहां के युवा उबल पड़े। गलियों और गांव से उत्साही युवकों का जत्था सिवान शहर की तरफ चल पड़ा।
तत्कालीन जुबली चौक और अभी के शहीद सराय चौक पर फिरंगी पुलिस के गोली चलाने पर मात्र 13 साल के बच्चन प्रसाद ने अपना सर्वोच्च बलिदान मां भारती के चरणों में समर्पित कर दिया। वे ठेपहा गांव के निवासी थे और उनके पिता का नाम बाबू राम भगत था। उस समय वे डी ए वी मिडिल स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे। अमर बलिदानी बच्चन प्रसाद कम उम्र में ही राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदारी निभाने लगे थे।
13 अगस्त 1942 को बच्चन प्रसाद, छठू गिरी और झगड़ू साह के सर्वोच्च बलिदान के उपरांत सिवान में क्रांति की ज्वाला धधक उठी थी। स्थानीय लोगों को सूचना मिली कि एक अंग्रेजी पलटन जीरादेई स्टेशन से होकर 23 अगस्त 1942 को गुजरने वाली है। इस क्रम में स्थानीय क्रांतिकारियों ने ट्रेन पर धावा बोला। उसमें अमर बलिदानी बच्चन प्रसाद के परिवार के ही वरिष्ठ सदस्य सीताराम भगत फिरंगी गोलियों के शिकार होकर अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। अमर बलिदानी सीताराम भगत उस समय 50 वर्ष के थे, उनकी पूर्व से राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रियता रहती थी।
निकट के गांव जीरादेई के निवासी देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से भी बेहद निकट के संबंध रहे थे। उनके वंशज हरिहर आजाद और मनोरंजन कुमार बताते हैं कि उनकी असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन के साथ राष्ट्रीय चेतना के जागरण में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। हालांकि सिवान के इन अमर बलिदानियों के नाम पर कोई स्मारक अभी तक नहीं बन पाया है।
शहर के शहीद सराय में 13 अगस्त 1942 को तीन वीर सपूत शहीद हो गए थे। उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम शहीद सराय पड़ा। जबकि पहले यह जुबली सराय के नाम से जाना जाता था। लेकिन शहीदों की याद में उसका नाम शहीद सराय कर दिया गया। शहीद होने वालों में सीवान जिले के ठेपहां गांव के बाबूराम प्रसाद के वीर सपूत बच्चन प्रसाद, तितरा मिश्रौलिया के वीर सपूत झगडू साह व सारण जिले के दाउदपुर के वीर सपूत छठू गिरि शामिल है।
उस समय देश की आजादी के लिए आंदोलन तेज हो गया था। 13 अगस्त 1942 को मां के वीर सपूत एसडीओ कोर्ट पर तिरंगा फहरा कर शहीद सराय में सभा कर रहे थे। इसी स्थान पर अंग्रेजी सैनिकों को सूचना मिल गई और वे यहां पहुंच कर गोली चलानी शुरू कर दी। इससे तीन वीर सपूत शहीद हो गए थे। जबकि कई सपूत घायल हो गए थे। अब नगर परिषद ने इन शहीदों की याद में थाना रोड का नाम भी बदल दिया है। थाना रोड को अब शहीद रोड का नामकरण कर दिया गया है।