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ओबीसी आरक्षण पर संविधान संशोधन विधेयक के क्या होंगे फायदे?

ओबीसी आरक्षण पर संविधान संशोधन विधेयक के क्या होंगे फायदे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC List, Parliament) को आरक्षण से जुड़ा जो बिल लोकसभा में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से पेश किया गया है, उसका असर दूरगामी भी है और राजनीतिक भी. पेगासस के मुद्दे (Pegasus Issue) पर लगभग मानसून सत्र बर्बाद हो गया, लेकिन ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) पर संविधान (127वां संशोधन) बिल, 2021 को सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रही 15 पार्टियों का भी समर्थन मिल गया है. इसलिए इस विधेयक के पास होने की संभावना बढ़ गयी है.

संविधान के अनुच्छेद 342 A और 366 (26) C में संशोधन को अगर आज संसद में मंजूरी मिल जाती है, तो राज्यों को ओबीसी सूची (OBC List) बनाने का अधिकार मिल जायेगा. इसका मतलब ये हुआ कि राज्य सरकारें अपनी मर्जी से किसी भी जाति को ओबीसी की सूची में शामिल करके उन्हें आरक्षण का लाभ दे सकेंगी. मराठा, जाट, पटेल, लिंगायत सहित कई वर्ग लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहे हैं. आरक्षण के मुद्दे पर ओबीसी ने सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई की है.

102रे संविधान संशोधन कानून 2018 में आर्टिकल 338बी और 342ए को जोड़ा गया था. 338बी राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के ढांचा, कार्यक्षेत्र और अधिकार को से जुड़ा है, तो 342ए किसी भी जाति को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग में शामिल करने को अधिसूचित करने के राष्ट्रपति के अधिकार से जुड़ा है. इस संशोधन विधेयक के पास हो जाने के बाद राज्य सरकारों को अपने हिसाब से किसी भी जाति को ओबीसी (Other Backward Class) में शामिल करने का अधिकार मिल जायेगा.

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राज्य सरकारों को ओबीसी की अपनी सूची बनाने की मांग करने के लिए अब तक कई आंदोलन हुए हैं. कहीं लोगों ने धर्मांतरण कर लिया, तो कहीं कोर्ट की शरण ली. गुजरात में पटेलों ने जबर्दस्त आंदोलन खड़ा किया, तो जाटों ने राजस्थान में रेल पटरी जाम करके पूरे देश को कई बार हिला दिया. ऐसे ही कुछ मामले इस प्रकार हैं-

सूरत में पटेलों ने आरक्षण के लिए धर्मांतरण की धमकी दी

अक्टूबर 2015 में गुजरात में पटेल समुदाय के कम से कम 500 परिवारों ने धर्मांतरण की धमकी दी. कहा कि ओबीसी का आरक्षण नहीं मिला, तो वे हिंदू धर्म छोड़कर अन्य धर्म अपना लेंगे. धमकी देने वाले ये लोग सूरत शहर के निकट पसोदरा गांव के रहने वाले थे. इन्होंने कहा कि राज्य सरकार उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं दे रही है. इसलिए धर्म परिवर्तन करना उनकी ‘मजबूरी’ है.

राजस्थान में नये सिरे से सर्वे कराने का हाइकोर्ट ने दिया आदेश

अगस्त 2015 में राजस्थान हाइकोर्ट ने ओबीसी का नये सिरे से सर्वे करने का आदेश दिया था. हाइकोर्ट ने धौलपुर और भरतपुर जिलों के जाट समुदाय को आरक्षण सूची से बाहर कर दिया था. हालांकि, इन दो जिलों के जाटों को छोड़कर प्रदेश के अन्य जिलों के जाटों को इसका लाभ अब भी मिल रहा है. वर्ष 1999 में केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी नीत एनडीए सरकार ने जाटों को आरक्षण दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने जाटों को आरक्षण पर केंद्र से मांगा जवाब

जाटों को ओबीसी में शामिल करने के मामले में केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2014 में जवाब मांगा था. अदालत ने आरक्षण लाभ से इस समुदाय को अलग रखने के बारे में राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सलाह को कथित रूप से दरकिनार किये जाने पर केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा था.

कांग्रेस समेत 15 विपक्षी दल सरकार के साथ

कांग्रेस समेत 15 पार्टियों ने नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से पेश किये गये इस बिल को समर्थन दिया है. बिल को समर्थन देने वाली पार्टियों में कांग्रेस, द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (डीएमके), अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), शिव सेना, समाजवादी पार्टी (सपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम), राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), आम आदमी पार्टी (आप), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), लोकतांत्रिक जनता दल (एलजेडी), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) और केरल कांग्रेस एम (केसी एम) शामिल हैं.

संविधान संशोधन विधेयक क्यों?

संविधान (102रा संशोधन) बिल, 2018 के कुछ प्रावधानों को स्पष्ट करने के लिए सरकार ने संविधान (127वां संशोधन) बिल, 2021 को संसद में पेश किया गया. इस बिल के पारित होने के साथ ही राज्यों को अपने यहां जातियों को ओबीसी वर्ग में शामिल करने का अधिकार मिल जायेगा. लंबे अरसे से क्षेत्रीय पार्टियां इसकी मांग कर रहीं थीं. यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कुछ कद्दावर नेता, जो ओबीसी समाज से आते हैं, इसकी मांग कर रहे थे.

नया कानून सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को निष्प्रभावी कर देगा, जिसमें कहा गया था कि वर्ष 2018 के संविधान संशोधन के बाद सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गोें को ओबीसी में शामिल करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है, राज्यों के पास नहीं. यहां बताना प्रासंगिक होगा कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की श्रेणी में रखा गया है. सामाजिक और शैक्षणिक रूप से इन्हें सक्षम बनाने के लिए ही संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गयी है.

ओबीसी में शामिल होने के फायदे

अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उत्थान के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कई कार्यक्रम और योजनाएं चलाती हैं. ओबी श्रेणी के लोगों शिक्षण संस्थानों के साथ-साथ नौकरी में भी आरक्षण का लाभ दिया जाता है, जो इस प्रकार है-

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