टीबी संकट को कम करने के लिये कौन-से कदम उठाये जाने चाहिये?

टीबी संकट को कम करने के लिये कौन-से कदम उठाये जाने चाहिये?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

  • रोगियों और समुदायों की आवश्यकताओं एवं हितों को प्राथमिकता देना :
    • देखभाल प्रतिमान और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के भीतर रोगियों और समुदायों की आवश्यकताओं एवं हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। उत्तरजीवी लोगों, समुदायों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं द्वारा प्रतिध्वनित यह सिद्धांत, टीबी देखभाल और प्रबंधन के लिये एक व्यक्ति-केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • व्यक्ति-केंद्रित दृष्टिकोण का पालन:
    • टीबी के उत्तरजीवी लोगों (TB survivors) के बीच प्रभावशाली पैरोकारों का उदय हुआ है जिन्होंने विमर्श में प्रभावित समुदायों की आवश्यकताओं को शामिल करने पर अत्यंत बल दिया है। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव की वकालत की है, जिससे सरकारों को इन सामुदायिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपने दृष्टिकोण को समायोजित करना पड़ा है।
      • उदाहरण के लिये, भले ही सीमित रूप से लेकिन पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने में कुछ प्रगति हुई है, जो एक महत्त्वपूर्ण उन्नति का प्रतीक है।
  • नीतिगत मंशा और ज़मीनी वास्तविकता के बीच के अंतराल को दूर करना:
    • नीतिगत मंशा और ज़मीनी वास्तविकता के बीच के अंतराल को दूर करने की ज़रूरत है। उदाहरण के लिये, भारत को टीबी निदान एवं उपचार तक पहुँच में सुधार और विस्तार के उद्देश्य से लक्षित हस्तक्षेपों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
    • टीबी परीक्षण सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिये, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में, और निःशुल्क, सस्ती एवं गुणवत्तापूर्ण टीबी दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिये।
      • आणविक परीक्षण एक स्वर्ण मानक है लेकिन लक्षणयुक्त रोगियों के एक चौथाई से भी कम को अपने पहले परीक्षण के रूप में इसकी सुविधा मिला पा रही है।
  • टीबी देखभाल को और अधिक मानवीय बनाना:
    • समुदाय-आधारित टीबी देखभाल मॉडल को सुदृढ़ करने (जहाँ अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं को व्यापक देखभाल प्रदान करने के लिये सशक्त बनाना शामिल है) के लिये वृहत प्रयासों की आवश्यकता है, जो न केवल उपचार को बल्कि सामाजिक, आर्थिक एवं मानसिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को भी संबोधित करे तथा यह मरीजों को उनके अपने क्षेत्र में ही उपलब्ध हो।
    • यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उत्तरजीवी की कहानियाँ हमें बताती हैं कि वे किस कलंक, भेदभाव और मानसिक तनाव से गुज़रते हैं, जबकि उपचार के दुष्प्रभाव भी एक गंभीर विषय है।
  • बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाना:
    • टीबी के सामाजिक-आर्थिक निर्धारकों को संबोधित करने के लिये बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है। गरीबी उन्मूलन, पोषण संबंधी स्थिति में सुधार, अच्छे हवादार आवास और बेहतर वायु गुणवत्ता—ये सभी टीबी को कम करने में योगदान देंगे।
    • टीबी के अंतर्निहित मूल कारणों से निपटकर, भारत इस बीमारी का उन्मूलन करने और अपनी आबादी के समग्र स्वास्थ्य एवं कल्याण में सुधार करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर सकता है।
  • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना:
    • प्रौद्योगिकी और नवाचार का लाभ उठाने से भारत में टीबी देखभाल प्रयासों को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। टीबी निदान, अनुपालन एवं निगरानी के लिये AI और डिजिटल स्वास्थ्य समाधानों को अपनाने से देश में टीबी देखभाल प्रदान करने एवं इस तक पहुँच के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। बेहतर टीके विकसित करने में निवेश कर, हम अंततः इस वायुजनित बीमारी का उन्मूलन करने की उम्मीद कर सकते हैं।
      • एक्स-रे प्रौद्योगिकी व्यापक रूप से उन्नत हो गई है। अब हमारे पास न केवल पोर्टेबल हैंड-हेल्ड डिवाइस हैं, बल्कि AI द्वारा संचालित सॉफ्टवेयर भी है जो डिजिटल एक्स-रे छवियों को पढ़ सकता है और उच्च स्तर की निश्चितता के साथ संभावित टीबी का पता लगा सकता है।
  • टीबी के बोझ को दूर करने के लिये 8-सूत्रीय एजेंडा लागू करना:
    • शीघ्र पता लगाना (Early Detection): टीबी की प्रकृति या व्याधि-निदान विज्ञान (aetiology) को देखते हुए, इसका शीघ्र पता लगाना महत्त्वपूर्ण है। इसके लक्षणों की प्रायः उपेक्षा की जाती है और भ्रमवंश उन्हें अन्य सामान्य बीमारियाँ समझ लिया जाता है, जिससे रिपोर्ट करने में देरी होती है। प्रत्येक प्रथम मामले या इंडेक्स केस में उसके परिवार और अन्य संपर्कों के लिये अनिवार्य जाँच आवश्यक है, जिसके लिये स्वास्थ्य प्रणालियों के भीतर प्रयोगशाला सुविधाओं और कुशल अनुवर्ती तंत्र की उपलब्धता आवश्यक है।
    • सटीक उपचार वर्गीकरण: DR-TB की वृद्धि के साथ, निदान के समय प्रतिरोध की स्थिति का ज्ञात होना अनिवार्य है ताकि उनकी फेनोटाइपिक संवेदनशीलता के अनुसार उचित उपचार पथ्य निर्धारित किये जा सकें।
    • उपचार का पालन और अनुवर्ती कार्रवाई: अन्य जीवाणुजन्य रोगों के विपरीत, टीबी के लिये लंबे समय तक निरंतर उपचार की आवश्यकता होती है। इससे प्रायः गैर-अनुपालन की स्थिति बनती है, जो स्वास्थ्य की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार या निवास स्थान में परिवर्तन, राज्यों एवं ज़िलों के बीच आवाजाही आदि के कारण प्रेरित हो सकता है।
    • शून्य मृत्यु दर: टीबी (चाहे वह DR-TB हो या नॉन-पल्मोनेरी टीबी) के कारण मृत्यु दर को कम करना वर्ष 2025 तक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक है।
    • उपयुक्त दवाओं की उपलब्धता: टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के तहत सुनिश्चित चिकित्सा आपूर्ति निर्दिष्ट है। हालाँकि DR-TB दवाओं (जैसे कि बेडाक्विलिन और डेलामेनिड) की खरीद से जुड़ी चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिये और इसके साथ ही सभी DR-TB मामलों के लिये (जहाँ रोगी भर्ती देखभाल की आवश्यकता होती है) उपचार सुविधाओं का पता लगाया जाना चाहिये।
    • बड़ी स्वास्थ्य प्रणालियों में एकीकरण: सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों और निजी स्वास्थ्य प्रणालियों के विभिन्न स्तरों के भीतर तथा उनके बीच रेफरल नेटवर्क को सुदृढ़ करना यह सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है कि (a) कोई भी लक्षणसूचक मामला छूटे नहीं, (b) कोई भी मरीज अपनी खुराक लेने से चूक न जाए और गैर-अनुपालन न करे, और (c) फुफ्फुसीय टीबी मामलों (DR or non-DR) के सभी पॉजिटिव मामलों के लिये संपर्कों की भी स्क्रीनिंग हो।
    • सक्षम अधिसूचना प्रणाली: एक मज़बूत अधिसूचना प्रणाली स्वास्थ्य प्रणाली कर्मियों के बोझ को कम करेगी। इस क्रम में ‘निक्षय’ का विकास किया गया है लेकिन इसमें क्षेत्रों, चिकित्सकों, समय और स्थानों के बीच रियल-टाइम टीबी डेटा को प्राप्त कर सकने के लिये सुधार की ज़रूरत है। उल्लेखनीय है कि निक्षय (नि= अंत, क्षय= टीबी) राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) के तहत टीबी नियंत्रण के लिये वेब सक्षम रोगी प्रबंधन प्रणाली है।
    • जनसंख्या गतिशीलता और प्रवासन पर विचार करना: प्रायः बीमारी और स्वास्थ्य देखभाल की मांग पर चर्चा करते समय (विशेष रूप से टीबी के संदर्भ में जो सामाजिक और सांस्कृतिक कलंक से ग्रस्त है) जीवन के उत्पादक पहलुओं की उपेक्षा कर दी जाती है। उल्लेखनीय है कि एक बार जब टीबी का निदान हो जाता है और इसके सकारात्मक मामलों को उपचार के अंदर रखा जाता है तो रोगी का स्वास्थ्य त्वरित रूप से पुनर्बहाल होने लगता है जिससे वह अपनी दैनिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने में सक्षम होने लगता है। इसलिये, देश के भीतर टीबी उपचार की सुवाह्यता (portability) नीति स्तर पर अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

