राजनीति से राम नीति की ओर…….

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यह हजारों लाखों प्रतिज्ञाओं के पूरा होने का दिन है। वे लाखों प्रण, जिन्हें ठानने वाले कब के स्वर्ग सिधार गए। वे लाखों प्रण भी, जिन्हें युवकों ने भरी जवानी में ठाना और अब बुढ़ापे में पूरा कर लेंगे। जो जीवित हैं, उनका रोम रोम भीष्म और भीम की गरिमा लिए हुए हैं। जो चले गए, वे स्वर्ग से देख कर तृप्त हो रहे होंगे।

यह उन असंख्य युवकों का दिन है जो कारसेवा को निकले तो यह ठान कर निकले कि जबतक मन्दिर नहीं बन जाता, घर नहीं लौटेंगे। अयोध्याजी की गलियों में साधु बन कर घूमते उन वीरों का प्रण पूरा हो रहा है।

यह उन जोशीले युवकों का दिन है जिन्होंने तय किया था कि जबतक मन्दिर नहीं बनता, विवाह नहीं करेंगे। अब बूढ़े हो चुके वे लोग विवाह भले न करें, पर कल का दिन उनके लिए विवाह से भी बड़े उत्सव का दिन है। यह उनका दिन है…

यह उन माताओं का दिन है जिन्होंने धर्मक्षेत्र में अपने लाल भेजे थे। यह उन बहनों का दिन है जिन्होंने इस दिन के लिए अपनी राखियों की बलि दी थी। यह उन पिताओं का दिन है जिनके योद्धा बेटे सरयू की धारा में बहा दिए गए। उन लोगों के बच्चे वापस भले न आएं, पर आज उनकी प्रतीक्षा पूरी हो रही है। उनके हुतात्मा बच्चों के प्रण पूरे हो रहे हैं, उनके जीवन का लक्ष्य पूरा हो रहा है।


यह उस बूढ़ी माता का दिन है जो पिछले बत्तीस वर्ष से मौन व्रत पर है। उन असंख्य जीवित मृत लोगों का दिन है जिन्होंने कभी पगड़ी नहीं बांधी। प्रण लिया था किसी पूर्वज ने, पर पीढ़ी दर पीढ़ी लोग निभाते चले गए। कल जब उस कुल के वंशज अपने माथे पर पगड़ी रखेंगे तो वह उन अनाम पूर्वजों के राज्याभिषेक का क्षण होगा…

यह सरजू मइया का दिन है। इन पाँच सौ वर्षों में जाने कितनी बार उनकी धारा में उनके पुत्रों का रक्त बहा है। बालू भरे बोरे में युवकों के शव बांध कर उनकी गोद में दबा दिए गए, और माँ चुपचाप रोती रह गयी। तब धारा में केवल सरयू के आँसू होंगे। कल जब लोग उसी धारा में पुष्प बहाएंगे, तो युगों बाद शायद माँ मुस्कुरा उठेगी।

यह सभ्यता के विजय का दिन है। यह अधर्म पर धर्म के विजय का दिन है। यह राष्ट्र के मस्तक पर तिलक लगाने का दिन है। प्रसन्न होइये, यह भारत का दिन है। यह हमारा दिन है।हम सब का दिन है…
जय जय सियाराम! जय श्रीराम।

आभार-सर्वेश तिवारी श्रीमुख, गोपालगंज, बिहार।

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