दो दोस्त आखिर कैसे बने एक-दूसरे के खून के प्यासे! कब-क्यों शुरू हुआ विवाद?

दो दोस्त आखिर कैसे बने एक-दूसरे के खून के प्यासे! कब-क्यों शुरू हुआ विवाद?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

1991 में यूएसएसआर से अलग होने के बाद भी यूक्रेन रूस के साथ खड़ा था. लेकिन विवाद तब शुरू हुआ जब रूस ने साल 2014 में यूक्रेन के एक हिस्से को जिसे क्रीमिया के नाम से जाना जाता है, पर हमला किया और उसे रूस में मिला लिया.

Russia Ukraine Crisis: दो दोस्त आखिर कैसे बने एक-दूसरे के खून के प्यासे! कब-क्यों शुरू हुआ विवाद, जानें पूरी कहानी
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदयमयर जेलेंस्‍की और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन

यूक्रेन संकट की वजह से दुनिया भर के देशों की निगाहें रूस (Russia), नाटो सेना (NATO) और अमेरिकी (America) रुख पर टिकी हुई हैं. रूस अपने सैनिकों और हथियारों को यूक्रेन (Ukraine) की सीमा पर तैनात कर चुका है, जिसे देखते हुए तमाम देश इस बात की आशंका जता रहे हैं कि रूस किसी भी समय यूक्रेन पर हमला कर सकता है. वहीं, इस आशंका को देखते हुए अमेरिका लगातार रूस पर प्रतिबंधों की धमकी देकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

अमेरिका का कहना है कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो उसे वैश्विक स्तर पर कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा. इस तनातनी के बीच सवाल उठता है कि आखिर ये बवाल है किस बात पर है? तो इसका जवाब ये है कि खुद को असहज पाने के कारण यूक्रेन, नाटो से हाथ मिलाना चाहता है. वहीं रूस अमेरिका से आश्वासन चाहता है कि यूक्रेन को किसी भी शर्त पर नाटो में जगह न दी जाए.

यहां, यूक्रेन और रूस के बीच गर्म हुए माहौल के इतर यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर यूक्रेन क्यों नाटो में मिलना चाहता है? रूस को इससे क्यों एतराज है? और अमेरिका इसमें थर्ड पार्टी क्यों बना हुआ है? उसका मकसद क्या है… इन सभी सवालों के जवाब के अलावा हम इस लेख में समझेंगे कि आखिर यूक्रेन का जन्म कब और कैसे हुआ? एक समय रूस का पक्का वाला दोस्त कहलाने वाला यूक्रेन आज उसका सबसे बड़ा दुश्मन कैसे बन गया है.

यूक्रेन से 28 गुना बड़ा है रूस

रूस और यूक्रेन यूरोप के दो बड़े देश हैं. हालांकि, रूस (17 मिलियन स्क्वेयर किलोमीटर) क्षेत्रफल में यूक्रेन से 28 गुना बड़ा है. अगर भारत से तुलना करें तो रूस भारत से 5 गुना बड़ा है, वहीं, यूक्रेन भारत से 3 गुना छोटा है. जनसंख्या के मामले में भी रूस यूक्रेन से कहीं आगे है.

रूस की जनसंख्या 14.4 करोड़ है, वहीं यूक्रेन की जनसंख्या 4.4 करोड़ है. दोनों देशों में 1990 के बाद से प्रजनन दर में भी कमी आई है. वर्तमान में रूस में 1.5 और यूक्रेन में 1.2 प्रजनन दर है. भारत में यह 2.0 है और 2.1 को आदर्श प्रजनन दर माना जाता है, जिसे हर देश पाना चाहता है.

Whatsapp Image 2022 02 08 At 10.39.12 Am

यूक्रेन से हर मामले में आगे है रूस

यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध से यूरोप में जम जाएगी बर्फ!

रूस और यूक्रेन दोनों ही तेल और गैस के मामले में समृद्ध हैं. रूस के पास दुनिया का सबसे अधिक प्रमाणित गैस भंडार (48,938 बिलियन क्यूबिक मीटर) है और इससे भी खास बात ये है कि देश के गैस भंडार के 70 प्रतिशत से अधिक हिस्से पर मालिकाना हक या स्वामित्व सरकारी ऊर्जा कंपनी गैजप्रोम के पास है.

यूरोपीय देशों को जितनी प्राकृतिक गैस की जरूरत पड़ती है, रूस उन्हें उसका एक तिहाई हिस्सा सप्लाई करता है. लेकिन अप्रैल 2021 के बाद उसने सप्लाई में बड़ी कटौती की है. हालांकि, रूस अगर यूक्रेन पर हमला करता है तो इस स्थिति में अमेरिका रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाने की धमकी दे चुका है.

