आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊँची प्रतिमा चर्चा में क्यों है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मध्य प्रदेश (MP) के मुख्यमंत्री ने खंडवा ज़िले के ओंकारेश्वर में मांधाता पर्वत पर आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊँची ‘स्टैच्यू ऑफ वननेस’ का अनावरण किया और अद्वैत लोक की आधारशिला रखी।

मांधाता की महत्ता:

  • मांधाता द्वीप, जो कि नर्मदा नदी पर स्थित है, 12 ज्योतिर्लिंगों में से दो ज्योतिर्लिंग– पहला- द्वीप के दक्षिण की ओर स्थित ओंकारेश्वर तथा दूसरा अमरेश्वर है।
  • इस द्वीप पर 14वीं और 18वीं शताब्दी के शैव, वैष्णव तथा जैन मंदिर हैं।
  • ओंकारेश्वर’ नाम द्वीप के आकार से लिया गया है, जो पवित्र शब्दांश ‘ऊँ’ जैसा दिखता है, और इसके नाम का अर्थ है ‘ओंकार के ईश्वर’।

आदि शंकराचार्य:

  • परिचय:
    • वह आदि शंकर (788-820 ई.पू.) के नाम से जाने जाते हैं और उनका जन्म केरल के कोच्चि के पास कलाडी में हुआ था।
    • उन्होंने 33 वर्ष की आयु में केदार तीर्थ पर समाधि ली।
    • वह शिव के भक्त थे।
    • ऐसा कहा जाता है कि वह एक युवा भिक्षु के रूप में ओंकारेश्वर पहुँचे थे, जहाँ उनकी भेंट अपने गुरु गोविंद भगवद्पाद से हुई थी।
    • वह चार वर्षों तक इस पवित्र शहर में रहे और शिक्षा प्राप्त की।
    • उन्होंने 12 वर्ष की उम्र में ओंकारेश्वर छोड़ दिया और पूरे देश की यात्रा पर निकल पड़े, उन्होनें अद्वैत वेदांत दर्शन की शिक्षाओं का प्रसार किया एवं लोगों तक इसके सिद्धांतों को पहुँचाया।
    • उन्होनें अद्वैत सिद्धांत (अद्वैतवाद) का प्रतिपादन किया और वैदिक सिद्धांत (उपनिषद, ब्रह्म सूत्र तथा भगवद गीता) पर संस्कृत में कई टिप्पणियाँ लिखीं।
    • वह बौद्ध दार्शनिकों के विरोधी थे।
  • प्रमुख शास्त्र:
    • ब्रह्मसूत्रभाष्य (ब्रह्मसूत्र पर भाष्य)
    • भजगोविंद स्तोत्र
    • निर्वाण षटकम्प्रा
    • करण ग्रंथ
  • अन्य योगदान:
    • जब बौद्ध धर्म लोकप्रियता हासिल कर रहा था तब वे भारत में हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने के लिये काफी हद तक ज़िम्मेदार थे।
    • सनातन धर्म के प्रचार के लिये भारत के चार कोनों शृंगेरी, पुरी, द्वारका और बद्रीनाथ में चार मठों की स्थापना की गई।

अद्वैत वेदांत:

  • यह कट्टरपंथी अद्वैतवाद की एक दार्शनिक स्थिति को स्पष्ट करता है, एक पुनरीक्षण विश्वदृष्टि जिसे यह प्राचीन उपनिषद ग्रंथों से प्राप्त करता है।
  • अद्वैत वेदांतियों के अनुसार, उपनिषद अद्वैत के एक मौलिक सिद्धांत को प्रकट करते हैं जिसे ‘ब्राह्मण’ कहा जाता है, जो सभी चीज़ों की वास्तविकता है।
  • अद्वैतवादी ब्राह्मण को व्यक्तित्व और अनुभवजन्य बहुलता से परे समझते हैं।
  • वे यह स्थापित करना चाहते हैं कि किसी व्यक्ति का मूल (आत्मन्) ब्रह्म है।
  • अद्वैत वेदांत इस बात पर ज़ोर देता है कि आत्मा शुद्ध अनैच्छिक चेतना अवस्था में होती है।
  • अद्वैत एक क्षणरहित और अनंत अस्तित्ववादी है तथा संख्यात्मक रूप से ब्रह्म के समान है।

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