प्रोफेसर फ्रांसेस्का ऑर्सिनी का हिंदी साहित्य में क्या योगदान है?

प्रोफेसर फ्रांसेस्का ऑर्सिनी का हिंदी साहित्य में क्या योगदान है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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नई दिल्ली स्थति इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से बीते दिनों लंदन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर फ्रांसेस्का ऑर्सिनी को डिपोर्ट कर दिया गया था. वह हांगकांग से भारत पहुंची थी, लेकिन वीजा संबंधी नियमों के उल्लघंन के चलते उन्हें एयरपोर्ट से ही वापस जाना पड़ा. प्रोफेसर फ्रांसेस्का ऑर्सिनी को डिपोर्ट किए जाने के बाद से भारत के कई साहित्यकारों ने इस पर आपत्ति जताई है. इस दौरान अधिकांश साहित्यकार हिंदी के लिए उनके योगदान का रेखांकित कर रहे हैं.

मां की वजह से जुड़ा हिंदी से संबंध, इटली से हिंदी में स्नातक

प्रोफेसर फ्रांसेस्का ऑर्सिनी की दुनिया भर में पहचान हिंदी साहित्यकार की है. मूलरूप से इटली की रहने वाली प्रोफेसर फ्रांसेस्का ऑर्सिनी का हिंदी से रिश्ता उनकी मां की वजह से जुड़ा. असल में उनकी मां भी साहित्यकार थीं, जिनकी लाइब्रेरी में कई भाषाओं की किताबें थी, ऑर्सिनी स्वीकार चुकी हैं कि यहीं से उनका हिंदी के प्रति रूझान शुरू हुआ. इसी कड़ी में उन्होंने इटली की वेनिस यूनिवर्सिटी से हिंदी में ग्रेजुएशन किया.

प्रेमचंद की पोती से मित्रता, जेएनयू से पढ़ाई

इटली से हिंदी साहित्य में ग्रेजुएशन करने के बाद फ्रांसेस्का ऑर्सिनी ने अपनी हिंदी यात्रा को सफल बनाने के लिए भारत भ्रमण की योजना बनाई, जिसके तहत वह बनारस आई. बनारस में नागरी प्रचारणी सभा में वह एक महीने तक रहीं. इस दौरान उनकी मुलाकात हिंदी साहित्य के कथा सम्राट प्रेमचंद की पोती से हुई.

फ्रांसेस्का ऑर्सिनी को इसके बाद केंद्रीय हिंदी संस्थान से स्कॉलरशिप मिली और उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए नई दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में दाखिला ले लिया. जेएनयू में उन्हें हिंदी आलोचक नामवर सिंह ने पढ़ाया.

SOAS से पीएचडी

फ्रांसेस्का ऑर्सिनी ने लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज से पीएचडी की है. मौजूदा समय में वह SOAS में ही प्रोफेसर एमेरिट्स हैं.

हिंदी साहित्य में क्या है उनका योगदान?

हिंदी साहित्य में प्रोफेसर फ्रांसेस्का ऑर्सिनी के योगदान की बात करें तो उनकी कुछ किताबें बेहद ही लोकप्रिय हैं, जिसमें ईस्ट ऑफ दिल्ली: मल्टीलिंगुअल लिटरेरी कल्चर एंड वर्ल्ड लिटरेचर, प्रिंट एंड प्लेजर: पॉपुलर लिटरेचर एंड एंटरटेनिंग फिक्शन्स इन कॉलोनियल नॉर्थ इंडिया और द हिंदी पब्लिक स्फीयर 19201940: लैंग्वेज एंड लिटरेचर इन द एज ऑफ नेशनलिज्म शामिल हैं.

वहीं उन्हें हिंदी और उर्दू साहित्य की साझा विरासत काे समझने वाला साहित्यकार माना जाता है, जबकि उनका शाेध प्राेजेक्ट विशेष रूप से अवध-इलाहाबाद की संस्कृति और भाषा पर केंद्रित है.

हिंदी साहित्य में प्रोफेसर फ्रांसेस्का ऑर्सिनी के योगदान को रेखांकित करते प्रो पुरुषोत्तम अग्रवाल ने साेशल मीडिया प्लेटफाॅर्म एक्स में पोस्ट किया है. प्रो अग्रवाल लिखते हैं, ” फ्रेंचेस्का ओरसिनी ने आधुनिक हिन्दी लोकवृत्त के निर्माण पर जो काम किया है, वह मील के पत्थर की हैसियत रखता है. इसके अलावा, आरंभिक आधुनिक कालीन भारत में विभिन्न ज्ञानकांडों और भाषा तथा इतिहास के अध्ययन, अध्यापन संदर्भों के बहुविध परीक्षण में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया है”.

प्रोफेसर अग्रवाल ने लिखा है, ”हिन्दी साहित्य के इतिहासलेखन की समस्याओं से आरंभ कर साहित्येतिहास मात्र के लेखन पर उन्होंने वियार किया है. इन क्षेत्रों में व्यक्तिगत योगदान के साथ ही अनेक महत्वपूर्ण संगोष्ठियों का आयोजन और इनमें हुई बातचीत का संपादन, प्रकाशन किया है.

कैंब्रिज विश्वविद्यालय से सोआस ( स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज) तक अध्यापन से लेकर विश्वविद्यालयीन प्रशासन तक के कामों में समर्पण और दक्षता के लिए उन्होंने सम्मान अर्जित किया है.”

 

 

 

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