क्या चुनावी बॉण्ड बंद होने से बढ़ेगा काले धन का मामला?

क्या चुनावी बॉण्ड बंद होने से बढ़ेगा काले धन का मामला?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

चुनावी बॉण्ड के विवरण को सार्वजनिक करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से केंद्र सरकार के साथ चंदा देने वाले उद्योगपतियों को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा। चुनावी बॉण्ड की खरीद के तहत सर्वाधिक चंदा भारतीय जनता पार्टी को मिला है। केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने वित्त वर्ष 2022-23 में चुनावी बॉन्ड के जरिये करीब 1,300 करोड़ रुपये का राजनीतिक चंदा जुटाया है।

यह राशि इसी अवधि में चुनावी बॉन्ड के जरिये कांग्रेस को मिले चंदे की तुलना में सात गुना अधिक है। कांग्रेस को चुनावी बॉन्ड के जरिये 171 करोड़ रुपये की आय हुई, जो वित्त वर्ष 2021-22 में 236 करोड़ रुपये से कम है। राज्य स्तर पर  समाजवादी पार्टी को 2021-22 में चुनावी बॉन्ड के जरिए 3.2 करोड़ रुपये की आय हुई थी लेकिन 2022-23 में उसे इन बॉन्ड के जरिये कोई धनराशि नहीं मिली। वहीं, राज्य स्तर पर मान्यता प्राप्त एक अन्य दल तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) को 2022-23 में चुनावी बॉन्ड के माध्यम से 34 करोड़ रुपये मिले, जो पिछले वित्त वर्ष से 10 गुना अधिक राशि है।

ऐसा नहीं है कि एसबीआई के लिए बॉण्ड की जानकारी का खुलासा करना कोई बहुत कठिन काम हो। एसबीआई चाहे तो 24 घंटे में जानकारी को मुहैया करा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने अर्जी दाखिल करके बॉण्ड की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए 30 जून तक समय मांगा है। दरअसल इस बीच लोकसभा चुनाव सम्पन्न हो जाएंगे।

इसके बाद केंद्र की भाजपा सरकार को मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा। इससे पहले चुनावी बॉण्ड का खुलासा होने पर सर्वाधिक समस्या बॉण्ड के रूप में चंदा देने वाले उद्योगपतियों और व्यवसायियों को करना पड़ेगा। भाजपा को चुंकि सर्वाधिक चंदा मिला है, ऐसे में बॉण्ड के खरीददार कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के निशाने पर रहेंगे। विशेष कर जिन राज्यों में कांग्रेस और गैर भाजपा दलों की सरकारें हैं, उनमें बॉण्ड खरीददारों को सत्तारुढ़ दलों के कोपभाजन का निशाना बनना पड़ सकता है। राजनीतिक दुर्भावना की नीयत से इनके खिलाफ र्कारवाई करने में विपक्षी दल कसर बाकी नहीं छोड़ेगे। गौरतलब है कि राहुल गांधी और विपक्षी पार्टी के नेता पहले ही अडानी और अंबानी को घेरे हुए हैं।

यही वजह है कि एसबीआई गले पड़ी इस मुसीबत को टालने के लिए 30 जून तक का समय मांग रही है। इस अवधि के बाद केंद्र की भाजपा सरकार को किसी बात का डर नहीं रहेगा। भाजपा को पूरी उम्मीद है कि फिर केंद्र में सरकार उसकी की बनेगी। सरकार बनने के बाद भाजपा के बॉण्ड के खरीददारों को सुरक्षा देने में केंद्र सरकार कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ेगी। लेकिन इससे पहले यदि इनके नामों का खुलासा किया गया तो निश्चित तौर पर राज्यों के सत्तारुढ़ विपक्षी दल खरीददारों का बख्शेंगे नहीं। कारण स्पष्ट है कि भाजपा की तुलना कांग्रेस को बेहद कम और अन्य दलों को अल्पमात्र चंदा मिला है।

पिछले महीने, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच- न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया था और एसबीआई को राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बांड के विवरण का खुलासा करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जानकारी में नकदीकरण की तारीख और बांड के मूल्यवर्ग को शामिल किया जाना चाहिए और 6 मार्च तक चुनाव पैनल को प्रस्तुत किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को आदेश दिया था कि वह इन बॉन्डों को जारी करना बंद कर दे और इस माध्यम से किए गए दान का विवरण चुनाव आयोग को दे।

