क्या जो अपनी पार्टी नहीं संभाल पा रहे वह देश संभाल लेंगे ?

क्या जो अपनी पार्टी नहीं संभाल पा रहे वह देश संभाल लेंगे ?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राजस्थान में मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर छिड़ी आपसी लड़ाई के बीच राज्य में कांग्रेस के भविष्य के सामने एक बड़ा प्रश्नचिन्ह उपस्थित हो गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक विधायकों ने नेतृत्व पर राजनीतिक दबाव बनाने का जो खेल खेला है, उसका राजनीतिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाए तो यही प्रमाणित करता है कि यह अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा है।

इससे यह भी संदेश जा रहा है कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाने को लेकर जिस प्रकार से गहलोत समर्थक विधायकों ने अपने त्याग पत्र दिए हैं, उससे प्रथम दृष्टया यही लगता है कि ये विधायक कांग्रेस के कम गहलोत के ज्यादा हैं। विधायकों का यह नाटक निश्चित ही गहलोत के संकेत पर ही चल रहा होगा।

इसके अलावा केन्द्र की ओर से भेजे गए दो पर्यवेक्षक भी राजस्थान में उत्पन्न हुए राजनीतिक संकट को दूर करने में असमर्थ ही रहे। हालांकि पार्टी अनुशासन को ध्यान में रखते हुए यही कहा जा सकता है कि किसी भी स्थिति में गहलोत समर्थक विधायकों को त्याग पत्र नहीं देना चाहिए था। जब संभावित राष्ट्रीय अध्यक्ष के समर्थक ही विवाद की स्थिति बनाने का प्रयास कर रहे हों, तब अन्य से क्या अपेक्षा की जा सकती है। इस विवाद की जड़ यही है कि गहलोत अपना मुख्यमंत्री बनाना चाह रहे हैं, कांग्रेस का नहीं। अगर कांग्रेस के हाथ में सत्ता रखना है तो फिर सचिन पायलट तो जन्मजात कांग्रेसी हैं। उनको सत्ता की बागडोर देने में कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए।

भारत में कांग्रेस द्वारा राहुल गांधी के नेतृत्व में एक तरफ भारत जोड़ो यात्रा निकाली जा रही है, तो वहीं दूसरी तरफ राजस्थान में कांग्रेस में बिखराव की ओर कदम बढ़ाती दिख रही है। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि राजस्थान की लड़ाई के मुख्य सूत्रधार के रूप में जो नेता सामने आए हैं, उसी को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी देने की कवायद की जा रही है। अशोक गहलोत समर्थक विधायकों का यह कदम कांग्रेस पार्टी में एक और बिखराव की घटना को जन्मित कर सकता है।

सिद्धांत की बात यह है कि राजस्थान में अशोक गहलोत के बाद कांग्रेस के सबसे प्रभावी नेता सचिन पायलट ही हैं, इसके आधार पर लोकतांत्रिक तरीका यही कहता है कि पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलनी चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि अशोक गहलोत की पूरा सोच लोकतांत्रिक न होकर पूर्वाग्रह से ग्रसित है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि मैं किसी गद्दार के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं छोड़ सकता।

इतना ही नहीं इससे पूर्व अशोक गहलोत मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ना ही नहीं चाह रहे थे, लेकिन जब राहुल गांधी ने एक पद, एक व्यक्ति के सिद्धांत को प्रतिपादित किया, तब अशोक गहलोत ने इस सिद्धांत को स्वीकार तो कर लिया, लेकिन उनकी नजर मुख्यमंत्री के पद से अलग नहीं हो पा रही है। वे अपने किसी समर्थक को ही मुख्यमंत्री बनाना चाह रहे हैं।

हालांकि स्वतंत्र भारत में कांग्रेस के अंदर चौथी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होने जा रहा है, लेकिन जिस प्रकार के दृश्य दिखाई दे रहे हैं, वह चुनाव के लिए अनुकूल वातावरण बनाने का काम करेंगे, इसमें संशय है। अभी से यह कहा जाने लगा है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी जिसे चाहेंगे, वही कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेगा।

इस दृष्टि से राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव महज एक दिखावा ही कहा जाएगा, क्योंकि गांधी परिवार की दृष्टि में अध्यक्ष तय हो चुका है। यहां सवाल यह भी पैदा होता है कि जब अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएंगे, तब क्या सचिन पायलट को कांग्रेस नेता के रूप में स्वीकार कर पाएंगे। अब राजस्थान में कांग्रेस के अंदर संभावित स्थिति यह बनती दिखाई दे रही है कि या तो सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनेंगे या फिर वे कांग्रेस को अलविदा कर सकते हैं।

दोनों ही स्थितियां अशोक गहलोत की राह में अवरोधक की स्थिति पैदा कर सकती हैं, क्योंकि ऐसी स्थिति में राजस्थान का रण जीतना कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बनेगी। ऐसे में प्रश्न यह भी आता है कि जो कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा निकाल रही है, क्या उसे अब कांग्रेस जोड़ने के लिए प्रयास नहीं करने चाहिए। क्योंकि जब कांग्रेस में ही एकता नहीं है तो फिर इस प्रकार की यात्राएं निकालने का कोई अर्थ भी नहीं है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने वर्तमान कार्यकाल में सचिन पायलट को हमेशा किनारे करने का प्रयास ही किया है, वे अब भी पायलट की राह में रोड़ा बन रहे हैं। वे अब भी वैसा ही कर रहे हैं। उन्होंने अपनी भूमिका लेकर संशय भी उपस्थित कर दिया है कि वह अपनी राजनीति किस प्रकार से करेंगे।

राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की संभावनाओं के चलते अब अशोक गहलोत को अपनी सोच को विस्तार देने का प्रयास करना चाहिए। अब उन्हें झगड़ा बढ़ाने की नहीं, बल्कि झगड़ा सुलझाने की राजनीति करने की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। नहीं तो वे वैचारिक रूप से राजस्थान तक ही सीमित रह जाएंगे और फिर कांग्रेस के अंदर अनियंत्रण की स्थिति पैदा हो सकती है, जिसके कारण शेष राज्यों के नेता भी ऐसी ही राजनीति करने की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं।

जिससे यह संभावना भी बन सकती है कि कांग्रेस एक बड़े बिखराव की ओर कदम बढ़ाएगी। जिसे संभालना कांग्रेस नेताओं के लिए टेढ़ी खीर ही साबित होगी।

अब राजस्थान में क्या होगा, यह तो निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता, लेकिन सत्ता के नेतृत्व को लेकर जो तलवारें खिंची हैं, वह आसानी से म्यान में नहीं जा सकतीं। इसके कारण जो भी राजनीतिक क्षति होगी, उसकी भरपाई करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!