लोगों में क्यों कम होता जा रहा किताबें पढ़ने का रुझान?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

इंटरनेट, आनलाइन शापिंग और गेमिंग के दौर में लोगों में पुस्तकें पढ़ने का रुझान छूटता जा रहा है। पुस्तक पढ़ने में लोगों की रुचि बढ़ाने के उद्देश्य से विश्व भर में 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालांकि अब अधिकांश व्यक्ति पुस्तकालय जाकर या खरीदकर पुस्तक पढ़ने के बजाए मोबाइल फोन पर ही इंटरनेट के जरिए किताबें पढ़ना पसंद करते हैं। इसका मुख्य कारण ई-बुक रीडर्स का बढ़ना भी है। इसके साथ ही अधिकतर सरकारी लाइब्रेरियों में किताबों की भी काफी कमी है।

गुरदासपुर के पुस्तकालय में करीब पांच साल पहले तक रोजाना 50 से 60 लोग पुस्तकें पढ़ने के लिए ले जाते थे। वहीं अब इनकी संख्या 10 से 12 रह गई है। लाइब्रेरियन रुपिंदर कौर ने बताया कि विभाग ने पुस्तकालय का सदस्यता शुल्क 500 से कम करके 100 रुपये कर दिया है। पुस्तक इशू करवाने के लिए पार्षद की मुहर की शर्त को हटाकर केवल आधार कार्ड लगाकर एक फार्म भरना होता है। इसके बावजूद लोगों का किताबें लेने में रुझान कम हो रहा है।

सरकार नहीं दिखा रही रुचि

पूर्व अध्यापक व लेखक मक्खन सिंह कोहाड़ का कहना है कि किताबों के माध्यम से हम अगली पीढ़ी को जागरुक कर सकते हैं। लेकिन सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। एक तरफ यहां पुस्तकालय में किताबों की भारी कमी है। वहीं, स्कूलों में लाइब्रेरियन की अधिकतर पोस्टें खाली पड़ी हुई है। सरकार भी इस तरफ कोई रुचि नहीं दिखा रही है। लेखक पुस्तकें बेचने के लिए लगातार प्रयास करते है, लेकिन सरकार खरीदने के लिए तैयार नहीं है।

शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त सुपरिंटेंडेंट इंद्रजीत सिंह बाजवा का कहना है कि गुरदासपुर में पहले पुस्तकालय शहर के बीचो बीच स्थित था। यहां पर लोगों की काफी भीड़ रहती थी। अब पुस्तकालय फिश पार्क के पास ले जाया गया है, जहां पर लोग काफी कम जाते हैं। इसके अलावा पुस्तकालय में किताबों की भी कमी होने के कारण लोगों की रुचि इस ओर नहीं बढ़ पा रही है।

अब तो इंटरनेट पर मिल जाती है हर जानकारी

नौजवान बलविंदर सिंह जकड़िया का कहना है कि इंटरनेट में अब काफी सुविधा उपलब्ध है। इसलिए किताबें खरीदने की जरुरत नहीं पढ़ती है। इंटरनेट के माध्यम से हम किसी भी विषय की जानकारी आसानी से अपने फोन पर ही हासिल कर सकते हैं। न तो हमें पुस्तकालय जाकर किताबें इशू करवाने का झंझट है और न ही वापस करने का। इसके अलावा स्कूलों में विद्यार्थियों का सलेबस इतना बढ़ चुका है कि उन्हें अन्य किताबें पढ़ने के लिए समय नहीं मिल पाता।

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