योगी जी देखें मनरेगा की झांकी!मजदूरों का करोड़ों हुआ बाकी?

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बीते 15 नवंबर से नहीं आया मनरेगा का पैसा? लाखों मनरेगा मजदूरों की मेहनत का करोड़ों रुपया हुआ बकाया

गांवों में विकास हुआ प्रभावित! मजदूर परेशान, ताने सुन रहे हैं प्रधान

श्रीनारद मीडिया, कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया) बाराबंकी (यूपी):

गांव के मजदूरों को रोजगार देने वाली मनरेगा योजना वर्तमान में रेगा नजर आ रही है? बीते नवंबर से मनरेगा मजदूरों को मजदूरी नहीं मिली है! स्पष्ट है कि इससे गांव का विकास भी प्रभावित है। तो वहीं लाखों मजदूरों की मेहनत का लटका करोड़ों रुपया उनके परिजनों का निवाला छीन रहा है। ऐसे में जहां मजदूर परेशान है !वहीं प्रधान भी जमकर ताने सुन रहे हैं। इस स्थिति को देखकर लोग बोल ही पड़ते हैं। “योगी जी देखें रेगा हुई मनरेगा की झांकी! मजदूरों का करोड़ों रुपया है बाकी?”

गांव में रहने वाले हजारों मेहनतकश मजदूरों के परिवार इस समय आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं। क्योंकि यह वह परिवार है जिनके घर के लोग मनरेगा योजना के अंतर्गत मनरेगा से होने वाले विकास कार्यों में गांव में ही रोजगार पाते हैं। लेकिन इस समय मनरेगा योजना को जिम्मेदारों की अनदेखी का ग्रहण लग गया है। विश्वत सूत्रों एवं चर्चाओं के मुताबिक बीती 15 नवंबर के बाद से मनरेगा योजना के अंतर्गत काम करने वाले मजदूरों को फरवरी 2024 तक उनकी अपनी मेहनत की मजदूरी नहीं मिल पाई है! दरअसल मनरेगा योजना के अंतर्गत दी जाने वाली मजदूरी का पैसा ही सरकार के द्वारा गांवों की सरकारों को उपलब्ध नहीं कराया गया है। स्थिति यह है कि ग्राम पंचायत में लाखों/ करोड़ों के काम हो चुके हैं। अथवा हो रहे हैं। मजदूर इसमें काम भी कर रहे हैं? लेकिन मजदूरी के नाम पर उन्हें बस आश्वासन ही मिल रहा है!

मनरेगा के तहत मनरेगा मजदूरों को गांव में ही काम करने के बाद 15 दिनों के अंदर उन्हें उनकी मजदूरी मिल जाती थी। लेकिन नवंबर से फरवरी तक मजदूरी न मिलने से जनपद के लाखों मजदूर आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। सनद रहे कि मनरेगा के अंतर्गत गांव में सड़क पटाई, समतलीकरण ,आरसीसी, इंटरलॉकिंग, तालाब की खुदाई, वृक्षारोपण, अमृत सरोवर के सहित अन्य तमाम कार्य कराए जाते हैं। प्रत्येक मनरेगा मजदूर को 230 रूपये मजदूरी दी जाती है। ऐसे में तीन-चार महीने से मजदूरी का पैसा ना आने से मजदूरों को उनकी मजदूरी नहीं मिल सकी है। सूत्रों से यह भी पता चला है कि मनरेगा के अंतर्गत होने वाले पक्के कार्य का पैसा भी बीते जून जुलाई से नहीं आ पाया है।

प्रधानों एवं मनरेगा मजदूरों से हुई बातचीत के मुताबिक मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों में लगे मजदूरों की हाजिरी लगी हुई है। लेकिन दुर्भाग्य है कि उनके खाते में अभी पैसा नहीं आया है। ऐसे में जहां मनरेगा मजदूर, मजदूरी न मिलने की वजह से लगातार असंतोष में है! वहीं दूसरी ओर गांव के प्रधान भी मजदूरी न दे पाने का ताना मजदूरों से सुन रहे हैं? सूत्रों का यह भी कहना है कि मनरेगा मजदूरी का भुगतान न होने से गांव का विकास कार्य भी प्रभावित हो रहा है? कई गांवो से ऐसी भी सूचनाये मिली है कि वह मजदूर जिनका पूरा परिवार मजदूरी के पैसों से ही चलता है। उन्होंने गांव से शहर की ओर पलायन कर दिया है? ऐसे मजदूरों का कहना है कि जब महीनों तक मजदूरी ही नहीं मिलेगी तो हम अपने परिजनों अथवा बच्चों को खिलाएं क्या ?वैसे भी हर तरफ महंगाई का राज है। हमारा तो परिवार सहित जीना दूभर है। खबर यह भी है कि गांव में तमाम विकास कार्य मनरेगा योजना के अंतर्गत कराए जा चुके हैं। लेकिन उनका पैसा ही नहीं आया है। यदि मैटेरियल के भुगतान के पैसों की बात को दरकिनार कर दिया जाए तो मजदूर की मजदूरी का ना मिलना वास्तव में मनरेगा योजना को रेगा करता हुआ दिखाई दे रहा है।प्रधानों का कहना है कि अपने विश्वास पर फ्री में मजदूरों से कब तक काम कराएं ।हम कहते हैं कि पैसा जल्द आ जाएगा। लेकिन पैसा है कि आया ही नहीं? प्रधान यह भी बताते हैं कि जब मजदूर उनसे अपनी मजदूरी मांगते हैं तो हमारे पास इसका कोई जवाब ही नहीं रहता? कुल मिलाकर मैं कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया) स्पष्ट रूप से यह बात कहूंगा कि मनरेगा मजदूरों के खून पसीने की मजदूरी का ना मिलना कहीं ना कहीं इस सिस्टम में लगे हुए जिम्मेदारों पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है? ऐसे में केंद्र एवं प्रदेश की भाजपा सरकारों को इसका हल जल्द से जल्द निकलना ही चाहिए! फिलहाल इस स्थिति को देखकर मनरेगा से जुड़े अथवा गांव के जन प्रतिनिधि एवं जागरूक नागरिक यह बोल ही पड़ते हैं! “योगी जी देखें मनरेगा की रेगा झांकी! मजदूरों की मेहनत का करोड़ों रुपया है बाकी?

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