इसके बाद चुनाव आयोग से कहा गया कि वह इस जानकारी को 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना कि काले धन से लडऩे और दानदाताओं की गोपनीयता बनाए रखने का घोषित उद्देश्य इस योजना का बचाव नहीं कर सकता। अदालत ने कहा कि चुनावी बांड काले धन पर अंकुश लगाने का एकमात्र तरीका नहीं है। चुनावी बांड योजना 2018 में काले धन को राजनीतिक प्रणाली में प्रवेश करने से रोकने के घोषित उद्देश्य के साथ शुरू की गई थी। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि भारत में राजनीतिक फंडिंग की पारंपरिक प्रथा नकद दान है। उन्होंने कहा था, “स्रोत गुमनाम या छद्म नाम हैं। धन की मात्रा का कभी खुलासा नहीं किया गया।

वर्तमान प्रणाली अज्ञात स्रोतों से आने वाले अशुद्ध धन को सुनिश्चित करती है। यह पूरी तरह से गैर-पारदर्शी प्रणाली है। गोपनीयता खंड पर, उन्होंने कहा था कि दानदाताओं की पहचान का खुलासा उन्हें नकद विकल्प पर वापस ले जाएगा। दानकर्ता की जानकारी गोपनीय रखने के लिए एसबीआइ ने इलेक्टोरल बांड की खरीद और भुगतान के संबंध में देशभर में अपनी 29 अधिकृत शाखाओं (जहां से पहले इलेक्टोरल बांड जारी होते थे) के लिए एक स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) तय किया था। इसमें कहा गया था कि गोपनीयता बनाए रखने के लिए इलेक्टोरल बांड खरीदने वाले के बारे में कोई भी ब्योरा यहां तक कि केवाइसी भी कोर बैंकिंग सिस्टम में नहीं डाली जाएगी।

एसबीआइ ने कहा है कि शाखाओं के जरिए खरीदे गए इलेक्टोरल बांड का ब्योरा केंद्रीयकृत ढंग से एक जगह नहीं रखा जाता। बांड खरीदने और उसके भुगतान की तिथि से जुड़ा ब्योरा दो भिन्न सिलोस में रखा जाता है। भारतीय स्टेट बैंक ने राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए चुनावी बॉण्ड का विवरण अब तक साझा नहीं किया है। इसकी डेडलाइन भी निकल चुकी है। स्टेट बैंक ने राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए चुनावी बॉण्ड के विवरण का खुलासा करने के लिए 30 जून तक समय देने का अनुरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक आवेदन में स्टेट बैंक ने दलील दी कि प्रत्येक साइलो से जानकारी फिर से प्राप्त करना और एक साइलो की जानकारी को दूसरे से मिलाने की प्रक्रिया में समय लगेगा।

चुनावी बॉन्ड मामले में एसबीआई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की गई है। इस याचिका को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स ने दाखिल किया है। दरअसल, एसबीआई को चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को मुहैया करानी थी लेकिन एसबीआई द्वारा ये जानकारी मुहैया नहीं कराई गई है।

इस मुद्दे को लेकर केंद्र की भाजपा सरकार और विपक्षी एक-दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा कि जो पैसा बीजेपी को मिला, हम भी ये जानना चाहते हैं कि आपने इन पैसों से क्या किया? बीजेपी को अकेले 5000 करोड़ से ज़्यादा पैसा आया। एसबीआई इन तमाम बातों का खुलासा करे कि किस पार्टी ने कितना पैसा किसको दिया।

इसके जवाब में मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि हम अभी भी ये मानते हैं की ये सबसे ज्यादा पारदर्शी व्यवस्था थी। अगर कोई कहता है कि बीजेपी को ज्यादा पैसा मिला तो यह कुतर्क है, आज से 30-40 साल पहले हम अगर कहते कि कांग्रेस को ज्यादा पैसा मिला तो उसका क्या मतलब था। आज बीजेपी सबसे ज्यादा बड़ी पार्टी है। यह निश्चित है कि केंद्र सरकार के चुनावों में काले धन के जरिए होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के प्रयासों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले झटका लगा है। कोर्ट के बॉण्ड के मामले में दिए गए आदेश के बाद राजनीतिक दल फिर से चुनावी चंदे के नाम पर उद्योपतियों की बांह मरोडऩे से बाज नहीं आएंगे।

 

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