जीवन संवारने की कड़ी है किताब,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष

समुंदर की गहराई की मिसाल देते हुए अमूमन लोग पुस्तकों में समाहित ज्ञान के अथाह भंडार को भूल जाते हैं। मानव को ज्ञानवान एवं सभ्य-सुसंस्कृत बनाने में पुस्तकों का अतुलनीय योगदान रहा है। पुस्तकों के इसी योगदान को सम्मान देने के लिए प्रत्येक वर्ष 23 अप्रैल को ‘विश्व पुस्तक दिवस’ आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर यूनेस्को जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था के अलावा तमाम संगठनों द्वारा लेखकों और पुस्तकों को प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान करने तथा पढ़ने-पढ़ाने की संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयास किए जाते हैं।

आधुनिकता के दौर में भले ही पुस्तकों के प्रति कुछ रुचि कम हो गई हो, लेकिन उनका महत्व और अधिक बढ़ा है। इसका कारण यही है कि सूचनाओं के विस्फोट वाले इस दौर ने मनुष्य की जिज्ञासा को और बढ़ा दिया है। इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री से त्वरित जानकरियां तो मिल जाती हैं, लेकिन उनका गहराई से अध्ययन करने के लिए पुस्तकों की शरण में ही जाना पड़ता है। वास्तव में पुस्तकें मनुष्य की वैचारिक, विश्लेषण क्षमताओं के साथ कल्पनाशीलता में भी वृद्धि करती हैं। इससे हमारी एकाग्रता पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

कोरोना काल में हम आवश्यकता के लिए ही घर से बाहर निकल रहे हैं। ऐसे में घर पर बिताए जाने वाले अधिकांश वक्त में टीवी या इंटरनेट मीडिया के विभिन्न माध्यमों से चिपके रहने के बजाय पुस्तकों को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाना कहीं बेहतर होगा। विशेष रूप से नई पीढ़ी के लिए यह बहुत आवश्यक है, जिसके लिए बाल साहित्य और ज्ञानवर्धक पुस्तकों के माध्यम से बच्चों के मानसिक विकास को बढ़ावा देने और साहित्य के प्रति उनमें आजीवन प्रेम उत्पन्न करने का भी प्रयास किया जाए। जिस समय हमारे आसपास कोई नहीं होता या हम अकेले अथवा उदास हैं, परेशान हैं, ऐसे समय में किताबें ही हमारी सच्ची मित्र बनकर हमें सहारा देती हैं।

हमारे दिलो-दिमाग में उमड़ते सवालों का जवाब पाने के लिए किताबों से बेहतर और कोई जरिया नहीं हो सकता। किताबें ज्ञान एवं नैतिकता की संदेशवाहक, भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति के लिए एक खिड़की तथा चर्चा के लिए एक औजार का काम करती हैं तथा बौद्धिक वैभव के रूप में भी देखी जाती हैं। अच्छी किताबें बच्चों और युवा पीढ़ी को ज्ञानवान, संस्कारित और चरित्रवान बनाकर समाज के उत्थान में अपनी भूमिका निभाती हैं। कुल मिलाकर आज के युग में समयाभाव का रोना रोते हुए हम भले ही त्वरित जानकारियों के लिए इंटरनेट या संचार के अन्य स्रोतों पर आश्रित हो जाएं, पर सच यही है कि प्रामाणिक संदर्भ एवं सामग्री के रूप में किताबों की महत्ता कभी कम नहीं हो सकती। न ही कभी किताबों का अस्तित्व मिट सकता है।

 

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