भारत-इज़रायल के मध्य आदान-प्रदान की गई विभिन्न प्रौद्योगिकियाँ.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत और इज़रायल के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर संयुक्त कार्य समूह (JWG) की 15वीं बैठक में सहयोग के नए क्षेत्रों की पहचान करने के लिये एक व्यापक दस वर्षीय रोडमैप तैयार करने हेतु टास्क फोर्स बनाने पर सहमति हुई है।

प्रमुख बिंदु:

  • JWG दोनों देशों के रक्षा मंत्रालयों का शीर्ष निकाय है जिसका उद्देश्य “द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के सभी पहलुओं की व्यापक समीक्षा और मार्गदर्शन करना है।
  • बैठक में रक्षा उद्योग सहयोग पर एक सब-वर्किंग ग्रुप (एसडब्ल्यूजी) बनाने का भी निर्णय लिया गया। एसडब्ल्यूजी के गठन का मुख्य उद्देश्य है:
    • द्विपक्षीय संसाधनों का कुशल उपयोग।
    • प्रौद्योगिकियों का प्रभावी प्रवाह और औद्योगिक क्षमताओं को साझा करना।
  • यह भी निर्णय लिया गया कि सेवा स्तर की स्टाफ वार्ता को एक विशिष्ट समयसीमा में निर्धारित किया जाए।

भारत-इज़रायल रक्षा सहयोग:

  • पृष्ठभूमि: दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शुरू हुआ।
    • 1965 में इज़रायल ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारत को M-58 160-mm मोर्टार गोला बारूद की आपूर्ति की।
    • इज़रायल उन कुछ देशों में से एक था, जिन्होंने 1998 में भारत के पोखरण परमाणु परीक्षणों की निंदा न करने का फैसला किया था।
  • इसने परमाणु परीक्षणों के बाद प्रतिबंधों और अंतर्राष्ट्रीय अलगाव की स्थिति में भी भारत के साथ अपने हथियारों का व्यापार जारी रखा।
  • संबंधित राष्ट्रीय हित: भारत और इज़रायल के मज़बूत द्विपक्षीय संबंध दोनों देशों के राष्ट्रीय हितों से प्रेरित हैं।
    • भारत के सैन्य आधुनिकीकरण का लंबे समय से प्रतीक्षित लक्ष्य।
    • अपने हथियार उद्योग के व्यावसायीकरण में इज़रायल का तुलनात्मक लाभ।
  • विस्तार: भारत को इज़रायली हथियारों की बिक्री के अलावा अंतरिक्ष, आतंकवाद और साइबर सुरक्षा तथा खुफिया साझाकरण जैसे अन्य डोमेन को शामिल करने के लिये रक्षा सहयोग का दायरा बढ़ाया गया है।
    • भारत वर्ष 2017 में 715 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की बिक्री के साथ इज़रायल का सबसे बड़ा हथियार आयातक था।
    • स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार, इज़रायल रूस और अमेरिका के बाद भारत को रक्षा वस्तुओं का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है।
  • भारत द्वारा इज़रायल से आयातित रक्षा प्रौद्योगिकियाँ:
    • मानव रहित विमान (यूएवी):
      • खोजकर्ता: यह निगरानी, लक्ष्य प्राप्ति, तोपखाना समायोजन और क्षति मूल्यांकन के लिये एक बहु-मिशन सामरिक मानव रहित विमान (यूएवी) है।
      • हेमीज़ 900: दिसंबर 2018 में अदानी डिफेंस एंड एलबिट सिस्टम्स ने हैदराबाद में पहले भारत-इज़रायल संयुक्त उद्यम का उद्घाटन किया।
      • हीरोन (Heron): यह एक मध्यम-ऊँचाई लंबी-यूएवी प्रणाली है जिसे मुख्य रूप से रणनीतिक कार्यों के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • वायु रक्षा प्रणाली:
      • बराक: सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल को कम दूरी की वायु रक्षा इंटरसेप्टर के रूप में तैनात किया जा सकता है। भारत में बराक (BARAK) संस्करण को बराक-8 (नौसेना जहाज़ों के लिये) के रूप में जाना जाता है।
    • मिसाइल:
      • स्पाइक: ये 4 किमी. तक की रेंज वाली चौथी पीढ़ी की एंटी-टैंक मिसाइल हैं, जिन्हें फायर-एंड-फॉरगेट मोड में संचालित किया जा सकता है।
        • ये राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स इज़रायल द्वारा निर्मित हैं।
      • क्रिस्टल मेज: यह हवा-से-सतह पर मार करने वाली मिसाइल AGM-142A Popeye का एक भारतीय संस्करण है, जिसे संयुक्त रूप से इज़रायल स्थित राफेल और अमेरिका स्थित लॉकहीड मार्टिन द्वारा विकसित किया गया है।
    • सेंसर:
      • सर्च ट्रैक एंड गाइडेंस रडार (STGR): भारत ने INS कोलकाता, INS शिवालिक और कमोर्टा-क्लास फ्रिगेट्स को BARAK-8 SAM मिसाइलों को तैनात करने हेतु अनुकूल बनाने के लिये STGR रडार का आयात किया।
      • फाल्कन: इस एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (AWACS) को भारतीय वायुसेना की ‘आई इन द स्काई’ (Eyes in the Skies) के रूप में भी जाना जाता है।
  • भारत-इज़रायल रक्षा सहयोग का महत्त्व:
    • गश्त और निगरानी: इज़रायल से आयातित उपकरण युद्ध के समय सशस्त्र बलों की संचालन क्षमता को आसान बनाता है।
      • उदाहरण के लिये मिसाइल रक्षा प्रणालियों और गोला-बारूद ने भारत तथा पाकिस्तान के बीच बालाकोट हवाई हमलों के बाद उत्पन्न तनाव की स्थिति को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • मेक इन इंडिया: निर्यात उन्मुख इज़रायली रक्षा उद्योग और संयुक्त उद्यम स्थापित करने के लिये इसका खुलापन रक्षा में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेक विद इंडिया’ दोनों का पूरक है।
    • विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता: इज़रायल हमेशा एक ‘नो क्वेश्चन आस्किंग सप्लायर’ रहा है, यानी यह अपने उपयोग की सीमा लक्षित किये बिना अपनी सबसे उन्नत तकनीक को भी स्थानांतरित करता है।
      • वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान इसकी विश्वसनीयता को बल मिला।

