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सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी बोरवेल में गिरने की दुर्घटनायें नहीं हो रही है कम,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी बोरवेल में गिरने की दुर्घटनायें नहीं हो रही है कम,क्यों?

सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी बोरवेल में गिरने की दुर्घटनायें नहीं हो रही है कम,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

खुले बोरवेल के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2010 के फरवरी में ही  गाइडलाइंस जारी किए थे। अब एक दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी बोरवेल में बच्चों के गिरने वाली दुर्घटनाएं जारी हैं। अभी ताजा मामला छत्तीसगढ़ के जांजगीर चंपा जिले का है जहां 80 फुट गहरे बोरवेल में 11 साल का राहुल साहू गिर गया। इसके  साथ ही फिर से इस मामले पर चर्चा छिड़ गई है। राहुल को बोरवेल से निकालने के लिए 104 घंटे तक बचाव कर्मी की टीम जुटी रही तब कहीं जाकर वह बाहर आया। वहीं पंजाब के होशियारपुर का रितिक इतना भाग्यशाली नहीं था। 23 मई को उसे अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया। 300 फीट गहरे बोरवेल से सात घंटे तक की मेहनत के बाद उसे निकाला गया।

2010 के अगस्त में हुआ था आंशिक बदलाव

6 अगस्त 2010 को तत्कालीन चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया की अगुवाई में तीन जजों की बेंच ने 11 फरवरी 2010 वाले आदेश में आंशिक बदलाव किया गया। साथ ही जिला, ब्लाक, गांव को निर्देश जारी कर दिया गया। यह कहा गया था कि ग्रामीण इलाकों में गांव के सरपंच और कृषि विभाग के एक्जीक्यूटीव के जरिए मानिटरिंग की जानी है। शहरी इलाकों में इस काम को जूनियर इंजीनियर और ग्राउंड वाटर या पब्लिक हेल्थ या म्यूनिसिपल कार्पोरेशन से संबंधित विभाग के एक्जीक्यूटीव द्वारा किया जाना है।

दायर हुई थी याचिका

बोरवेल व ट्यूबवेल में दुर्घटनाओं के बढ़ते मामलों पर एडवोकेट जी एस मणि द्वारा रिट याचिका दर्ज कराई गई। इसमें ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने में असफल आथोरिटी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2010 के आदेश पर केंद्र व सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से प्रतिक्रियाएं मांगी हैं। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, दो साल से अधिक समय के अंतराल के बाद 13 जुलाई को इस रिट पीटिशन को लिस्ट किया जाना है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गाइडलाइंस में कहा था-

कलेक्टर या ग्राम पंचायत को लिखित सूचना देने के बाद ही बोरवेल की खुदाई की शुरुआत की जाएगी। इस खुदाई को करने वाली सरकारी, अर्ध-सरकारी संस्था या ठेकेदार का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। इसके साथ ही खुदाई वाले स्थान पर साइन बोर्ड लगाया जाना चाहिए और बोरवेल या कुएं के आसपास कंटीले तारों की फेंसिंग की जाना चाहिए। कोर्ट ने अपने गाइडलाइन में केसिंग पाइप के चारों तरफ सीमेंट/कॉन्क्रीट का 0.30 मीटर ऊंचा प्लेटफार्म बनाने पर भी जोर दिया था।

बोर के मुहाने को स्टील की प्लेट वेल्ड की जाएगी या नट-बोल्ट से अच्छी तरह कसने का निर्देश दिया गया था। पंप रिपेयर के समय नलकूप के मुंह को बंद रखने को कहा गया। नलकूप की खुदाई पूरी होने के बाद खोदे गए गड्ढे और पानी वाले मार्ग को समतल किया जाना अनिवार्य होगा। खुदाई अधूरी छोड़ने पर मिट्टी, रेत, बजरी, बोल्डर से पूरी तरह जमीन की सतह तक भरा जाना चाहिए।

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