खुले बांहों वाली भाषा है हिंदी, सभी भाषा का किया स्‍वागत – अनामिका

खुले बांहों वाली भाषा है हिंदी, सभी भाषा का किया स्‍वागत – अनामिका

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

हिंदी में दुनिया की अलग अलग भाषा या फिर अन्य भारतीय भाषा की रचनाओं का जमकर अनुवाद हुआ है। इस भाषा ने खुली बांहों से सभी भाषा का स्वागत किया, सबके शब्दों का स्वागत किया। हिंदी बहुत ही जनतांत्रिक भाषा है, यहां उदारता और स्वीकार का भाव है। अन्य भाषाओं की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद होने से ये लाभ हुआ कि इसका शब्द भंडार बढ़ा और ये समृद्ध हुई। हिंदी की चाल बदली लेकिन वो सुघड़ हो गई। ये कहना था हिंदी की कवयित्री और कथाकार अनामिका का, जो लेखिका सुधा उपाध्याय से बात कर रही थीं। अनामिका के मुताबिक हिंदी भाषा मिठबोलुआ (मीठा बोलनेवाली) बेटी की तरह है, जो सबके साथ साहचर्च बनाकर रखती है।

अनामिका ने हिंदी कविता में बदलाव को भी इस बातचीत में रेखांकित किया। उनका मानना है कि नर्सिंग और शिक्षण की तरह कविता का भी स्त्रीकरण हुआ। कविता में स्त्रियों के आने से घरेलू बिंबों से एक विराट सत्य उद्घाटित हुआ। लोरियों और अंतरंग बातचीत की भाषा कविता में आई तो उसने सबको चौंकाया। अन्य भाषा के शब्दों के उपयोग से हिंदी को ठेस लगने के प्रश्न के उत्तर में अनामिका ने स्पष्ट किया कि हर ठेस विस्तार देता है, बगैर चोट खाए विस्तार नहीं होता, ये प्रकृति का नियम है। ये भाषा पर भी लागू होता है। ‘हिंदी हैं हम’ के इस मंच पर 1 सितंबर से लगातार हर दिन अलग अलग विषयों के विशेषज्ञों से बातचीत की जा रही है। इसमें अबतक फिल्म, तकनीक, शिक्षा, परीक्षा, साहित्य आदि के क्षेत्र के दिग्गजों से बातचीत की गई।

वहीं फिल्म तेजाब, चालबाज, खलनायक, सौदागर जैसी फिल्मों के संवाद लेखक कमलेश पांडे का मानना है कि हिंदी को लोकप्रिय बनाने में मनोरंजन की बेहद अहम भूमिका रही है। उन्होंने कहा कि हिंदी को लोकप्रिय बनाने में कहानियां और उपन्यास के साथ साथ हिंदी फिल्मों का बड़ा योगदान रहा है। देवकीनंदन खत्री के उपन्यास पढ़ने के लिए लोगों ने हिंदी सीखी थी।

उनका मानना है कि हिंदी फिल्मों ने न केवल हिंदी को विस्तार दिया बल्कि देश को जोड़ने का काम भी किया। लेकिन हिंदी सिनेमा के इस योगदान को उचित सम्मान नहीं मिल पाया। फिल्मों के संवाद पर बात करते हुए वो कहते हैं कि ये देश संवाद के लिए जाना जाता है। हमको ये परंपरा अपने उपनिषदों से मिली है। दर्शकों को अच्छे संवाद सुनने में आनंद आता है। संवाद के लिए एक शब्द ही बन गया ‘डायलागबाजी’। दर्शक आम बोलचाल की भाषा सुनने के लिए फिल्म नहीं देखता है, उसको संवाद में एक खास अंदाज और अदा की अपेक्षा रहती है।

कमलेश पांडे ने बेबाकी से कहा कि इस दौर के ज्यादातर अभिनेता देवनागरी पढ़ नहीं पाते हैं। पहले के अभिनेताओं को भाषा की समझ होती थी, इसलिए वो भाषा का सम्मान करते थे। अब तो हिंदी को ठीक से समझने, बोलने और सम्मान देनेवाले कम बचे हैं। उम्मीद छोटे शहरों से आ रहे अभिनेताओं, लेखकों और निर्देशकों से है जिन्होंने हिंदी को बचाकर रखा है। कमलेश पांडे दैनिक जागरण के उपक्रम ‘हिंदी हैं हम’ के हिंदी उत्सव में स्मिता श्रीवास्तव से बातचीत कर रहे थे। हिंदी उत्सव में एक अबतक फिल्म, पत्रकारिता, शिक्षा, तकनीक आदि के विशेषज्ञों से बातचीत की जा चुकी है।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!