अंग्रेजों के जुल्म का जवाब दिया चाफेकर भाइयों ने,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के प्रारंभिक दौर में दो परिवार विशेष ख्यात हुए – चाफेकर बंधु और सावरकर बंधु। चाफेकर तीन भाई थे-दामोदर हरि चाफेकर, बालकृष्ण चाफेकर और वासुदेव चाफेकर। दिसंबर 1896 में महाराष्ट्र में प्लेग फैल गया था। इसकी रोकथाम के लिएपूना में अंग्रेज अधिकारी रैंड को नियुक्त किया गया, जो बहुत क्रूर था। उसने लोगों पर बहुत जुल्म किए।

प्लेग के मरीजों को इस तरह कैंप लेजाया जाता, जैसे वे अपराधी हों। उन पर जुल्म किया जाता और जांच के बहाने घरों में घुसकर महिलाओं को बेइज्जत किया जाता। तीन महीने तक चाफेकर बंधुओं ने रैंड की हरकतों को झेला, फिर उसे खत्म कर देने की योजना बना ली। रैंड की सारी रिपोर्ट बड़े भाई को देने काजिम्मा छोटे भाई वासुदेव ने लिया। फिर 22 जून, 1897 को महारानी विक्टोरिया की हीरक जयंती की पार्टी से लौटते समय रात साढ़े 11 बजेबग्घी के पीछे से चढ़कर दामोदर ने रैंड की पीठ में गोली दाग दी।

मंझले भाई बालकृष्ण और छोटे वासुदेव भी उनके सहयोग के लिए घटनास्थल पर थे। चारों ओर खलबली मच गई। उन्हें पकडऩे के लिए 20 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया। इनाम के लालच मेंदामोदर के दो साथी गणेश शंकर और रामचंद्र द्रविड़ पुलिस के मुखबिर बन गए। उनकी सूचना पर नौ अगस्त को दामोदर पकड़े गए। बाद मेंबालकृष्ण भी पकड़ लिए गए।

उधर, अंग्रेजों ने छोटे भाई वासुदेव को मुखबिर बनने का प्रलोभन दिया। वासुदेव को भी इंस्पेक्टर और मुखबिरोंसे बदला लेने का इंतजार था, इसलिए उनके करीब आने के लिए मुखबिर होने का कलंक अपने ऊपर ले लिया। आठ फरवरी को वे अपने मित्ररानाडे के साथ चल पड़े। वासुदेव ने गणेश शंकर और रानाडे ने रामचंद्र को उन्हें घर से बाहर बुलाकर गोली मार दी।

घटना की जांच करने आएपुलिस सुपरिंटेंडेंट पर भी वासुदेव ने गोली चला दी, पर निशाना चूक गया और वह पकड़े गये। अदालत में मुस्कुराते हुए वासुदेव ने सब सच बता दिया, क्योंकि वे भी दामोदर और बालकृष्ण के साथ फांसी चढऩा चाहते थे। आठ, 10 और 12 मई, 1898 को क्रमश: वासुदेव, रानडे,बालकृष्म को यरवदा जेल में फांसी दी गई। दामोदर इसके पूर्व 18 अप्रैल को तिलक से ली गीता हाथ में लेकर फांसी पर चढ़ चुके थे।

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