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विवाह पंचमी: सुखी वैवाहिक जीवन के लिये करें विवाह पंचमी का व्रत एवं पूजन - श्रीनारद मीडिया

विवाह पंचमी: सुखी वैवाहिक जीवन के लिये करें विवाह पंचमी का व्रत एवं पूजन

विवाह पंचमी

विवाह पंचमी: सुखी वैवाहिक जीवन के लिये करें विवाह पंचमी का व्रत एवं पूजन

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श्रीनारद मीडिया, प्रसेनजीत चौरसिया, सीवान (बिहार)

विवाह पंचमी

विवाह पंचमी (श्री राम जानकी विवाह) मार्गशीष (अगहन) माह की शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन त्रेतायुग में भगवान विष्णु के अवतार श्री राम और देवी लक्ष्मी की अवतार देवी सीता का विवाह हुआ था। इसलिये हिंदु धर्म में इस दिन का विशेष महत्व हैं। इस दिन को विवाह पंचमी के नाम से भी पुकारा जाता हैं। विवाह पंचमी के दिन भगवान श्री राम और देवी सीता की पूजा किये जाने का विधान हैं। हिंदु मान्यताओं के अनुसार विवाह पंचमी के दिन विधि अनुसार पूजन करने से मनुष्य को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं।

आज 28 नवंबर को विवाह पंचमी का त्यौहार मनाया जा रहा है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में अवतार लिया था और देवी लक्ष्मी, देवी सीता के रूप में अवतरित हुयी थी। विवाह पंचमी के दिन श्री राम और देवी सीता का विवाह हुआ था। इसलिये इस दिन को बहुत शुभ माना जाता हैं। इस दिन देवी सीता और श्री राम की पूजा की जाती है।

हिंदु मान्यता के अनुसार इस दिन देवी सीता और श्री राम की पूजा करने से जातक का मनोरथ सिद्ध होता है।
विवाह की कामना करने वाले को मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता।
वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। पति-पत्नी के रिश्ते में मधुरता आती है।
धन-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।
सभी आपदाओं और समस्याओं का नाश होता है।
घर-परिवार में सुख-शान्ति रहती हैं।
पारिवारिक सुखों में वृद्धि होती हैं।
जातक की समस्त चिंताओं का समाधान होता हैं।
विवाह पंचमी के दिन रामायण का पाठ करना अति शुभ होता हैं। इस दिन रामायण पाठ या देवी सीता संग श्री राम विवाह प्रसंग का पाठ करने से बहुत शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

विवाह पंचमी पूजन की विधि
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विवाह पंचमी के दिन भगवान श्रीराम और देवी सीता की पूजा किये जाने का विधान हैं।

विवाह पंचमी के दिन प्रात:काल स्नानदि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजास्थान पर बैठकर सीता-राम विवाह का संकल्प करें।
तत्पश्चात्‌ केले के पत्ते आदि से एक मंड़प बनायें। उस मंड़प में एक चौकी बिछाकर उसपर कपड़ा बिछायें।
चौकी पर जल से भरकर एक कलश स्थापित करें। फिर भगवान श्री राम और देवी सीता की प्रतिमा स्थापित करें।
प्रतिमा को स्नान कराकर वस्त्र पहनायें। श्री राम की मूर्ति को पीले रंग और देवी सीता की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र धारण करायें।
धूप-दीप जलाकर रोली-चावल से दोनों का तिलक करें।
फिर “ॐ जानकीवल्लभाय नमः” मंत्र का करते हुये श्री राम और देवी सीता का गठबंधन करें।
पुष्पमाला अर्पित करें। नैवेद्य निवेदन करें।
फिर श्रीराम स्तुति और श्री जानकी स्तुति का पाठ करें।
“ॐ जानकीवल्लभाय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
फिर श्री राम और देवी सीता की आरती करें।
पूजा के बाद श्री राम और देवी सीता के गठबंधन (गांठ लगे वस्त्र) के वस्त्र को सम्भाल कर किसी पवित्र स्थान पर रखें।
रात्रि में कीर्तन का आयोजन करें और सीता-राम के भजन गायें। यदि हो सके तो रामायण का पाठ भी करें।

विवाह पंचमी की कथा
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पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में धरती को रावण के संताप से मुक्त कराने और समाज के समक्ष धर्म एवं मर्यादा का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिये भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में अवतार लिया और देवी लक्ष्मी जनकनंदनी सीता के रूप में धरती पर प्रकट हुयी। श्री हरि विष्णु ने अयोध्या के महाप्रतापी सूर्यवंशी राजा दशरथ के यहाँ पुत्र श्री राम के रूप में जन्म लिया और देवी लक्ष्मी ने मिथिला के राजा जनक की पुत्री सीता के रूप में अवतार लिया।

सीता जी के जन्म से जुड़ी एक कथा के अनुसार देवी सीता का जन्म धरती से हुआ था। एक समय मिथिला में भीषण अकाल पड़ा, तब एक ऋषि द्वारा कहने पर राजा जनक ने धरती पर हल चलाया। जब वो हल चला रहे थे, तब उन्हे धरती से एक पुत्री मिली। उसका नाम उन्होंने सीता रखा। सीता जी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।

राजा जनक के पास भगवान शिव का दिया एक धनुष था। उस धनुष को उठाना बड़े से बड़े योद्धा के लिये भी सम्भव नही था। एक बार अपने बाल्यकाल में सीता जी ने उस धनुष को उठा लिया तब राजा जनक ने यह प्रतिज्ञा की वो अपनी पुत्री सीता का विवाह उसी से करेंगे जो उस शिव धनुष को उठा कर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा सकेगा। इस का उल्लेख तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस में भी मिलता है।

सिय ने धनुष को उठा लिया। नृप ने प्रतिज्ञा कर लीनी।
होये जो बलवान इससे ज्यादा। उसको यह पुत्री दीन्ही॥

राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिये एक भव्य स्वयंवर का आयोजन किया। उस स्वयंवर में भारतवर्ष के सभी राजा-महाराजाओं को आमंत्रित किया गया। उस स्वयंवर में श्रीराम और लक्ष्मण अपने गुरू विश्वामित्र के साथ पहुँचें। जब स्वयंवर में उपस्थित कोई भी राजा या राजकुमार उस शिव धनुष को उठा नही पाया, तब राजा जनक बहुत दुखी हुये। तब गुरू विश्वामित्र ने श्रीराम को शिव धनुष उठाकर राजा जनक को इस दुख से निकालने के लिये कहा। अपने गुरू की आज्ञा पाकर श्रीराम ने उस शिव धनुष को उठाकर जैसे ही प्रत्यंचा चढ़ाने की कोशिश की तो वो धनुष टूट गया। इस प्रकार श्री राम ने स्वयंवर की शर्त को पूरा किया और फिर उनका विवाह देवी सीता से साथ हुआ।

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