चंदु (चंद्रशेखर) आप बहुत याद आते हो-JNU छात्र संघ.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जन्मदिवस पर विशेष

वही चंद्रशेखर जो अपने दोस्तों के बीच चंदू थे, वही चंद्रशेखर जो अपने जेएनयू के छात्रों के कहकर गए थे- ‘हमारी आने वाली पीढ़ियां सवाल करेंगी, वे हमसे पूछेंगी कि जब नई सामाजिक ताक़तें उभर रही थीं तो आप कहां थे, वे पूछेंगी कि जब लोग जो हर दिन जीते-मरते हैं, अपने हक़ के लिए संघर्ष कर रहे थे, आप कहां थे जब दबे-कुचले लोग अपनी आवाज़ उठा रहे थे, वे हम सबसे सवाल करेंगीं.’

भाकपा माले ने दो अप्रैल, 1997 को बिहार बंद का आयोजन कराया था। जिसे सफल बनाने के लिए 31 मार्च, 1997 को माले कार्यकर्ता दोपहर तीन बजे टेम्पो से प्रचार करते सीवान के जेपी चौक के पास पहुंचे तो हाथों में रिवाल्वर लिए ध्रुव कुमार जायसवाल उर्फ ध्रुव साह, मुन्ना खान, रेयाजुद्दीन खान तथा स्टेनगन लिए मंटू खान ने इन्हें रोका और अंधाधुंध फायरिंग करने लगे। फायरिंग में चंद्रशेखर प्रसाद मौके पर ही मारे गए, जबकि श्याम नारायण यादव और भृगुशन पटेल घायल हो गए। वहीं रामदेव राम ने टेम्पो से कूद जान बचाने का प्रयास किया।

घटना के बाद मृत चंद्रशेखर प्रसाद तथा घायल श्याम नारायण यादव को उसी टेम्पो से सदर अस्पताल लाया गया। इलाज के दौरान श्यामनारायण ने सत्यदेव राम के समक्ष अभियुक्तों का नाम लिया। हालांकि बाद में श्याम नारायण की भी मौत हो गई। वहीं भृगुशन पटेल घटना की जानकारी देने के लिए पार्टी ऑफिस चले गए। रमेश सिंह कुशवाहा के बयान पर टाउन थाना कांड संख्या 54/ 97 दर्ज किया गया।

जेएनयू छात्र संघ के नेता की हत्या के बाद छात्रों के भारी दबाव पर राज्य सरकार ने 31 जुलाई, 1997 को अनुसंधान का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया। सीबीआई ने अपने अनुसंधान के बाद 30 मई, 1998 को अपना आरोप पत्र दायर किया। सीबीआई ने 20 गवाह तो बचाव पक्ष ने 10 गवाह पेश किये। सीबीआई कोर्ट के एडीजे चौधरी बीके राय ने इन चारों अभियुक्तों को नौ नवम्बर, 2012 को उम्रकैद की सजा सुनाई तथा अर्थ दंड लगाया।  चंद्रशेखर के पिता भारतीय सेना में थे।

1996 में सीवान लौटे, भाकपा माले को मजबूत करने लगे
चंद्रशेखर के बचपन के दौरान ही उनका देहांत हो गया। 1995 में चंद्रशेखर ने सियोल में संयुक्त राष्ट्र की ओर से आयोजित यूथ कॉन्फ्रेंस में भारत का प्रतिनिधित्व किया। कोरिया में छुप कर रह रहे। उत्तर और दक्षिण कोरिया के एकीकरण पर एक विशाल छात्र रैली को भी संबोधित किया। 1996 में चंद्रशेखर सीवान लौट आए और यहां भाकपा माले को मजबूत करने में जुट गए।

जेएनयू में चंद्रशेखर के नाम पर दी जाती है फेलोशिप
चंद्रशेखर और उनके एक साथी श्याम नारायण यादव की हत्या के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन चला था। सूत्रों की मानें तो उन दिनों शहाबुद्दीन की सीवान में एक उभरते दबंग नेता के रूप में पहचान बन रही थी। उनपर भी आरोप लगे थे। जेएनयू में चंद्रशेखर की याद में एक गरीब छात्र को एक हजार रुपये प्रतिमाह की फेलोशिप भी दी जाती है।

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी छोड़ पीयू में लिया था दाखिला
चंद्रशेखर ने सैनिक स्कूल तिलैया से पढ़ाई की थी। वे राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के लिए चयनित भी हुए थे। सोशल एक्टिविस्ट बनने के लिए बीच में ही उन्होंने एनडीए छोड़कर पटना विवि में दाखिला ले लिया। पटना विवि के शुरुआती दिनों में एआईएसएफ के साथ रहे लेकिन जल्द ही भाकपा (माले) से जुड़ गए। चंद्रशेखर ने जेएनयू में दाखिला लिया और दो बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए।

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