सासाराम में शेरशाह महोत्सव क्यों मनाया जाता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहारी पठान का बच्चा शेरशाह की दिलेरी देखकर इतिहासकार भी हतप्रभ हो जाते है. हालांकि इतिहासकारों ने शेरशाह के साथ न्याय नही किया. बक्सर के चौसा मैदान मे शेरशाह की किलेबंदी और घेराबंदी देखकर मुग़ल बादशाह हुमायूं को उल्टे पांव जान बचाकर भागना पडा.

उज्जैनिया राजपूतों के सहयोग से दस हजार बिहारियों को बटोरकर शेरशाह ने सेना बनाया. उसमे तीर चलाने से लेकर लाठी-भाला, तोप-बंदूक और तलवार भांजने वाले सभी शामिल थे. दस हजार बिहारी बहादुरों को लेकर हुमायूं के चालीस हजार सेना से जाकर शेरशाह कन्नौज मे भिड गया. चालीस हजार सेना के सामने दस हजार की क्या औकात…??? लेकिन पठान के बच्चे की हिम्मत और दिलेरी देखिए… अपने किसी सैनिक का जान गवांए बिना मुग़ल बादशाह हुमायूं को खदेड़ते हुए ईरान पहुंचा दिया.

फिर पांच सालों तक मुल्क का बादशाह बनकर दिखा दिया कि एक बिहारी सौ पर भारी… वह भी आगरा से नही सासाराम से मुल्क का बेहतरीन हुकूमत चला कर बता दिया कि बिहारीपन मे पूरा मुल्क बिहार है.

मुद्रा को टंका बोलते थे. शेरशाह ने फरमान निकलकर कहा कि टंका नही रुपया बोला जायेगा. देश की मुद्रा को रुपया मे जानते है तो यह शेरशाह की देन है.

शेरशाह पहले बादशाह हुए, जिन्होंने राज-काज से लेकर सेना मे राजपूतों को महत्वपूर्ण पद दिए. बाद मे मुगलों ने शेरशाह का अनुसरण किया.

पूरे हिंदुस्तान मे सडके और सरांय बनवाने और सडको के दोनों तरफ पेड लगवाने के लिए शेरशाह को जाना जाता है. ढाका के सोनारगांव से सिंधु नदी तक सबसे लम्बी सडक बनवाने का श्रेय शेरशाह को दिया जता है, जिसे आज जीटी रोड कहा जाता है. आगरा से बुहारनपुर,आगरा से जोधपुर, लहौर से मुल्तान तक की सडकें शेरशाह की देन है.

शेरशाह की दयालुता, धार्मिक सौहार्द से लेकर प्रशसकीय क्षमता और युद्ध रणनीतिक कौशल मे शेरशाह की कोई सानी नही थी. मुगलों को भी एकबारगी शेरशाह को उस्ताद-ए-बादशाह कहना पडा.

कहते है कि अकबर शेरशाह की नीतियों को आत्मसात कर महान मुग़ल सम्राट बने.

आज ही के दिन शेरशाह सासाराम मे जन्मे थे. उनके जन्म को यादगार बनाने के लिए बिहार सरकार की ओर से सासाराम मे शेरशाह महोत्सव मनाया जा रहा है.

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