लोकसभा चुनाव में कुछ कर नहीं पाऊंगा-सुशील कुमार मोदी

लोकसभा चुनाव में कुछ कर नहीं पाऊंगा-सुशील कुमार मोदी

सुशील कुमार मोदी छह माह से कैंसर से जूझ रहे है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती जारी है. चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशी प्रचार में लगे हैं, वहीं इसी बीच राज्यसभा के पूर्व सदस्य सुशील कुमार मोदी ने सोशल साइट एक्स पर बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने अपनी चुनावी राजनीति से विदाई का कारण बताते हुए लिखा है कि मैं पिछले छह माह से कैंसर से संघर्ष कर रहा हूं. अब लगा कि लोगों को बताने का समय आ गया है. लोकसभा चुनाव में कुछ कर नहीं पाउंगा. पीएम मोदी को सबकुछ बता दिया है. देश, बिहार और पार्टी का सदा आभार और सदैव समर्पित. 72 वर्षीय सुशील कुमार मोदी दो कार्यकाल के दौरान, 2005 से 2013 और 2017 से 2020 तक, बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे।

सुशील मोदी 1974-75 के जेपी (जयप्रकाश नारायण) आंदोलन से उभरने वाले तीसरे सबसे महत्वपूर्ण नेता हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि से आने के बाद वह 1980 के दशक में राजनीति में सक्रिय हुए थे।

राज्यसभा से विदाई के बाद कई तरह की थी चर्चा

तीन दशकों तक बिहार की चुनावी राजनीति में सक्रिय रहनेवाले सुशील कुमार मोदी लोक जनशक्ति पार्टी नेता और केंद्रीय मंत्री रहे रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद खाली हुई सीट पर बचे कार्यकाल के लिए साल 2020 में सांसद बने. पिछले दिनों पार्टी ने बिहार की राज्यसभा सीटों के लिए होने वाले उप चुनाव के लिए सुशील मोदी को उम्मीदवार नहीं बनाया था. बीजेपी ने जब बिहार से डॉक्टर धर्मशीला गुप्ता और डॉक्टर भीम सिंह को राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया, तो लोगों को लगा कि पार्टी सुशील मोदी को पटना या भागलपुर से उम्मीदवार बनायेगी. लेकिन आज सुशील मोदी ने खुद अपनी बीमारी का खुलासा कर सक्रिय राजनीति से अलग होने का कारण बता दिया.

चारों सदनों के सदस्य रह चुके हैं

जेपी आंदोलन के दौरान सक्रिय भागीदारी और फिर आपातकाल में 19 महीने जेल काटने के बाद सुशील मोदी सक्रिय सियासत में आए. इसके बाद वे लगातार 15 साल तक विधायक रहे. सुमो 9 साल तक विधानपरिषद् सदस्य रहे. इस दौरान वे विधानपरिषद् में नेता प्रतिपक्ष भी रहे. लोकसभा में भागलपुर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.

राज्य सभा सदस्य बनने पर सदन की विधि एवं न्याय समिति के अध्यक्ष रहे. सुशील कुमार मोदी ऐसे नेता हैं जो लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य तो रह ही चुके हैं, बिहार विधानसभा और बिहार विधानपरिषद् के सदस्य भी रह चुके हैं. यानी उनके नाम चारों सदनों के सदस्य रहने का अनुभव है. कभी बिहार बीजेपी के सर्वमान्य चेहरा रहे सुशील कुमार मोदी कई पदों पर रहे हैं. नीतीश कैबिनेट में डिप्टी सीएम रहते सुशील मोदी ने एक सफल वित्त मंत्री के रूप में पहचान बनाई. जब सुमो बिहार के वित्त मंत्री थे तब उन्हें राज्यों के वित्त मंत्रियों की प्राधिकृत समिति का अध्यक्ष बनाया गया था.

केंद्रीय वित्त मंत्री बनने का सपना नहीं हुआ पूरा

पिछले दिनों सुशील मोदी ने एक ट्वीट में कहा था कि देश में बहुत कम कार्यकर्ता होंगे जिनको पार्टी ने 33 वर्ष तक लगातार देश के चारों सदनों में भेजने का काम किया हो. मैं पार्टी का सदैव आभारी रहूंगा और पहले के समान कार्य करता रहूंगा. इस ट्वीट को कई हलकों में विदाई लेने वाले ट्वीट की तरह पढ़ा गया. बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और पूर्व वित्त मंत्री सुशील मोदी के बारे में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सुशील मोदी भारत के केंद्रीय वित्त मंत्री के पद के योग्य थे,

लेकिन दुर्भाग्यवश वो बिहार के वित्त मंत्री और उपमुख्यमंत्री बनकर रह गए. सुशील मोदी बिहार में 2005 से लेकर 2013 तक उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री रहे, जीएसटी एंपावर्ड कमिटी के प्रमुख रहे, जीएसटी आदि आर्थिक विषयों पर वो लेख लिखते रहे. जब वो विपक्ष में थे तो चाहे बजट हो या फिर कुछ और आर्थिक विषय, वो उन पर बात करते थे, सवाल उठाते थे.

एंटी लालू राजनीति के केंद्र में रहे मोदी

बिहार में लालू विरोध के केंद्र में रहे सुशील मोदी पर लंबे वक्त से कई आरोप लगते रहे हैं कि उनके नेतृत्व में भाजपा नीतीश कुमार की बी-टीम बनकर रह गई. वो राज्य में भाजपा का चेहरा नहीं बन पाये. उनके रहते बिहार में कोई नई लीडरशिप नहीं उभर पाई. ऐसे वक्त में जब विधानसभा में बीजेपी की जदयू से ज़्यादा सीटें हैं, उसके बावजूद भाजपा ने एक बार फिर नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनाया है. लोगों का ये भी कहना है कि लालू विरोध के केंद्र में रहे सुशील मोदी का राजनीति कद बिहार में 2017 से ही कम होता गया.

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