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अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत द्वारा उठाए जा सकने वाले कदम क्या है? - श्रीनारद मीडिया

अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत द्वारा उठाए जा सकने वाले कदम क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बाह्य अंतरिक्ष के उपयोग को सुरक्षित कर सकने की भारत की क्षमता ने वर्तमान युग में इसके विकास और समृद्धि में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। दूसरे अंतरिक्ष युग के आगमन के साथ स्पेसएक्स (SpaceX) जैसी निजी न्यूस्पेस कंपनियों ने अग्रणी भूमिका निभानी शुरू कर दी है। हालाँकि जैसा कि बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty- OST) में उल्लिखित है,

मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय कानून राष्ट्र-राज्यों को उनकी निजी अंतरिक्ष कंपनियों, नागरिकों और सरकारी अधिकारियों के कार्यों एवं परिणामों के लिये उत्तरदायी ठहराते हैं। देशों और उनके गठबंधनों के लिये यह विवेकपूर्ण होगा कि वे अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों का व्यापक मार्गदर्शन करने वाली रणनीति तैयार करें। इस तरह की पहल से अंतर-सांगठनिक समन्वय को बढ़ावा मिलेगा और निवेशकों के विश्वास निर्माण में मदद मिलेगी।

अंतरिक्ष रणनीति और विश्व:

अंतरिक्ष व्यापक रणनीतिक संदर्भ का हिस्सा क्यों है?

  • नागरिक जीवन और सैन्य अभियानों के लगभग सभी पहलूओं में अंतरिक्ष के व्यापक अनुप्रयोग और निर्भरताएँ शामिल हैं।
    • अंतरिक्ष क्षेत्र का उभार भारत के रक्षा तंत्र के संभावनापूर्ण चौथे अंग के रूप में हो रहा है।
  • चूँकि अमेरिका, रूस और चीन पहले से ही एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति बनने की राह पर हैं, भारत को भी उभरती सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिये स्वयं को उचित रूप से तैयार करने की आवश्यकता होगी।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ रही है। न्यूज़ीलैंड स्वयं को निजी रॉकेट प्रक्षेपण के क्षेत्र के रूप में तैयार और स्थापित कर रहा है।
    • सिंगापुर अपने कानूनी वातावरण, कुशल जनशक्ति की उपलब्धता और भूमध्यरेखीय स्थिति के आधार पर स्वयं को अंतरिक्ष उद्यमिता के हब या केंद्र के रूप में पेश कर रहा है।

भारत की अंतरिक्ष रणनीति:

  • वर्ष 2020 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO/इसरो) ने एक नई स्पेसकॉम नीति 2020 (Spacecom Policy 2020) का मसौदा जारी किया जिसमें केंद्र सरकार के अनुमोदन के साथ ही निजी अभिकर्त्ताओं को भागीदारी की अनुमति प्रदान की गई।
  • भारत ने हाल ही में रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Defence Space Research Organisation- DSRO) द्वारा समर्थित रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (Defence Space Agency-DSA) की स्थापना की है जिसे ‘किसी प्रतिद्वंद्वी की अंतरिक्ष क्षमता को कमतर करने, बाधित करने, नष्ट करने या धोखा दे सकने’ हेतु आयुध निर्माण का कार्य सौंपा गया है।
  • DSA ऐसी प्रौद्योगिकियों का अधिग्रहण करने का प्रयास कर रहा है जो खतरों का मूल्यांकन कर सकें और अंतरिक्ष, थल, समुद्र और हवाई क्षेत्रों में भारतीय कार्रवाइयों की प्रभावशीलता को अधिकतम कर सकें।

अंतरिक्ष रणनीति के मामले में विभिन्न देशों की स्थिति:

  • यूनाइटेड किंगडम, चीन और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) ने अंतरिक्ष के उपयोग पर केंद्रित अपने-अपने रणनीतिक प्रकाशनों के नवीनतम संस्करणों को जारी किया है।
  • भारत ने अभी तक एक व्यापक अंतरिक्ष रणनीति प्रकाशित नहीं की है। नई दिल्ली के लिये यह विवेकपूर्ण होगा कि वह अपने स्वयं के रणनीतिक दस्तावेज़ पेश करे जहाँ उपलब्धियों, संभावनाओं और अंतरिक्ष के प्रति इसके व्यापक दृष्टिकोण की रूपरेखा प्रकट हो।

अंतरिक्ष क्षेत्र में चीन की स्थिति:

  • अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की प्रगति ने पिछले कुछ वर्षों में पर्याप्त गति प्राप्त की है, लेकिन यह अभी भी महत्त्वाकांक्षा और निष्पादन के मामले में चीन से काफ़ी पीछे है।
  • उल्लेखनीय है कि चीन भारत का रणनीतिक विरोधी है और उसके अंतरिक्ष कार्यक्रम का बजट भारत की तुलना में लगभग छह गुना अधिक है।
    • अंतरिक्ष के लिये भारत का बजटीय आवंटन, उसकी परियोजनाओं का क्रियान्वयन और अनुसंधान एवं विकास के प्रति समर्पण अंतरिक्ष क्षेत्र में चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकने हेतु पर्याप्त नहीं है।
  • चीन अपने ‘तियांगोंग’ अंतरिक्ष स्टेशन का पहला मॉड्यूल कक्षा में स्थापित कर चुका है और अगले पाँच वर्षों में एक ‘नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट’ रक्षा प्रणाली का निर्माण करने की भी योजना बना रहा है।
    • अंतरिक्ष पर इसका नवीनतम श्वेत पत्र ‘नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट’ (NEO) की निगरानी और इस पर प्रतिक्रिया दे सकने के मामले में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग करने की बीजिंग की इच्छा पर प्रकाश डालता है।
    • भारत के पास अभी ग्रहीय रक्षा (Planetary Defence) की कोई योजना नहीं है।

आगे की राह

  • अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिये संतुलित दृष्टिकोण: भारत को चयनित बाह्य अंतरिक्ष परियोजनाओं पर अत्यधिक केंद्रित बने रहने से बचना चाहिये। इसके बजाय उसे कक्षीय (In-Orbit), पृथ्वी से अंतरिक्ष (Earth-to-Space) और अंतरिक्ष से पृथ्वी (Space-to-Earth) अनुप्रयोगों को संबोधित करने के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
    • नाटो (NATO) की रणनीति में अंतरिक्ष को ‘संघर्ष के विभिन्न क्षेत्रों’ में प्रासंगिक बताया गया है जो कि एक अनुकरणीय दृष्टिकोण है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर संलग्नता: अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) बाह्य अंतरिक्ष में उत्तरदायी व्यवहार के लिये आवश्यक मानदंडों पर विचाररत है।
    • भारत को यह संकेत देना होगा कि भारत न केवल एक भागीदार बल्कि एक प्रमुख हितधारक भी होगा। इस संबंध में सभी देशों द्वारा अंतरिक्ष के उपयोग हेतु अप्रतिबंधित पहुँच सुनिश्चित करने के मद्देनज़र भारत की चिंताओं को सामने रखना बेहद आवश्यक है।
  • ‘स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस’ (SSA): स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस (SSA) अंतरिक्ष के किसी पिंड की स्थिति एवं गतिविधि और उसके प्रभाव के संबंध में जागरूकता की स्थिति है।
    • भारत की रणनीतिक घोषणा में एक पारदर्शी SSA भी प्रमुखता से शामिल होना चाहिये क्योंकि यह रक्षा और प्रतिरोध के लिये विभिन्न क्षेत्रों में भारत की क्षमताओं को बढ़ाएगा।
    • नई दिल्ली को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराये गए SSA डेटा के साथ अपने विरोधियों को उत्तरदायी ठहराने का संकल्प व्यक्त करना चाहिये।
  • अंतरिक्ष में मलबे की समाप्ति: ‘फेंग्युन-1C’ उपग्रह के मलबे से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) को पहुँचे खतरे के कारण चीन को आलोचना का सामना करना पड़ा था। इस संबंध में चीन ने अंतरिक्ष क्षेत्र पर एक श्वेत पत्र जारी किया जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय चिंताओं को कम करना और चीन को एक ज़िम्मेदार पक्ष के रूप में पेश करना था।
    • भारत को भी ‘डायरेक्ट एसेंट एंटी-सैटेलाइट टेस्ट’ मिशन शक्ति के लिये अंतर्राष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पड़ा।
    • अंतरिक्ष के उपयोग पर जारी अपने रणनीतिक प्रकाशन में भारत को भी यह आश्वासन देना चाहिये कि अंतरिक्ष मलबे को कम करने के लिये वह ज़िम्मेदार भूमिका निभाएगा।
    • सेल्फ-ईटिंग रॉकेट्स, सेल्फ-वैनिशिंग सैटेलाइट्स और अंतरिक्ष मलबों के संग्रहण के लिये रोबोटिक आर्म्स जैसी प्रौद्योगिकियों में इसरो को कार्य करने की आवश्यकता है।
  • अंतरिक्ष में स्थायी उपस्थिति: इसरो ने ‘गगनयान मिशन’ के साथ एक प्रमुख फोकस क्षेत्र के रूप में मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान पर कार्य शुरू किया है।
    • मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशनों के महत्त्व के साथ-साथ कक्षा में निरंतर मानव उपस्थिति और गहन अंतरिक्ष अन्वेषण को उजागर करना भारत के लिये रणनीतिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व रखता है।
    • एक अन्य प्रासंगिक क्षेत्र ‘नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट्स’ से रक्षा सुनिश्चित करना है जिसके लिये भारत को अपने अनुसंधान में तेज़ी लानी चाहिये।
      • भारत को अल्पावधि में अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग और दीर्घावधि में ग्रहीय रक्षा कार्यक्रम हेतु योजना निर्माण की पहल करनी चाहिये।
      • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के बिना भारत चीन की बराबरी नहीं कर सकेगा।
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