कफ सीरप मामले में अब तक क्या-क्या हुआ?

कफ सीरप मामले में अब तक क्या-क्या हुआ?

जहरीले कफ सीरप में 23 बच्चों की मौत हो चुकी है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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जहरीले कफ सीरप मामले में तमिलनाडु के अधिकारी भी आरोपित बनाए जा सकते हैं। कांचीपुरम स्थित श्रीसन फार्मास्युटिकल की अनियमितताओं पर तमिलनाडु के औषधि प्रशासन विभाग ने समय रहते ध्यान नहीं दिया। 39 गंभीर अनियमितताओं के बाद भी कंपनी चलती रही।

उधर, विषाक्त कफ सीरप ‘कोल्ड्रिफ’ बनाने वाली कंपनी श्रीसन फार्मास्युटिकल के मालिक जी. रंगनाथन से दो दिन की पूछताछ में मध्य प्रदेश एसआईटी कुछ खास नहीं निकलवा सकी। वह बार-बार यही दोहरा रहा है कि मेरी तरफ से कोई गलती नहीं हुई है। एसआईटी अब उसे लेकर तमिलनाडु जाएगी।

अब एफआईआर में लगे आरोपों के आधार पर एसआईटी साक्ष्य एकत्र करेगी। उत्पादन और गुणवत्ता नियंत्रण का काम देख रहे कंपनी के अधिकारी-कर्मचारियों को रंगनाथन के साथ बैठाकर पूछताछ की जाएगी। एसआईटी के निशाने पर कंपनी के उक्त दोनों विभागों के अधिकारी-कर्मचारी भी हैं। इन्हें भी आरोपित बनाया जा सकता है।

पुलिस ने लिया है रिमांड पर

छिंदवाड़ा पुलिस ने कोर्ट से 20 अक्टूबर तक के लिए रंगनाथन को पूछताछ के लिए रिमांड पर लिया है। कांचीपुरम स्थित श्रीसन फार्मास्युटिकल की अनियमितताओं पर तमिलनाडु के औषधि प्रशासन विभाग ने समय रहते ध्यान नहीं दिया। 39 गंभीर अनियमितताओं के बाद भी कंपनी चलती रही।

एसआईटी के साथ गई औषधि निरीक्षकों ने वहां के औषधि प्रशासन विभाग से कंपनी में उनके द्वारा दो और तीन अक्टूबर को उत्पादन इकाई में की गई जांच की रिपोर्ट ली है। इसमें यह भी देखा जा रहा है कि औषधि प्रशासन विभाग ने क्या-क्या लापरवाही की। एसआईटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि परीक्षण के बाद वहां के औषधि प्रशासन विभाग के अधिकारियों को भी आरोपित बनाया जा सकता है।

तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर के बाहरी इलाके में एक छोटे दवा कारखाने के दरवाजे अब बंद हैं। श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स नाम की इस कंपनी को लेकर तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट ने पाया कि उसने ड्रग्स और कास्मेटिक्स अधिनियम के तहत 364 उल्लंघन किए। यहां बना कफ सीरप कोल्ड्रिफ मध्य प्रदेश और राजस्थान में 25 बच्चों की जिंदगी लील गया। इस सीरप में डाइथिलीन ग्लाइकोल जैसा विषैला तत्व मिला।

यह किडनी और लिवर को क्षति पहुंचाता है। निर्माण के अलावा कंपनी के स्तर पर और भी लापरवाही बरती गई। जैसे पैकिंग पर अनिवार्य चेतावनी नहीं दी गई कि चार साल से कम उम्र के बच्चों को इसका सेवन न करने दिया जाए। यह कोई पहली और अलग घटना नहीं है। गांबिया और उज्बेकिस्तान से लेकर मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा तक एक ही कहानी सामने आती है। इस कहानी में छोटे स्तर पर उत्पादन करने वाले नियमों को धता बताते हैं, निगरानी कमजोर और मामला बिगड़ने पर प्रतिक्रिया धीमी होती है।

यह मामला दर्शाता है कि भारत की विकेंद्रीकृत और अक्षम दवा नियामक प्रणाली खतरनाक रूप से पुरानी पड़ चुकी है। ऐसे मामले ‘दुनिया की फार्मेसी’ के रूप में पहचान बनाने वाले भारत की प्रतिष्ठा भी धूमिल करते हैं। करीब 200 से अधिक देशों को किफायती दवाएं उपलब्ध कराकर भारत वैश्विक जेनेरिक दवा बाजार का अग्रणी खिलाड़ी है। पीएम जन औषधि योजना की सफलता में जेनेरिक दवाओं की अहम भूमिका है। इसके तहत 5,600 करोड़ रुपये की दवाएं बेची गई हैं।

श्रीसन मामला दिखाता है कि कैसे लापरवाहियों की अनदेखी होती है। यह 10 से भी कम कर्मियों के भरोसे चल रही थी। फिल्ट्रेशन सिस्टम और रिकाल तंत्र भी नहीं था। फिर भी उसे 2026 तक लाइसेंस हासिल था। चंडीगढ़ स्थित पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के डाक्टरों ने 2024 के एक अध्ययन में यह स्पष्ट किया।

एंटीफंगल दवा इट्राकोनाजोल के 22 जेनेरिक संस्करणों की तुलना में उन्होंने पाया कि केवल 29 प्रतिशत जेनेरिक दवाओं ने दो सप्ताह में अपेक्षित स्तर हासिल किया, जबकि पेटेंट दवाओं में यह स्तर 73 प्रतिशत तक था। जेनेरिक दवाओं में छोटे-असमान आकार के पेलेट मिले, जो अवशोषण और प्रभावशीलता को प्रभावित करते थे। ये ऐसा अंतर नहीं, जो जानबूझकर छोड़ा जाए, बल्कि यह इसी को रेखांकित करता है कि असमान निर्माण मानक और कमजोर निगरानी परिणामों को कैसे प्रभावित करती है।

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