हमले की स्थिति में रूस पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद यूरोप को होने वाली गैस की आपूर्ति भी पूरी तरह बाधित हो सकती है. इससे पूरे यूरोप में ऊर्जा संकट उत्पन्न हो सकता है. इन सबके बीच अमेरिका की चांदी ही चांदी है. रूस पर प्रतिबंध लगाए जाने की स्थिति में उसे यूरोप को मनमाफिक कीमत पर गैस की सप्लाई करने का मौका मिलेगा.

रूस के पास 80 अरब बैरल यानी दुनिया के कुल तेल भंडार का 5 प्रतिशत (सबसे बड़े तेल भंडारों में से एक) सिद्ध तेल भंडार है. वहीं, यूक्रेन में भी 395 मिलियन बैरल तेल और 349 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस का एक बड़ा भंडार है. फिलहाल यूक्रेन पश्चिमी देशों (यूरोपियन देशों) और रूस के बीच एक कड़ी का काम करता है और रूसी गैस को यूरोपीय बाजारों में पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ऐसे में अगर युद्ध होता है तो गैस संकट का उत्पन्न होना तय है.

अर्थव्यवस्था में भी रूस यूक्रेन पर भारी

पश्चिमी देशों ने 2014 से रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं. यही वो समय था जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था और इसी वजह से उस पर कई वैश्विक प्रतिबंध लाद दिए गए. अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो उसे नए प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है. यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) ने रूस के कर्जदाताओं को आर्थिक प्रतिबंधों के नतीजों के लिए तैयार रहने के लिए कहा है.

यूक्रेन का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) लगभग 3,100 डॉलर है, जबकि रूस का लगभग चार गुना ज्यादा 11,700 डॉलर है. साल 2021 में यूक्रेन में मुद्रास्फीति (Inflation) दर 10 प्रतिशत पर रही. वहीं, रूस में मुद्रास्फीति दर 8.5 प्रतिशत रही.

Ukrain Vs Russia 2

यूक्रेन की सीमा पर तैनात रूसी जंगी बेड़ा (तस्वीर- AFP)

रूस यूक्रेन का सबसे बड़ा बिजनेस पार्टनर

यूक्रेन के साथ रूस का द्विपक्षीय व्यापार 2011 में लगभग 50 बिलियन डॉलर का था जो कि 2019 में घटकर 11 बिलियन डॉलर तक आ गया. इसके बावजूद रूस यूक्रेन के सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में से एक बना हुआ है.

यूक्रेन 55 बिलियन डॉलर का आयात करता है जिसमें से चीन का हिस्सा सबसे ज्यादा 13.3 परसेंट का है. इसके बाद दूसरे नंबर पर 12 परसेंट के साथ रूस मौजूद है. वहीं, इस मामले में तीसरा सबसे बड़ा देश जर्मनी है जिसकी यूक्रेन के कुल आयात में 9.6 परसेंट की हिस्सेदारी है.

एक्सपोर्ट यानी निर्यात की बात करें तो यूक्रेन का सबसे ज्यादा सामान रूस को जाता है. यूक्रेन अपने कुल निर्यात का 9.5 परसेंट हिस्सा रूस को भेजता है. वहीं, चीन इस मामले में 8 परसेंट के साथ दूसरे नंबर पर और जर्मनी 6.2 परसेंट के साथ तीसरे नंबर पर है.

इसके इतर रूस के एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट की बात करें तो दोनों की मामले में यूक्रेन टॉप 10 देशों से बाहर है.

सैन्य ताकत में कौन किस पर भारी?

रूस के पास दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं में से एक है और ये देश रक्षा पर खर्च करने वाले शीर्ष 5 देशों में शुमार है. साल 2020 में, रूस ने अपनी सेना पर 61.7 अरब डॉलर खर्च किया, जो कुल सरकारी खर्च का 11.4 प्रतिशत था. वहीं, स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, इसकी तुलना में यूक्रेन ने अपनी सेना पर 5.9 अरब डॉलर या सरकारी खर्च का 8.8 फीसदी हिस्सा खर्च किया.

Russia

रूस के पास है अथाह गोला-बारूद

टकराव का सबसे बड़ा कारण नाटो, रूस के लिए ही हुआ था जन्म!

1939 से 1945 तक दूसरा विश्व युद्ध चला और इसमें अमेरिका, फ्रांस, सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक संघ (USSR) और ब्रिटेन ने मिलकर इटली और जापान के खिलाफ जमकर युद्ध किया. इस दौरान 1945 में अमेरिका ने सबसे आगे निकलते हुए जापान पर परमाणु बम गिरा दिया और इसी के साथ दूसरा विश्व युद्ध भी खत्म हो गया. हालांकि, यहां पर यूएसएसआर को यह बात चुभ गई कि अमेरिका के पास इतने घातक हथियार थे तो सहयोगी होने के नाते उसने बताया क्यों नहीं.

