डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक समरसता के पुरोधा थे-अशर्फीलाल

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 डॉक्टर अंबेडकर की 133वी जयंती मनाई जा रही है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यह उस समय की बात है जब देश में सामाजिक भेदभाव छुआछूत और असमानताएं व्यापक रूप से फैली हुई थी इस समय अंग्रेज सिपाहियों में राम जी सकपाल के बेटे रूप में भीमराव का जन्म होता है। समाज में अछूत जाति में जन्मे किसी भी बच्चों को स्कूल में प्रवेश नहीं दिया जाता था। इस दौरान सूबेदार राम जी सकपाल के बेटे को अंग्रेजों की दबाव में प्रवेश दे दिया गया।

मगर उन्हें क्लास रूम से बाहर बैठने का आदेश था ताकि सवर्ण समाज के बच्चें कहीं उनसे छू न जाए और वह अपवित्र हो जाए। बालक भीम के जीवन पर इसका बाहर गहरा असर हुआ मगर उन्होंने इस अपमान को जहर की घूंट समझ कर पी गए और कक्षा के बाहर बैठकर पढ़ाई में ध्यान लगाते मास्टर जी जो कुछ बोलते उसको अच्छे से सुनते और उसको याद करके अपने अध्यापक को सुनाते। इस प्रकार से वह अपने कक्षा में पास हो जाते। उसे बालक का जन्म 14 अप्रैल 1891 में महू मध्य प्रदेश हुआ था। उनके गांव का नाम अंबावाडे मराठा रियासत की कोंकण तटीय पट्टी में पडता था।

समाज में छुआछूत का प्रभाव

लिहाजा अंबेडकर का मूल नाम अंबावाडेकर भी इसी आधार पर पड़ा था। समय बिटता गया सूबेदार साहब का स्थानांतरण महाराष्ट्र में हो गया। भीमराव महाराष्ट्र के मुंबई पहुंचने पर पहले मराठा हाई स्कूल में दाखिला लिया लेकिन कुछ समय बाद भी ने एल्फेन्स्टन कालेज हाई स्कूल में प्रवेश प्राप्त किया छुआछूत का बर्ताव यहां भी बराबर होता था। मगर 1907 में भीमराव ने जब मैट्रिक परीक्षा पास की उस युग में एक अछूत का मैट्रिक पास करने पर एक उत्सव मनाया गया।

इसके बाद 1912 में बी ए की परीक्षा पास की इसी बीच अंबेडकर के पिताजी का देहांत हो गया। परिवार की सारी जिम्मेदारी अंबेडकर के ऊपर आ गई लेकिन सौभाग्य की बात यह है कि महाराज बड़ौदा ने अन्य तीन विद्यार्थियों के साथ अंबेडकर को भी उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका भेजा । आप वहां कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और 1915 में एम ए की परीक्षा पास की अमेरिका से शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे अब इंग्लैंड पढ़ने चले गए। वहां आप लंदन में विश्वविख्यात ‘लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलीटिकल साइंस’ में प्रवेश लिया वहां से अपने डीएससी की डिग्री पूरी नहीं कर पाए। क्योंकि उनके छात्रवृत्ति की अवधि पूरी हो चुकी थी।

बड़ौदा महाराज उन्हें भारत बुला लिया। भारत आने के बाद बड़ौदा महाराज के यहां नौकरी करनी थी। डॉक्टर अंबेडकर अमेरिका और लंदन से पढ़े-लिखे व्यक्ति जो एम ए और पीएच डी की थी। भारत के वर्णवादियों के लिए तो अछूत ही है । उन्हें बड़ौदा महाराज के नौकरी तो मिल गई मगर किसी सवर्ण को यह बर्दाश्त नहीं था। मेरे से उच्च पद पर कोई अछूत है। फाइल उन्हें फेंक कर दी जाती थी। उन्हें रहने के लिए कोई होटल या घर नहीं दे रहा था।पारसी धर्मशाला में रुकने के बाद उन पर हमला हुआ किसी प्रकार से वह बच निकले ।

सामाजिक आंदोलन के पुरोधा

इसके बाद डॉक्टर अंबेडकर का शुरू होता है सामाजिक आंदोलन सार्वजनिक स्थानों पर पानी पीने का अधिकार प्राप्त करने के लिए 20 मार्च 1927 को महाड के चावदार तालाब पर पानी पीकर समानता का बिगुल बजा दिया । इसके बाद सवर्णों ने दलितों की बस्तियों में मारपीट की और घरों में आग लगा दी इसमें डॉक्टर अंबेडकर भी जख्मी हुए । मार्च 1930 में नासिक में कालाराम मंदिर में प्रवेश के लिए सत्याग्रह किया गया उनका मानना था मंदिर में प्रवेश करने से ईश्वर नहीं मिल जाएगा । मगर हमें मनुष्य होने की समानता के लिए यह अधिकार मिलना चाहिए ।

इसके बाद मनुष्य–मनुष्य को बांटने वाली धार्मिक पुस्तक मनुस्मृति स्मृति को 25 दिसंबर 1927 को जलाकर डॉक्टर अंबेडकर ने प्रतीकात्मक विरोध दर्ज कराया । जिससे समानता को स्थान मिल सके । डॉक्टर अंबेडकर भेदभाव, छुआछूत, असमानता के विरोध में पूरी जिंदगी लड़ते रहे । उसमें सुधार न कर पाने के कारण 13 अक्टूबर 1935 के दलित परिषद में धर्म परिवर्तन करने की घोषणा की । जो 14 अक्टूबर 1956 में बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए । 1935 से 1956 के बीच में हिंदू वर्णवादियों में असमानता, छुआछूत में सुधार करने का बहुत प्रयास किया । अंततः वे समझ गए थे इसमें सुधार संभव नहीं है।

 संविधान में अवसर की समता
देश की आजादी के बाद जब डॉक्टर अंबेडकर को संविधान निर्माण में संविधान सभा का प्रारूप अध्यक्ष बनाया गया तो उन्होंने संविधान में सभी मनुष्य होने की समानता को शामिल किया । जो उन्हें हिंदू धर्म में रहते नहीं प्राप्त हो सकी थी। संविधान में सभी जातियों, धर्मो, वर्गों समुदायों, लिंगो को समानता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता को प्रदान किया गया है।
संदर्भ ग्रन्थ-
1 . डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जीवन–चरित — धनंजय कीर हिंदी अनुवाद गजानन सुर्वे, पापुलर प्रकाशन
2. भीमराव अंबेडकर एक जीवनी– क्रिस्तोफ़ जाफ़्रलो हिन्दी अनुवाद योगेश दत्त, राजकमल प्रकाशन
3. बाबा साहब अंबेडकर विवेचनापरख जीवनी— डॉक्टर सूर्यनारायण रणसुभे। राधा कृष्ण प्रकाशन

आभार- अशर्फीलाल, शोधार्थी, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतीहारी, बिहार

 

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