टीबी से निपटने के लिये कौन-सी पहलें की गई हैं?

  • वैश्विक प्रयास:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) ने ग्लोबल फंड और ‘स्टॉप टीबी पार्टनरशिप’ के साथ “Find. Treat. All. #EndTB” नामक संयुक्त पहल शुरू की है।
    • WHO ‘ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट’ भी जारी करता है।
  • भारत के प्रयास:
    • प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान
    • क्षय रोग उन्मूलन हेतु राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017-2025)।
    • टीबी हारेगा देश जीतेगा अभियान
    • निक्षय पोषण योजना

भारत में टीबी उन्मूलन की राह में व्यक्ति-केंद्रित देखभाल को प्राथमिकता देने, स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को संबोधित करने और नवाचार को अपनाने के लिये ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है। भारत समग्र और व्यक्ति-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाकर टीबी नियंत्रण की राह में मौजूद बाधाओं को दूर कर सकता है और अपने सभी नागरिकों के लिये एक स्वस्थ भविष्य का निर्माण कर सकता है।

आवश्यकता इस बात की है कि कार्यान्वयन में सुधार किया जाए और नई प्रौद्योगिकियों को तैनात करने में अधिक सक्रिय हुआ जाए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि नई प्रौद्योगिकियों को सुव्यवस्थित किया जाए और तेज़ी से लागू किया जाए तथा आवश्यकतानुसार नैदानिक परीक्षणों करने के लिये उप-ज़िला स्तर पर क्षमता का निर्माण किया जाए।

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