यहीं से दोनों देशों के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हुई और दोनों देश दुनिया के अन्य देशों को अपने पाले में करने के उद्देश्य से आगे बढ़े. यही वह समय था जब नाटो नाम के एक संगठन का जन्म हुआ और इसे अमेरिका ने 12 देशों के समर्थन से बनाया. 1949 में जन्में नाटो में शुरू में 12 देश थे लेकिन समय के साथ अन्य देश भी इससे जुड़ते गए और अब ये 30 देशों का एक मजबूत संगठन बन गया है.

नाटो में कुल 30 देश, 3 का पड़ोसी रूस

नाटो में कुल 30 देश हैं जिसमें अल्बानिया (2009), बेल्जियम (1949), बुल्गारिया (2004), कनाडा (1949), क्रोएशिया (2009), चेक रिपब्लिक (1999), डेनमार्क (1949), इस्तोनिया (2004), फ्रांस (1949), जर्मनी (1955), ग्रीस (1952), हंगरी (1999), आइसलैंड (1949), इटली (1949), लातविया (2004), लिथुआनिया (2004), लक्जमबर्ग (1949), मोंटेनिग्रो (2017), नीदरलैंड (1949), नॉर्थ मेसीडोनिया (2020), नॉर्वे (1949), पोलैंड (1999), पुर्तगाल (1949), रोमानिया (2004), स्लोवाकिया (2004), स्लोवेनिया (2004), स्पेन (1982), तुर्की (1952), ब्रिटेन (1949) और अमेरिका (1949) का नाम शामिल है. इसमें से इस्तोनिया, लातविया और नॉर्वे की सीमा ही रूस से मिलती है, जो कि बेहद कम है. लेकिन यूक्रेन के नाटो में शामिल हो जाने के बाद रूस तक नाटो देशों की पहुंच का इलाका काफी बढ़ जाएगा.

Ukrain Vs Russia 1

क्रीमिया की सड़कों पर रूसी युद्धक गाड़ियां (तस्वीर- पीटीआई)

नाटो पर हमला मतलब अमेरिका पर हमला

नाटो की स्थापना सुरक्षा के मद्देनजर की गई थी, इसके सदस्य देशों का उद्देश्य था कि अगर संगठन के किसी भी मेंबर देश पर कोई बाहरी देश आक्रमण करता है तो सभी मिलकर उसका मुकाबला करेंगे. यानी सीधा सीधा संदेश था कि अगर कोई भी देश नाटो के सदस्य देशों पर हमला करता है तो उस हमले को अमेरिका पर हमला माना जाएगा.

इधर रूस ने भी कुछ देशों के साथ लेकर एक संगठन का निर्माण किया और उसे नाम दिया गया डब्ल्यूटीओ यानी वार्सा ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन. अब सवाल उठता है कि जब सब देश इन दो धूरियों में बंटने के लिए उतावले दिख रहे थे तो भारत कहां था. इसका जवाब ये है कि भारत ने एक तीसरा मोर्चा बनाया जिसे NAM यानी नॉन अलायमेंट मूवमेंट (गुटनिरपेक्ष आंदोलन) के नाम से जाना गया. दरअसल, ये उन देशों का संगठन था जो न तो अमेरिका के साथ थे और न ही रूस के साथ थे.

1991 में अमेरिका के हाथ लगी बाजी

1991 तक दोनों गुटों ने एक दूसरे को समाप्त करने की तमाम कोशिशें की, लेकिन अमेरिका यहां बाजी मार गया. 1991 में रूस के नेतृत्व वाले सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक संघ (USSR) की अर्थव्यवस्था के खस्ता होने व उसके कई हिस्सों में असहमति बनने के कारण, वो 15 टुकड़ों में बंट गया यानी 15 हिस्से अलग होकर 15 नए देश बन गए. इसी में से एक था यूक्रेन, जिसे लेकर अभी पूरा बवाल मचा हुआ है. यूक्रेन सोवियत संघ यानी यूएसएसआर के विघटन के बाद अलग होने वाले 15 नए देशों में रूस के बाद दूसरा सबसे शक्तिशाली सोवियत गणराज्य था.

Whatsapp Image 2022 02 08 At 12.41.20 Pm

यूएसएसआर का विघटन हुआ तो बन गए नए 15 देश

कब हुई USSR में यूक्रेन की एंट्री?