आगे की राह

  • भारत-इज़रायल-अमेरिका त्रिभुज: जैसा कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रखने में संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के लिये प्रमुख भूमिका निभाता है, जिसके परिणामस्वरूप भविष्य में अधिक प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरणीय होने की संभावना है।
    • भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक समझ में सुधार के साथ इन प्रौद्योगिकियों को सेना के विभिन्न विभागों में लचीले ढंग से तैनात किया जा सकता है।
  • संयुक्त उद्यमों को बढ़ाना: भारत-इज़रायल रक्षा सहयोग को संयुक्त उद्यमों (Joint Ventures) और संयुक्त अनुसंधान एवं विकास (R&D) के संदर्भ में बढ़ाया जाना चाहिये जो एक प्रमुख वैश्विक शक्ति बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा को वास्तविक रूप देने हेतु एक बल गुणक हो सकता है।
  • तकनीकी विशेषज्ञता का दोहन: भारत और इज़रायल के बीच रणनीतिक सहयोग की अपार संभावनाओं के साथ आगे बढ़ने के लिये तैयार है। हथियारों का व्यापार इस द्विपक्षीय जुड़ाव का आधार बना रहेगा क्योंकि दोनों देश व्यापक अभिसरण चाहते हैं।
    • एक बढ़ती हुई साझेदारी के पक्ष में वैचारिक और नेतृत्व विकास के साथ भारत को एक रुग्ण स्वदेशी रक्षा उद्योग का आधुनिकीकरण करने के लिये इज़रायल की तकनीकी विशेषज्ञता का उपयोग करने का समय आ गया है।
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