क्या चुनाव के नतीजे क्षेत्रीय क्षत्रपों की प्रासंगिकता तय करेंगे?

क्या चुनाव के नतीजे क्षेत्रीय क्षत्रपों की प्रासंगिकता तय करेंगे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

2024 के रण में राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे से घमासान करती नजर आ रही है। लेकिन दोनों की इस जंग का नतीजा काफी हद तक क्षेत्रीय क्षत्रपों के परफॉर्मेंश से भी प्रभावित होगा। इस बार का चुनाव कई क्षेत्रीय दलों के लिए करो या मरो सरीखा भी है। नतीजे केवल ये तय नहीं करेंगे कि केंद्र की सत्ता पर कौन काबिज होगा,

बल्कि कई क्षत्रपों और क्षेत्रीय दलों के भाग्य का भी फैसला होगा। वैसे तो ये क्षेत्रीय दल किसी छोटे क्षेत्र, समुदाय, किसी धर्म विशेष या क्षेत्र में पकड़ रखते हैं। इसका लाभ इन्हें अपने साथ रखने वाले बड़े दलों को होता है। लेकिन इस बार के चुनाव में ये भी तय होगा कि क्षत्रपों की जीत संभावनाओं के नए द्वार खोलेगी, तो हार सियासी वनवास की ओर ले जाएगी।

1951-1991 तक की तस्वीर

राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय दल

1951-52 के चुनाव में 85% सीटें राष्ट्रीय दलों ने जीतीं।

7% सीटें ही क्षेत्रीय दलों के हाथ लगीं

1962 चुनाव में 89% सीटें राष्ट्रीय दलों ने जीतीं

तीसरे आम चुनाव में 6% सीटें ही क्षेत्रीय दल जीत सके

1980 के चुनाव में 92% सीटें राष्ट्रीय दलों के पाले में गई

जनता पार्टी सरकार गिरने के बाद 6% सीटें क्षेत्रीय दलों को मिलीं

1984 के चुनाव में 12% सीटें रीजनल पार्टियों को मिली

1989 के चुनाव में 5% सीटों पर सिमट गए क्षेत्रीय दल

11992 के आम चुनाव में 0% सीटें जीत सके क्षेत्रीय दल

1996 के चुनाव के बाद बदली पिक्चर

1996 के आम चुनाव में 24% सीटें क्षेत्रीय दलों ने जीतीं

राष्ट्रीय दलों की सीटों का हिस्सा 74% पर आ गया

1998 के चुनाव में19% सीटें क्षेत्रीय दलों को मिली

सीटों में राष्ट्रीय दलों की हिस्सेदारी चुनाव में 71% रह गई

क्षेत्रीय दलों को 1999 और 2004 के चुनावों में 29% सीटें मिली

27% सीटें क्षेत्रीय दलों को, 69% राष्ट्रीय दलों को 2009 में

2014 के आम चुनाव में 32% सीटें क्षेत्रीय दलों ने जीतीं

2014 के चुनाव में 63% सीटें राष्ट्रीय दलों को मिलीं

 2019 में कैसा रहा हाल?

अगर 2019 के नतीजों पर नजर डालें तो 15 ऐसे छोटे दल थे, जिन्होंने 20 सीटें कांग्रेस या भाजपा गठबंधन की झोली में डाली। 35 से अधिक ऐसे छोटे दल भी थे, जिन्होंने भले ही एक सीट न हासिल की हो, मगर कई सीटों पर बड़े दलों के वोट शेयर में सेंधमारी की। यही वजह है कि अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभाव रखने वाले ऐसे दलों से भाजपा-कांग्रेस जैसे बड़े दलों ने गठबंधन किया है।

अगर इन छोटे- छोटे दलों के साथ क्षेत्रीय दलों को भी भी शामिल करें तो इन दलों ने 2019 में 188 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इनमें 51 सीट जीतने वाले 14 दल एनडीए के साथ और 78 सीटें जीतने वाली 16 दल इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं। वहीं, 59 सीटें जीतने वाली 8 पार्टियां किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। चुनाव आयोग के डेटा के मुताबिक इस समय देश में 6 राष्ट्रीय, 57 क्षेत्रीय और 2,597 छोटे दल हैं। यूपी की राजनीति में अपना दल, अपना दल (कामरावादी), भारतीय शांति पार्टी, जनक दल- लोकतांत्रिक, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी इत्यादि ऐसे कई छोटे राजनीतिक दल हैं जो राज्य में लोकसभा व विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका निभाते हैं।

2019 में कैसा रहा हाल?

2019 में कैसा रहा हाल? उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के खाते में क्रमश: पांच और 10 सीटें आई। जेडीयू को 16 और लोजपा को 6 सीटें बिहार में मिली थी। झारखंड में जेएमएम और आजसू को 1-1 सीटें मिली थीं। 22 सीटें टीएमसी को बंगाल में और ओडिशा में बीजेडी को 12 सीटें मिलीं। वाईएसआरसीपी को आंध में 22 सीटें और तेदेपा को 3 सीटें मिली थीं। डीएमके 23 सीटें और एआईएडीएमके ने एक सीट तमिलनाडु में जीती थी। तेलंगाना में बीआरएस ने 9 सीटें को और एआईएमआईएम को एक सीट मिली थी। महाराष्ट्र में 18 शिवसेना, एनसीपी को 4 और एक सीट एआईएमआईएम को मिली।
51 सीट जीतने वाले 14 दल एनडीए और 78 सीट वाले 16 दल इंडिया के साथ एनडीए समूह के छोटे राजनीतिक दल और पिछली बार हासिल सीटें

 पार्टी  संख्या
 अपना दल  2
 ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन  1
 नेशनल डेमाक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी  1
 राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी  1
 नेशनल पीपल्स पार्टी मिजो  1
 मिजो नेशनल फ्रंट  1
 नगा पीपुल्स फ्रंट  1

यूपीए समूह के छोटे राजनीतिक दल और पिछली बार हासिल सीटें 

 पार्टी  संख्या
 इंडियन मुस्लिम लीग  3
 जे एंड के नेशनल कान्फ्रेंस  3
 केरल कांग्रेस  1
 रिवोल्यूशनरी सौशजलिस्ट पार्टी  1
 विरुथलई चिरुथैगल कची  1

 

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