घनश्याम शुक्ल : एक समाज सुधारक

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आलेख – प्रो.जीतेन्द्र वर्मा‚ हिंदी विभाग , जेड. ए. इस्लामिया स्नातकोत्तर महाविद्यालय , सीवान

श्रीनारद मीडिया‚ सेंट्रल डेस्कः

घनश्याम शुक्ल सीवान जिले के एक समाज सुधारक थे । उनका निधन पिछले 23 दिसंबर 2021 को हो गया । वे लगभग 72 वर्ष के थे । उन्होंने अपने को डी क्लास किया था। वे रूढ़िभंजक थे । अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ वे आजीवन लड़ते रहे । उन्होंने अपना जनेव तोड़ दिया , कर्मकांड का निषेध कर दिया और आज के सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने का दावा करनेवाले कुछ लोग जनेव पहनने के लिए आंदोलन कर रहे हैं !

एक तरफ दलित – पिछड़े अपना संस्कृतीकरण कर रहें हैं और दूसरी तरफ घनश्याम शुक्ल जैसे ब्राह्मण अपने को डी क्लास कर रहें हैं । सीवान राहुल सांकृत्यायन की कर्मभूमि रही है । यहाँ पर उनकी परंपरा में आचार्य महेंद्र शास्त्री हुए । घनश्याम शुक्ल भी इसी परंपरा की कड़ी थे । आचार्य महेंद्र शास्त्री और घनश्याम शुक्ल समजवादी विचारधारा से जुड़े थे । अंतर सिर्फ स्वभाव का था । शास्त्री जी अपने अभियान में आक्रामक ढंग से लगे रहते थे जबकि शुक्ल जी का स्वर शामक रहता था । उन्हें अपने समाज सुधार के काम में न तो मान – अपमान का भय था और न ही किसी तरह का लोभ – लालच था । वे संत भाव से अपने अभियान में लगे रहते थे ।


मैंने उन्हें बचपन से देखा है । सम्भवतः 1983 – 84 का वर्ष रहा होगा । उन दिनों वे साक्षरता आंदोलन से जुड़े थे । घूम – घूम कर लोगों को साक्षरता से होनेवाले फायदे बता रहे थे । इसके लिए वे झुगी – झोपड़ी में जाते थे ।

उन्होंने अपने गाँव पंजवार में कई संस्थाएँ खोली । अपने जीवन की सारी पूँजी इनमें लगा दी । इनमें से किसी का नामकरण अपने या अपने परिवार के नाम पर नहीं किया न ही किसी में अपने परिवार के सदस्य को रखा । उन्होंने अपने गाँव में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के नाम पर एक संगीत विद्यालय खोला । उनको उस समय भारत रत्न नहीं मिला था ।

उनसे पुस्तक मेलों में बराबर भेंट होती थी । पटना पुस्तक मेले में प्रतिवर्ष भेंट होती । किताब खरीदने के अलावे वे सेमिनार , विचार गोष्ठियों में भाग लेते । एक बार दिल्ली में होने वाले विश्व पुस्तक मेले में उनसे फिल्मी स्टाइल में भेंट हुई । वे भोजपुरी शब्दकोश खोज रहे थे । कोई बता नहीं रहा था । एक प्रकाशक उन्हें मेरे पास लेकर आया । उसे हमारे परिचय का पता नहीं था । मिल कर हमदोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । वे नोयडा में रहनेवाले दो युवकों को लेकर अपने ग्रामीण के पुस्तकालय के लिए पुस्तकें खरीदने आये थे ।
वे आजीवन समाजसेवा में लगे रहे । उन्हें नमन है ।

लेखक का पता – वर्मा ट्रांसपोर्ट ,राजेन्द्र पथ , सीवान – 841226 ( बिहार )

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