यूक्रेन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक संघ (यूएसएसआर) में कब शामिल हुआ? दरअसल, इसे समझने के लिए रूसी क्रांति तक पहुंचना होगा. साल 1917 में रूस में एक क्रांति हुई और ये क्रांति वहां के शासक के खिलाफ हुई, जिसके परिणाम स्वरूप 1918 में यूक्रेन भी रूसी शासक के चंगुल से आजाद हुआ. लेकिन ये आजादी ज्यादा दिनों तक नहीं रह पाई और साल 1921 में लेनिन की रेड आर्मी ने यूक्रेन पर कब्जा कर लिया. हालांकि, रूसी क्रांति के बाद 1922 में यूएसएसआर की स्थापना हुई. ये 15 अलग-अलग सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक का एक यूनियन था. इसी में से एक देश था यूक्रेन.

Whatsapp Image 2022 02 08 At 12.06.48 Pm

क्रीमिया पर रूस ने 2014 में किया था कब्जा

1991 में यूएसएसआर से अलग होने के बाद भी यूक्रेन रूस के साथ खड़ा था. लेकिन विवाद तब शुरू हुआ जब रूस ने साल 2014 में यूक्रेन के एक हिस्से को जिसे क्रीमिया के नाम से जाना जाता है, पर हमला किया और उसे रूस में मिला लिया. इसके बाद अमेरिका ने रूस पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए. साथ ही रूस को जी8 से भी बाहर होना पड़ा.

इसके बाद यूक्रेन को लगा कि अगर हम अभी नहीं जागे तो रूस हमें पूरी तरह अपने कब्जे में ले लेगा. इस डर के कारण यूक्रेन ने नाटो से हाथ मिलाने की योजना बनाई. यूक्रेन को लगा कि अगर वो नाटो का सदस्य बन जाता है तो रूस उस पर कभी हमला नहीं कर पाएगा क्योंकि नाटो पर हमले का मतलब अमेरिका पर हमला.

रूस को भी ये बात अच्छे से पता है कि अगर यूक्रेन भी नाटो का सदस्य बन गया तो नाटो रूस की एक लंबी सीमा तक पहुंच बना लेगा और फिर कुछ भी ऊपर-नीचे होने पर, सभी 31 देश मिलकर रूस पर हमला कर सकते हैं. यही कारण है कि रूस ने अमेरिका से कहा है कि वो विवाद से दूर रहे और यूक्रेन को नाटो में एंट्री न दे.

Whatsapp Image 2022 02 08 At 11.31.39 Am (1)

यूक्रेन पर कभी भी हमला कर सकता है रूस

एक तीर से दो निशाने लगाने की फिराक में रूस

एक पक्ष की दलील ये भी है कि रूस यहां एक तीर से दो निशाने साध रहा है. वो एक तरफ यूक्रेन को नाटो से दूर रखना चाहता है ताकि वो भविष्य में कभी भी उसके खिलाफ खड़े होने की ताकत न जुटा सके. वहीं दूसरी तरफ वो यूक्रेन की सीमा पर तनाव पैदा कर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को खत्म करवाना चाहता है.

वर्तमान में यूक्रेन में एक गुट जिसमें नेता और वहां की जनता दोनों शामिल हैं, वो रूस में मिलने के लिए तैयार हैं. ये उस हिस्से के लोग हैं जिनकी सीमा रूस की सीमा से सटी हुई है. वहीं कुछ हिस्से की जनता चाहती है कि यूक्रेन यूरोपियन यूनियन के साथ बना रहे और नाटो से हाथ मिला ले.

यूक्रेन ने नाटो के साथ हाथ मिलाने की बात कब शुरू की?

साल 1997 में यूक्रेन-नाटो कमीशन बनाया गया था, जिससे यूक्रेन नाटो संगठन का पार्टनर बन सके. साल 2008 में यूक्रेन ने खुलकर कहा कि वो भी नाटो का मेंबर बनना चाहता है. इस दौरान यूक्रेन को नाटो से मैसेज मिला कि वो मेंबरशिप के लिए तैयारी करे. साल 2017 में यूक्रेन की संसद ने एक विधान पारित किया जिसमें ये कहा गया कि नाटो की सदस्यता पाना यूक्रेन की विदेश नीति का एक बड़ा उद्देश्य है.

दिसंबर 2021 में नाटो प्रमुख और यूक्रेन के राष्ट्रपति की मुलाकात हुई. इधर, नाटो को लेकर यूक्रेन की सक्रियता को देख रूस ने सीमा पर अपनी फौजों को तैनात करना शुरू कर दिया. वर्तमान में यूक्रेन की सीमा पर रूस ने 1 लाख से अधिक सैनिक, जंगी जहाज, टैंक, गोला-बारूद समेत कई अत्याधुनिक हथियारों की तैनाती कर दी है.

आभार—-tv9

Leave a Reply

error: Content is protected !!