जीरादेई के नामकरण पर परिचर्चा आयोजित

जीरादेई के नामकरण पर परिचर्चा आयोजित
जीरादेई का पुरातन इतिहास है – डा कृष्ण
साक्ष्य आज भी विद्यमान है ।

श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

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सीवान जिला के  जीरादेई प्रखंड क्षेत्र के जय प्रकाश उच्च विद्यालय विजयीपुर के सभा भवन में शुक्रवार को जीरादेई के पुरातन इतिहास पर परिचर्चा आयोजित किया गया । प्राचार्य सह शोधार्थी डा कृष्ण कुमार सिंह ने बताया कि जीरादेई का पुरातन इतिहास काफी रुचिकर है जिसका संबंध भगवान बुद्ध के जीवन काल तथा ईरान के राज परिवार से है ।

डा सिंह ने बताया कि देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद के याद एवं सम्मान में बिहार सरकार द्वारा जीरादेई महोत्सव का आयोजन चला ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि छात्रों को जीरादेई के इतिहास के बारे में भी बताया जाय।
डा सिंह ने परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए बताया कि वैसे तो जीरादेई की पहचान गणतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद से है परंतु इस गांव का इतिहास हजारों वर्ष प्राचीन है ।

डा सिंह ने बताया कि प्राचीन किंवदंति यह है कि ईरान विजेता राजा रतिबलराय की बेटी ‘जीरादेई’ के नाम पर इस गांव का नामकरण हुआ है जीरादेई का शादी राजा सुबलराय से हुआ था जो ‘सुरबल’ गढ़ बनवाया थे ।यह गढ़ आज भी सूरवल गांव में विद्यमान है । सुबल राय के नाम पर ही सूरवल गांव का नाम पड़ा है । सुबल राय के मृत्यु के बाद राजकुमारी जीरादेई सती हो गई थी ।

सूरवल गांव में ही सुबलराय द्वारा बनवाया गया ‘सुरबल’ या ‘सुरौल’ नामक एक प्राचीन गढ़ है, जो आठवीं सदी ई. से जुड़ा है. आज भी यहां गढ़ देवी है तथा प्रवेश द्वार के पूरब छोटा सा भगवान बुद्ध का पत्थर का प्रतिमा है ।

इतिहास की शिक्षिका अर्चना सिन्हा ने बताया कि जीरादेई में सोना नाम से एक नदी बहती है जिसका बौद्ध काल में हिरण्यवती नाम था

उन्होंने बताया कि  चूंकि हिरण्य का अर्थ सोना होता है ।इसलिए बाद में लोग इसे सोना कहने लगे ।अंग्रेजों ने इसे गोल्डेन रिवर कहा है शिक्षिका ने बताया कि इसका नाम ह्वेनसांग के समय अजितवती ,अजीरावती
( अ. ली. लो. पो. टी )तथा हिरण्यवती ( भी .स. न. फ़ .ती)कहते थे ।आजकल अजितवती -अजीरावती का विकृत रूप जीरादेई हो गया ।यही नदी भगवान बुद्ध के अंतिम उपदेश की साक्षी रही है
शिक्षक घनश्याम सिन्हा ने बताया कि सिवान जिले के मानचित्र में जीरादेई के मुईयां गढ़ के पास एक फराहा घाटी दिखाया गया है जो इस बात का पुख्ता सबूत है कि प्राचीन काल में यहां नदी बहती है चुकी नदी के किनारे ही घाटी बनता है ।इस मौके पर
अंगद प्रसाद ,अभिषेक मिश्र आदि ने भी प्रकाश डाला ।
स्रोत
हिस्ट्री ऑव परशिया-स्मिथ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 367 | प्राचीन कुशीनारा का एक अध्ययन ।लेखक कृष्ण कुमार सिंह ।

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