चार माह शयन के बाद कल जागेंगे भगवान विष्णु, शुरू होंगे मांगलिक कार्य
इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। इस बार ये एकादशी चार नवंबर को है। स्वामी पूर्णानंद पुरी महाराज के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।
चार माह शयन के बाद जागते हैं भगवान विष्णु
मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, इसीलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।
ऐसे रखें व्रत और पूजा विधि
- इस दिन प्रातः काल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
- घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए।
- एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए।
- इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए।
- रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी- देवताओं का पूजन करना चाहिए।
- इसके बाद भगवान को शंख, घंटा, घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास।
तुलसी विवाह का आयोजन
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैं तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।
पौराणिक कथा
एक समय भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने पूछा, हे नाथ! आप दिन रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों- करड़ों वर्ष तक सो जाते हैं तथा इस समय में समस्त चराचर का नाश कर डालते हैं। इसलिए आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा।
लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले, देवी! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। अतः तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रतिवर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा।
मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में, मैं तुम्हारे साथ निवास करूंगा।
- यह भी पढ़े……
- राम के सार का न ही सम्पूर्ण वर्णन करना संभव है और न ही श्रवण करना : अंजलि द्विवेदी
- भारत की बांग्लादेश पर जीत के बाद बदला समीकरण
- भोरे की धरती भोजपुरी आंदोलन कि पहली अलख 1947 में जगाई थी- डॉ जयकांत सिंह ‘जय’।
- गुजरात विधानसभा चुनाव : 182 सीटों पर होने है विस चुनाव