सतुआन के पावन पर्व प आखर परिवार के ओर से सभ केहू के बधाई आ शुभकामना ।

सतुआन के पावन पर्व प आखर परिवार के ओर से सभ केहू के बधाई आ शुभकामना ।

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नया अन्न, जिनगी में नया नया खुशी ले के आवे इहे कामना बा ।

पढीं ध्रुव गुप्त, सौरभ पांडे, संजय सिंह आ देवेंद्र नाथ तिवारी के रचना सतुआन प ।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सौरभ पांडे जी लिख रहल बानी –

लपसी पिट्ठी घोरना, नुनहा सातू सार ।
चटक स्वाद सतुआन के चटनी आम अँचार !!
सानल सतुआ नून सङ, घींची पानी खास !
गरमी बाकिर मार दी, मेटी कण्ठ-तरास !!

फागुन के बीतला के बाद जब चइत अपना चरम प रहेला , खेतिहर खेत सरेहि के ओरि चलेले त घाम आ लूक आपन तेजी देखावे लागेला , कटिया होखे लागेला दंवरी होखे लागेला , नया नया अनाज घर मे आवेला , आलू कोडइला बेचइला के बाद बूंट , मटर , लेतरी , मसुरी , तेलहन , गंहू जइसन फसल अब अपना अपना मालिक के घरे पहुंचे खाति तैयार होखे लागेला , आम अपना मोजर के टिकोढा के आकार देबे लागेला ओहि घरी कर्मप्रधान , पर्यावरण के ध्यान मे राखत ख्याल करत भोजपुरियन के निठाह त्योहार जवना मे माटी के खुशबु सोन्ह खुसबू बसल रहेला ” सतुआन ” आवेला , पचरा चइती चइता के ले ले खरिहान मे बूंट , गंहू लेतरी मसुरी के टाल लागल रहेला , दंउरी चलेला केनियो राग कढावल जाला दिन मे सतुआ सनाला टिकोढा के चटनी , लइका लइकी सब बगइचा मे कबो शीतल ठंढा बयार पुरवईया मे गिरत टिकोढा त कबो लहकत धीकल हवा के ले ले पछुवा , टिकोढा बीनत असल मे सतुआन के आपन एगो अलगे आनंद रहेला ….

संजय सिंह जी लिख रहल बानी –

चढ़ते चइत मन चंचल होला ,पेट होला कमजोर
अब टाँठ भोजन से बचके रहs टूटता पोरे पोर !
कटिया लागल दँवरी दँउके , देखs उखड़त बाटे चाना
मकई अगोरत बैठ मचान पर ,नुनु गावस गाना !!

सरसो पीटत चाची कहली, आज भोजन के नइखे चानस
दिदिया कहि द घुरबिगन से, गमछी मे सतुआ सानस !
माई के मनसा पुरन भइल, उ लागल चटनी पीसे
छिले खातिर टिकोढ़ा चाचा ,लगलन चाकू घिसे !!

जब सतुआ सामने प्रकट भइल ,सब जीभ मे आईल पानी
अइसन सोन्ह गमकल कि ,छोड़के गोंड़ीन अइली घानी !
केहु थरिया मे केहू छिपा में, केहू हाथे मे लेके चभुलावे
सबके मुँह मे सतुआन के दिन ,देखिं सतुआ गीत सुनावे !!

ध्रुव गुप्त जी लिख रहल बानी –

सतुईया रे तोर गुन कहलो ना जाला !

सतुआन बिहार आ पूरबी उत्तर प्रदेश के भोजपुरिया लोग के लोक-परब हउवे। सतुआन आम के गाछी पर नवका फल आ खेत में बूट अउर जौ के नवका फसल के उत्सव कहल जाला । आजु के दिन लोग गंगा-नहान अऊर दान-पुन्न कईला के बाद आम के नवका टिकोरों के चटनी के संगे नया बूट आ जौ के सतुआ खाएला। सतुआ भोजपुरिया लोगन के सबसे मनपसंद भोजन मानल जाला। सतुआ बूट के होखे, जौ के होखे, मकई के होखे, चाहे सबके मिलवनी- सतुआ के असलिया माजा तब आवेला जब थरिया में ओकरा संगे ओकर कुछु चटपट संघतिया भी होखे। भोजपुरी में एगो कहावत बा – सतुआ के चार ईयार – चोखा, चटनी, पियाज, अचार। सतुआ के संगे नवका टिकोरा के चटनी होखे त ओकर स्वाद में चार चांद लाग जाला।

देवेंद्र नाथ तिवारी लिख रहल बानी –

सतुआन के वैज्ञानिक महत्व

आज सउंसे पूर्वांचल में सतुआनी के पर्व मनावल जा रलह बा. आजू के दिन भोजपुरिया लोग खाली सतुआ आ आम के टिकोरा के चटनी खाला. साथे-साथ कच्चा पियाज, हरिहर मरिचा आ आचार भी रहेला. एह त्योहार के मनावे के पीछे के वैज्ञानिक कारण भी बा. इ खाली एगो परंपरे भर नइखे. असल में जब गर्मी बढ़ जाला, आ लू चले लागेला तऽ इंसान के शरीर से पानी लगातार पसीना बन के निकलले लागेला, तऽ इंसान के थकान होखे लागे ला. रउआ जानते बानी भोजपुरिया मानस मेहनतकश होखेला. अइसन में सतुआ खइले से शरीर में पानी के कमी ना होखेला.

अतने ना सतुआ शरीर के कई प्रकार के रोग में भी कारगर होखेला. पाचन शक्ति के कमजोरी में जौ के सतुआ लाभदायक होखेला. कुल मिला के अगर इ कहल जाए कि सतुआ एगो संपूर्ण, उपयोगी, सर्वप्रिय आ सस्ता भोजन हऽ जेकरा के अमीर-गरीब, राजा-रंक, बुढ़- पुरनिया, बाल-बच्चा सभे चाव से खाला. खाला. असली सतुआ जौ के ही होखेला बाकि केराई, मकई, मटर, चना, तीसी, खेसारी, आ रहर मिलावे से एकर स्वाद आ गुणवत्ता दूनो बढ़ जाला. सतुआ के घोर के पीलय भी जाला, आ एकरा के सान के भी खाइल जाला. दू मिनट में मैगी खाए वाला पीढ़ी के इ जान के अचरज होई की सतुआ साने में मिनटों ना लागेला. ना आगी चाही ना बरतन. गमछा बिछाईं पानी डाली आ चुटकी भर नून मिलाईं राउर सतुआ तइयार.. रउआ सभे के सतुआनी के बधाई. कम से कम आज तऽ सतुआ सानी सभे.

एक हाली फेरु से सतुआन लोकपर्व के बधाई आ शुभकामना ।

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