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भाषा से मानव की संवेदना जुड़ी होती है- प्रो. प्रसून दत्त सिंह - श्रीनारद मीडिया

भाषा से मानव की संवेदना जुड़ी होती है- प्रो. प्रसून दत्त सिंह

भाषा से मानव की संवेदना जुड़ी होती है- प्रो.प्रसून दत्त सिंह

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के गांधी भवन परिसर में राजभाषा कार्यान्वयन समिति एवं हिंदी विभाग के तत्ववाधन में हिंदी दिवस समारोह का आयोजन नारायणी कक्ष में किया गया।

अपने अध्यक्षीय भाषण में भाषा व मानविकी संकाय के अधिष्ठाता प्रो.प्रसून दत्त सिंह ने कहा कि भारत की संस्कृति में वसुधैव कुटुंबकम की तरह हमारी हिंदी भाषा है। भाषा से मानव की संवेदना जुड़ी होती है। हिंदी को जन भाषा के रूप में उधृत करने के लिए विद्वानों ने अपना सर्वोच्च मत दिया है। हिंदी को अपने प्रवाह में आगे बढ़ने दिया जाए। हिंदी में उपयोगी सामग्री लाई जाए ताकि तकनीकी रूप से यह आगे बढ़ सके, सभी तक पहुंच सके। हिंदी हम सबकी है इसकी मर्यादा के लिए हमें आगे बढ़कर काम करने की आवश्यकता है।

आज हमें पुनरुत्थान की आवश्यकता है- प्रो. संतोष त्रिपाठी

वहीं शोध व विकास विभाग के अधिष्ठाता प्रो.संतोष त्रिपाठी ने कहा कि अंग्रेजों ने हमारी गुरुकुल परंपरा को समाप्त कर दिया। वह हमें क्लर्क बनाना चाहते थे, उन्होंने अपनी विचारधारा से फूट डालो राज करो और आगे बढ़ो की नीति पर चले। लेकिन जिस दिन हम पुनरुत्थान के बारे में सोचने लग जाएंगे, हम अपनी भाषा की ओर लौट आएंगे। हमारी भाषा में वह ताकत है जिससे हम दुनिया की कठिन से कठिन वस्तु को प्राप्त कर सकते हैं। आज हमें पुनरुत्थान की आवश्यकता है। हिंदी को अपने ज्ञान विज्ञान में समाहित करने की आवश्यकता है,क्योंकि यह भारत के अर्चन की भाषा है।

हमें अपनी भाषा पर गर्व करना चाहिए-प्रो. सुनील महावर

समाजिक विज्ञान के अधिष्ठाता प्रो. सुनील महावर ने कहा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने से पूरे भारत में एक समावेशी स्वरूप का निर्धारण होगा। यह कैसी विडंबना है कि हम अपनी मातृभाषा को याद करने के लिए दिवस मनाते हैं। जबकि हमें हिंदी को बढ़ाने के लिए प्रयास करने होंगे। हमें अपनी भाषा पर गर्व करना चाहिए।

हिंदी को आगे बढ़ाने में अपना पुरजोर समर्थन दें-डॉ शिरीष मिश्रा

वाणिज्य विभागाध्यक्ष डॉ शिरीष मिश्रा ने कहा कि मैं प्रयागराज का रहने वाला हूं। हिंदी के होने का मुझे गर्व है,मेरी शिक्षा विद्या भारती से हुई है। मुझे इस भाषा से प्यार है मैं आपको बता देना चाहता हूं की पूरी दुनिया में स्टॉक एक्सचेंज की सारी बातें व खबरें हिंदी में लिखी बोली और पढ़ी जाती है। यह हिंदी के लिए गर्व का विषय है। आवश्यकता है कि हम हिंदी को आगे बढ़ाने में अपना पुरजोर समर्थन दें।

भाषा का निर्माण आमजन करता है-डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव

