उन बुजुर्गों का क्या होगा जो अपना सब कुछ बच्चों को समर्थ बनाने में दाव पर लगा दिया था?

उन बुजुर्गों का क्या होगा जो अपना सब कुछ बच्चों को समर्थ बनाने में दाव पर लगा दिया था?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस

कुछ नही मांगते वो …और ,केवल बुजुर्ग दिवस मनाने से बुजुर्गों की परेशानी कम नहीं हो सकती..उन्हें आज की पीढ़ी से सिर्फ प्यार के अलावा कुछ नहीं चाहिए..दुःख होता है उन बुजुर्गों को देख कर जो आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर न होते हुए भी, जीवन के आखिरी पड़ाव में अपने बच्चों के स्नेह और प्यार के लिए तरसते हैं…आज की पीढ़ी इतनी आत्मकेंद्रित होती जा रही है की वह भूल जाते हैं की वह भी कभी इस अवस्था को पहुंचेंगे…यह सोच कर ही रूह काँप जाती है की उन बुजुर्गों का क्या होता होगा जो आर्थिक रूप से असमर्थ हैं और जिन्होंने अपना सब कुछ बच्चों को समर्थ बनाने में दाव पर लगा दिया था……

एक पेड़ जितना ज्यादा बड़ा होता है वह उतना ही अधिक झुका हुआ होता है यानि वह उतना ही विनम्र और दूसरों को फल देने वाला होता है. यही बात समाज के उस वर्ग के साथ भी लागू होती है जिसे आज की तथाकथित युवा और एजुकेटेड पीढ़ी बूढ़ा कहकर वृद्धाश्रम में छोड़ देती है. वह लोग भूल जाते हैं कि अनुभव का कोई दूसरा विकल्प दुनिया में है ही नहीं. अनुभव के सहारे ही दुनिया भर में बुजुर्ग लोगों ने अपनी अलग दुनिया बना रखी है.

जिस घर को बनाने में एक इंसान अपनी पूरी जिंदगी लगा देता है, वृद्ध होने के बाद उसे उसी घर में एक तुच्छ वस्तु समझी जाता है. बड़े बूढ़ों के साथ यह व्यवहार देखकर लगता है जैसे हमारे संस्कार ही मर गए हैं. बुजुर्गों के साथ होने वाले अन्याय के पीछे एक मुख्य वजह सोशल स्टेटस मानी जाती है. सब जानते हैं कि आज हर इंसान समाज में खुद को बड़ा दिखाना चाहता है और दिखावे की आड़ में बुजुर्ग लोग उसे अपनी सुंदरता पर एक काला दाग दिखते हैं.

बड़े घरों और अमीर लोगों की पार्टी में हाथ में छड़ी लिए और किसी के सहारे चलने वाले बुढ़ों को अधिक नहीं देखा जाता वजह वह इन बुढ़े लोगों को अपनी आलीशान पार्टी में शामिल करना तथाकथित शान के खिलाफ समझते हैं. यही रुढ़िवादी सोच उच्च वर्ग से मध्यम वर्ग की तरफ चली आती है. आज के समाज में मध्यम वर्ग में भी वृद्धों के प्रति स्नेह की भावना कम हो गई है.

वृद्ध होने के बाद इंसान को कई रोगों का सामना करना पड़ता है. चलने फिरने में भी दिक्कत होती है. लेकिन यह इस समाज का एक सच है कि जो आज जवान है उसे कल बुढ़ा भी होना होगा और इस सच से कोई नहीं बच सकता. लेकिन इस सच को जानने के बाद भी जब हम बूढ़े लोगों पर अत्याचार करते हैं तो हमें अपने मनुष्य कहलाने पर शर्म महसूस होती है. हमें समझना चाहिए कि वरिष्‍ठ नागरिक समाज की अमूल्‍य विरासत होते हैं.

उन्होंने देश और समाज को बहुत कुछ दिया होता है. उन्‍हें जीवन के विभिन्‍न क्षेत्रों का व्‍यापक अनुभव होता है. आज का युवा वर्ग राष्‍ट्र को उंचाइयों पर ले जाने के लिए वरिष्‍ठ नागरिकों के अनुभव से लाभ उठा सकता है. अपने जीवन की इस अवस्‍था में उन्‍हें देखभाल और यह अहसास कराए जाने की जरुरत होती है कि वे हमारे लिए खास महत्‍व रखते हैं. हमारे शास्त्रों में भी बुजुर्गों का सम्मान करने की राह दिखलायी गई है.

यजुर्वेद का निम्न मंत्र संतान को अपने माता-पिता की सेवा और उनका सम्मान करने की शिक्षा देता है.

यदापि पोष मातरं पुत्र: प्रभुदितो धयान् .

इतदगे अनृणो भवाम्यहतौ पितरौ ममां ॥

अर्थात जिन माता-पिता ने अपने अनथक प्रयत्नों से पाल पोसकर मुझे बड़ा किया है, अब मेरे बड़े होने पर जब वे अशक्त हो गये है तो वे जनक-जननी किसी प्रकार से भी पीड़ित न हो, इस हेतु मैं उसी की सेवा सत्कार से उन्हें संतुष्ट कर अपा आनृश्य (ऋण के भार से मुक्ति) कर रहा हूं.

संयुक्त राष्ट्र ने भी विश्व में बुजुर्गों के प्रति हो रहे दुर्व्यव्हार और अन्याय को खत्म करने के लिए और जागरुकता फैलाने के लिए 14 दिसम्बर,1990 को यह निर्णय लिया कि हर साल 1 अक्टुबर को अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस के रूप में मनाकर हम बुजुर्गों को उनका सही स्थान दिलाने की कोशिश करेंगे. 1 अक्टुबर, 1991 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस मनाया गया जिसके बाद से इसे हर साल इसी दिन मनाते हैं.

भारत में भी वृद्धों की सेवा और उनकी रक्षा के लिए कई कानून और नियम बनाए गए हैं. केंद्र सरकार ने भारत में वरिष्‍ठ नागरिकों के आरोग्‍यता और कल्‍याण को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1999 में वृद्ध सदस्‍यों के लिए राष्‍ट्रीय नीति तैयार की है. इस नीति का उद्देश्‍य व्‍यक्तियों को स्‍वयं के लिए तथा उनके पति या पत्‍नी के बुढ़ापे के लिए व्‍यवस्‍था करने के लिए प्रोत्‍साहित करना इसमें परिवारों को अपने परिवार के वृद्ध सदस्‍यों की देखभाल करने के लिए प्रोत्‍साहित करने का भी प्रयास किया जाता है.

इसके साथ ही 2007 में माता-पिता एवं वरिष्‍ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक  संसद में पारित किया गया है. इसमें माता-पिता के भरण-पोषण, वृद्धाश्रमों की स्‍थापना, चिकित्‍सा सुविधा की व्‍यवस्‍था और वरिष्‍ठ नागरिकों के जीवन और सं‍पत्ति की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है.

लेकिन इन सब के बावजूद हमें अखबारों और समाचारों की सुर्खियों में वृद्धों की हथा और लूटमार की घटनाएं देखने को मिल ही जाती है. वृद्धाश्रमों में बढ़ती संख्या इस बात का साफ सबूत है कि वृद्धों को उपेक्षित किया जा रहा है. हमें समझना होगा कि अगर समाज के इस अनुभवी स्तंभ को यूं ही नजरअंदाज किया जाता रहा तो हम उस अनुभव से भी दूर हो जाएंगे जो इन लोगों के पास है.

Leave a Reply

error: Content is protected !!