कहाँ गया हमारा मॉर्टन चॉकलेट?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मॉर्टन चॉकलेट  40 पैसे की कीमत में नीले रैपर में चॉकलेट आती थी जिसमें क्रीम दूध नारियल का टेस्ट था। नाम था मॉर्टन। 90 के दशक का सबसे ज्यादा बाजार में बिकने वाला ब्रांड हालांकि कम कीमत के चॉकलेट भी इस कंपनी की उपलब्ध थी।आज के समय में मढ़ौरा का पता लोग कुछ ऐसे ही बताते हैं। लेकिन वो भी ज़माना था जब किसी बिहारवासी से पूछा जाता, भई मढ़ौरा का नाम सुना है तो छूटते ही जवाब आता कि वही मढ़ौरा ना, जहां मॉर्टन चॉकलेट की फ़ैक्ट्री है। मढौरा की चीनी मिल को बिहार की पहली चीनी मिल होने का गौरव हासिल रहा।मढ़ौरा की चर्चा अंग्रेजों ने अपनी पुस्तकों में भी की है।

दरअसल मढ़ौरा की चीनी मिल की ख़ासियत ये थी कि वहां जो शक्कर बनती थी वे दूर से ही शीशे की तरह चमकती थी। मॉर्टन की चॉकलेट का तो कोई ज़ोर ही नहीं था। इसकी चर्चा आते ही सबके मुंह में पानी आ जाता था लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि मढ़ौरा चीनी मिल और मॉर्टन मिल दोनों ही रसातल में चले गए। अब सिर्फ उनकी यादें ही शेष हैं।जिस चीनी फैक्ट्री के नाम से मढ़ौरा जाना जाता था उसकी स्थापना 1904 में हुई थी।

शक्कर उत्पादन में भारत में इसका दूसरा स्थान था। वर्ष 1947-48 में ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन ने इसे अपने अधीन ले लिया था। लेकिन नब्बे के दशक आते-आते प्रबंधन की ग़लत नीतियों के कारण यह मिल बंद हो गयी। लखनऊ की गंगोत्री इंटरप्राइजेज नामक कंपनी के हाथों इसे 1998-99 में बेचा गया ताकि इसे नई ज़िंदगी मिल सके। बावजूद इसके मिल चालू नहीं हो सकी।

बिहार राज्य वित्त निगम ने सन् 2000 में इसे बीमारू घोषित कर अपने कब्जे में ले लिया। जुलाई 2005 में उद्योगपति जवाहर जायसवाल ने इसे ख़रीद लिया। उन्होंने दो साल में यानी 2007 तक इसे चालू करने का ऐलान भी किया था लेकिन तब से लेकर अब तक नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा ।

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