विश्व व्यापार संगठन में सुधार के क्या उपाय हैं?

विश्व व्यापार संगठन में सुधार के क्या उपाय हैं?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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विश्व व्यापार संगठन में

सदस्य देश फ़रवरी 2024 में आहूत 13वीं मंत्रिस्तरीय बैठक के लिये अबू धाबी में मिलेंगे तो संगठन के विवाद निपटान तंत्र (Dispute Settlement Mechanism- DSM) में जारी संकट उनके लिये वार्ता का एक प्रमुख एजेंडा होगा। WTO के DSM में एक पैनल और एक अपीलीय निकाय (Appellate Body- AB) के साथ एक बाध्यकारी दो-स्तरीय प्रक्रिया शामिल है। वर्ष 2019 के उत्तरार्द्ध के बाद से यह निष्क्रिय बना हुआ है क्योंकि अमेरिका (जिसे AB के समक्ष प्रस्तुत कई महत्त्वपूर्ण विवादों में हार का सामना करना पड़ा है) ने एकतरफा तरीके से नए सदस्यों की नियुक्ति को बाधित कर रखा है।

WTO का विवाद निपटान तंत्र:

  • परामर्श:
    • औपचारिक विवाद शुरू करने से पहले, शिकायत करने वाले पक्ष को बचाव पक्ष से परामर्श का अनुरोध करना चाहिये। वार्ता के माध्यम से विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने की दिशा में यह पहला कदम होता है।
    • यह परामर्श विशिष्ट समयसीमा के भीतर आयोजित किया जाना चाहिये और इसमें शामिल पक्षकारों को पारस्परिक रूप से सहमत समाधान खोजने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
  • पैनल स्थापना:
    • यदि परामर्श विवाद को हल करने में विफल रहता है तो शिकायत करने वाला पक्ष विवाद निपटान पैनल की स्थापना का अनुरोध कर सकता है। विवाद निपटान निकाय (Dispute Settlement Body- DSB) इस प्रक्रिया की निगरानी करता है।
    • WTO सदस्यों के बीच विवादों के निपटान के लिये DSB के रूप में सामान्य परिषद (General Council) आहूत कि जाती है। DSB के पास निम्नलिखित शक्तियाँ हैं:
      • विवाद निपटान पैनल स्थापित करना,
      • मामलों को मध्यस्थता (arbitration) के लिये संदर्भित करना;
      • पैनल, अपीलीय निकाय और मध्यस्थता रिपोर्ट को अपनाना;
      • ऐसी रिपोर्टों में निहित सिफ़ारिशों और निर्णयों के कार्यान्वयन पर निगरानी बनाए रखना; और
      • उन सिफ़ारिशों और निर्णयों के ग़ैर-अनुपालन की स्थिति में रियायतों के निलंबन को अधिकृत करना।
    • पैनल का निर्माण व्यापार कानून और विवाद की विषय वस्तु में प्रासंगिक विशेषज्ञता रखने वाले स्वतंत्र विशेषज्ञों से किया जाता है। पैनल मामले की जाँच करता है, दोनों पक्षों के तर्कों की समीक्षा करता है और एक रिपोर्ट जारी करता है।
  • पैनल रिपोर्ट:
    • पैनल की रिपोर्ट में तथ्य के निष्कर्ष, कानूनी व्याख्याएँ और समाधान के लिये सिफ़ारिशें शामिल होती हैं। इसे सभी WTO सदस्यों के बीच प्रसारित किया जाता है, जिससे उन्हें इसकी समीक्षा करने और अपनी टिप्पणियाँ प्रदान करने की अनुमति मिलती है।
  • अंगीकरण या अपील:
    • DSB इस पैनल रिपोर्ट को अंगीकृत करता है यदि ऐसा करने के विरुद्ध आम सहमति न हो। यदि आम सहमति नहीं बनती है तो मामले की अपील अपीलीय निकाय के समक्ष की जा सकती है।
    • WTO का अपीलीय निकाय:
      • अपीलीय निकाय (Appellate Body) की स्थापना वर्ष 1995 में विवाद निपटान को नियंत्रित करने वाले नियमों एवं प्रक्रियाओं पर समझौता (Understanding on Rules and Procedures Governing the Settlement of Disputes- DSU) के अनुच्छेद 17 के तहत की गई थी।
      • यह सात-सदस्यीय स्थायी निकाय है जो WTO सदस्यों द्वारा उठाये गए विवादों पर पैनल द्वारा जारी रिपोर्टों पर की गई अपील की सुनवाई करता है। अपीलीय निकाय के सदस्य चार वर्ष के कार्यकाल के लिये नियुक्त किये जाते हैं।
      • यह पैनल के कानूनी अन्वेषण और निष्कर्षों को बरकरार रख सकता है, संशोधित कर सकता है या उन्हें पलट सकता है। अपीलीय निकाय की रिपोर्ट, यदि DSB द्वारा अंगीकृत कर ली जाती है तो फिर यह विवाद में शामिल पक्षकारों पर बाध्यकारी होती है।
      • अपीलीय निकाय की सीट जिनेवा, स्विट्जरलैंड में है।
  • सिफारिशों का कार्यान्वयन:
    • यदि कोई WTO सदस्य अपने दायित्वों का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है तो उससे WTO समझौतों के अनुपालन में अपने उपाय लागू करने की उम्मीद की जाती है।
    • यदि सदस्य ऐसा करने में विफल रहता है तो शिकायतकर्ता प्राधिकार से उस पर रियायतों या अन्य उपायों के निलंबन के माध्यम से जवाबी कार्रवाई करने की मांग कर सकता है।