इससे पहले विषय प्रवर्तन करते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि भाषा का निर्माण आमजन करता है। राजभाषा का निर्माण राजसत्ता करती है। लंबे समय तक दूसरी राजभाषा के रहते हुए भी हिंदी समाप्त नहीं हुई। सम्मिलित रूप से देखा जाए तो हिंदी आज विश्व की पहली भाषा है। लोक भाषा को ही राजभाषा होना चाहिए। जो सरकार राम मंदिर का मामला सुलझा सकती है, वह हिंदी को राष्ट्रभाषा भी बना सकती है। सल्तनत व मुगल काल में भी हिंदी का प्रयोग होता रहा, इसका अखिल भारतीय स्वरूप था।1620 ईस्वी के आसपास हिंदी विश्व स्तरीय व्यापार की भाषा बन गई थी।

आधुनिक समय में मालवीय जी के प्रयास से 1900 ईस्वी में हिंदी उत्तर प्रदेश में स्वीकृत हुई जबकि इससे पहले बिहार में हिंदी आ गई थी। अंबेडकर जी संस्कृत को राजभाषा बनाने बनाना चाहते थे। छोटी-छोटी अस्मिताओं से देश को तोड़ने वाले लोग ही हिंदी के विरोधी हैं। जबकि काका कालेलकर, दयानंद सरस्वती, सावरकर, तिलक जैसे विद्वानों ने हिंदी को आगे बढ़ाया है। हिंदी से ही हमारी साझी संस्कृति विकसित हुई है। भाषा पिछले 75 वर्षों से उर्दू मिश्रित होती चली गई है। राजनीतिक स्वीकृति से हिंदी का राष्ट्रभाषा होना प्रतीत हो रहा है। हिंदी की स्वीकृति को लेकर प्रारंभ से ही नेहरू विरोधी रहे हैं। भारत राज्यों का संघ होगा और राज्य भाषा के आधार पर बनेगा यह उनकी ही धारणा थी। लेकिन मुझे ऐसा पूरा विश्वास है कि वर्तमान सरकार हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता प्रदान करेगी।

हिंदी भारतीय संस्कृति की वाहिका है-डॉ गोविंद कुमार वर्मा

समारोह में स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ गोविंद कुमार वर्मा ने कहा कि हिंदी भारतीय संस्कृति की वाहिका है, यह कृत्रिम रूप से स्थापित नहीं हुई है। निज भाषा, स्वभाषा हमारे जीवन का मूल है। हिंदी को राजभाषा बनाने हेतु ग़ैर हिंदी भाषा-भाषी के विद्वानों ने कहीं अधिक योगदान दिया है। गांधी जी ने कहा था कि मुझे अवसर मिले तो मैं निरंकुश रूप से हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता दे दूं।
संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ श्याम कुमार झा ने कहा कि हिंदी जनप्रिय हो, दबाव देकर हिंदी को आगे नहीं बढ़ना चाहिए। यह मानक रूप से विकसित होनी चाहिए। हम सभी पढ़े लिखे लोगों को हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए आम जनता तक पहुंचना चाहिए।

इस मौके पर डाॅ ओम प्रकाश गुप्ता, डॉ सुधीर चौधरी, डॉ उमेश महापात्र, डॉ श्यामनंदन,डॉ गरिमा तिवारी, डॉ कैलाश चंद्र प्रधान, समेत कई विभागों के शिक्षकवृंद एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का प्रारंभ मां सरस्वती के तैल चित्र पर पुष्प अर्पित करके प्रारंभ हुआ। मंच का संचालन शोधार्थी मनीष कुमार भारती ने किया। सरस्वती वंदना प्रेमकला यादव ने प्रस्तुत किया,जबकि शोधार्थी सोनू ठाकुर व विकास कुमार गिरि ने कविता पाठ प्रस्तुत किया।
वहीं समारोह में उपस्थित सभी शिक्षकवृंद व शोधार्थियों का धन्यवाद शोधार्थी अपराजिता ने किया। समारोह का समापन राष्ट्रगान के साथ संपन्न हुआ।

 

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