विश्व व्यापार संगठन में सुधार के क्या उपाय हैं?

  • नए सदस्यों की नियुक्ति के प्रस्ताव का समर्थन करना:
    • आमतौर पर अपीलीय निकाय में नई नियुक्तियाँ WTO सदस्यों की आम सहमति से की जाती हैं, लेकिन जहाँ आम सहमति संभव नहीं है वहाँ मतदान का भी प्रावधान है।
    • भारत सहित 17 अल्पविकसित और विकासशील देशों का समूह, जो अपीलीय निकाय में गतिरोध को समाप्त करने के लिये मिलकर कार्य करने के लिये प्रतिबद्ध है, इस आशय का एक प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकता है और मतदान बहुमत से अपीलीय निकाय में नए सदस्यों को शामिल करने का प्रयास कर सकता है।
      • लेकिन इसके दुष्परिणाम भी उत्पन्न हो सकते हैं, क्योंकि सभी देश प्रत्यक्ष रूप से अमेरिका के वीटो का विरोध करने पर उसकी ओर से एकतरफा कार्रवाइयों का भय रखते हैं।
  • विधि उल्लंघन पर उपयुक्त दंड:
    • यदि किसी देश ने कुछ गलत किया है तो उसे शीघ्रता से अपनी गलतियों को सुधारना चाहिये। यदि वह किसी समझौते का उल्लंघन जारी रखता है तो उसे मुआवजे की पेशकश करनी चाहिये या उचित प्रतिक्रिया का सामना करना चाहिये जिसमें कुछ उपचार (remedy) शामिल हो –हालाँकि यह वास्तव में कोई दंड नहीं है, बल्कि एक ‘उपचार’ है और किसी भी देश के लिये नियमों का पालन करना ही अंतिम लक्ष्य होना चाहिये।
      • दोषी पाए जाने पर ऐसे देशों को ‘हरित जलवायु कोष’ में अनिवार्य रूप से एक विशेष राशि जमा करने के लिये बाध्य किया जा सकता है।
  • सुधारात्मक दृष्टिकोण:
    • सुधारात्मक दृष्टिकोण पर आधारित स्थायी दीर्घकालिक समाधानों में निवर्तमान सदस्यों के लिये एक संक्रमणकालीन नियम शामिल हो सकता है, जो उन्हें अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद भी लंबित अपीलों को पूरी तरह से निपटाने की अनुमति देता हो और नीतिगत क्षेत्र का अतिक्रमण किये बिना सहमत राष्ट्रीय कानूनों के अर्थ की अपीलीय निकाय द्वारा व्याख्या को सीमित करता हो, ताकि राष्ट्रों की संप्रभुता को सुरक्षित रखा जा सके।
  • सदस्यों की नियमित बैठक:
    • अन्य दीर्घकालिक समाधानों में प्रभावी संचार और तत्काल निवारण तंत्र सुनिश्चित करने के लिये अपीलीय निकाय के साथ WTO सदस्यों की नियमित बैठकें आयोजित करना शामिल हैं।
      • इस प्रकार, सभी देशों को संकट से निपटने के लिये एक साथ आना चाहिये ताकि सबसे खराब परिदृश्य का सामना न करना पड़े।
  • DSM पुनर्बहाली के लिये विकासशील देशों का आह्वान:
    • भारत सहित अन्य विकासशील देश, WTO के विवाद निपटान तंत्र (DSM) को उसकी पिछली कार्यात्मक स्थिति में बहाल करने की वकालत कर रहे हैं, जहाँ वे अपीलीय निकाय द्वारा प्रदत्त नियंत्रण एवं संतुलन के महत्त्व पर बल देते हैं।
  • विकासशील देशों के लिये विकल्प:
    • विकासशील देशों को WTO में दो-स्तरीय DSM बनाए रखने के लिये तीन विकल्पों का सामना करना पड़ता है: (a) यूरोपीय संघ के नेतृत्व वाली अंतरिम अपील मध्यस्थता व्यवस्था (Interim Appeal Arbitration Arrangement- MPIA) में शामिल होना, (b) एक कमज़ोर अपीलीय निकाय को स्वीकार करना, या (c) ऑप्ट-आउट प्रावधान वाले मूल अपीलीय निकाय को पुनर्जीवित करना।
      • अंतरिम समाधान के रूप में MPIA: विकासशील देशों के लिये पहला विकल्प यूरोपीय संघ के नेतृत्व वाले MPIA में शामिल होना है, जो एक बहुदलीय अंतरिम अपील मध्यस्थता व्यवस्था है जो मध्यस्थता तंत्र को औपचारिक बनाती है, लेकिन इसमें स्वैच्छिक प्रकृति और सार्वभौमिक अंगीकरण की कमी जैसी खामियाँ भी हैं।
      • कमज़ोर अपीलीय निकाय: दूसरे विकल्प में एक कमज़ोर (diluted) अपीलीय निकाय पर विचार करना शामिल है, जहाँ AB की शक्तियाँ सीमित होंगी, जो संभावित रूप से WTO कानून की अपेक्षाओं के विपरीत, बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था को सुरक्षा एवं पूर्वानुमान प्रदान करने की क्षमता में बाधा डालेगी।
      • अंतरिम समाधान के रूप में AB के लिये ऑप्ट-आउट प्रावधान: तीसरा अंतरिम विकल्प एक ऑप्ट-आउट प्रावधान के रूप में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव के साथ AB को पुनर्जीवित करने का सुझाव देता है। हालाँकि यह दो-स्तरीय बाध्यकारी DSM की प्रकृति को बदल सकता है, यह AB के वर्तमान स्वरूप को सुरक्षित रखने और स्वैच्छिक आधार पर अमेरिका को शामिल करने के संबंध में एक समझौते की स्थिति को इंगित कर सकता है।

WTO की 13वीं मंत्रिस्तरीय बैठक अक्षम विवाद निपटान तंत्र (DSM) के महत्त्वपूर्ण मुद्दे का सामना करेगी, जो वर्ष 2019 से अमेरिका द्वारा अपीलीय निकाय में नए सदस्यों की नियुक्ति को रोकने का परिणाम है। पूरी तरह कार्यात्मक DSM की पुनर्बहाली के प्रयास को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

क्योंकि अमेरिका न्यायपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों के प्रति अनिच्छा रखता है। जबकि आदर्श समाधान यह होगा कि अपीलीय निकाय को वर्ष 2019 तक की पूर्वस्थिति में पुनर्बहाल किया जाए, इच्छुक देशों के लिये AB की स्थिति से समझौता करना WTO में उनकी आवश्यक भूमिका की रक्षा के लिये एक व्यावहारिक विकल्प हो सकता है।

 

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