बचे रहना है तो करना होगा जीवनशैली में कुछ सुधार.

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विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बीमारियां भी समय के साथ बदल रही हैं। डायरिया, निमोनिया, टीबी, सैप्टिक सहित अन्य बैक्टीरियल संक्रमण कम हुए हैं। वहीं, वायरल संक्रमण डेंगू, कोरोना, स्वाइन फ़्लू, वायरल निमोनिया के मरीजों की संख्या बढ़ गई है। यही नहीं, बदली जीवनशैली से मधुमेह और ह्रदय रोगियों की संख्या दोगुने से अधिक हो गई है। इसी तरह से सांस संबंधी बीमारियां, पेट की बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या भी बढ़ गई है। विश्व स्वास्थ्य दिवस पर यह आंकड़े सचेत कर रहे हैं कि स्वस्थ्य रहने के लिए जीवनशैली में बदलाव करें, तनाव मुक्त रहें और पौष्टिक आहार लें।

पुरुषों के साथ ही महिलाएं मधुमेह की चपेट में

राष्ट्रीय परिवारिक स्वास्थ्य सर्वे-5 (2019-21) के अनुसार जिले में 3.7 फीसद महिलाओं के शुगर का स्तर सामान्य से अधिक था और 3.2 फीसद महिलाओं का शुगर स्तर सामान्य से अधिक था। 7.2 फीसद महिलाओं को उच्च शुगर के स्तर होने के कारण दवाएं लेनी पड़ रही है। जबकि 4.5 फीसद पुरुषों के शुगर का स्तर सामान्य से अधिक था और 3.5 फीसद पुरुषों का शुगर स्तर सामान्य से अधिक था। सर्वे के अनुसार 8.2 फीसद पुरुषों को उच्च शुगर के स्तर होने के कारण दवाएं लेनी पड़ रही है।

स्वस्‍थ रहने के लिए ये करें

– नियमित 45 मिनट तेज टहलें।

– घर का बना हुआ पौष्टिक आहार लें।

– पानी का सेवन अधिक करें।

– सात से आठ घंटे की नींद लें।

– तनाव मुक्त रहें, साफ सफाई रखे।

पिछले 10 सालों में वायरल संक्रमण बढ़े हैं जबकि बैक्टीरियल संक्रमण में कमी आई है। लोगों का आना जाना बढ़ा है, इससे भी कोरोना की तरह से अन्य वायरल संक्रमण बढ़े हैं।

आयुर्वेद का अर्थ है, आयु का विज्ञान, जो हमें स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीना सिखाता है। इसके दो प्रमुख उद्देश्य हैं। पहला यह कि हम निरोगी जीवन जिएं और दूसरा यदि हम अस्वस्थ होते हैं तो किस तरह का हमारा खानपान हो, जिससे हम जल्दी स्वस्थ हो जाएं और दोबारा संक्रमण की चपेट में न आएं। इस प्राचीन पद्धति की प्रासंगिकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कोरोना की पहली लहर में जब दुनिया इस वायरस से बचने के उपाय ढूंढ़ रही थी, तब भारत में जड़ी-बूटियों का काढ़ा व दवाएं कोविड-19 वायरस की रफ्तार धीमी कर रहे थे।

आयुर्वेद हमें अनुशासित जीवन जीना सिखाता है और यह पूर्णत: ऋतुचर्या पर आधारित है। आमतौर पर हम तीन ऋतुओं की बात करते हैं, लेकिन आयुर्वेद में आहार-विहार के लिए छह ऋतुओं का वर्णन है। हमारा शरीर किसी बीमारी की चपेट में तब आता है, जब वात, कफ और पित्त का संतुलन बिगड़ता है। शरीर में यह स्थिति तब बनती है, जब खानपान और दिनचर्या मौसम के अनुकूल नहीं होते हैं। इसीलिए स्वस्थ रहने के लिए खानपान और दिनचर्या को अनुशासित रखना बहुत आवश्यक है।

सुव्यवस्थित हो दिनचर्या: आयुर्वेद के अनुसार, स्वस्थ रहने के लिए संयमित व अनुशासित दिनचर्या अपनाना अति महत्वपूर्ण है। इसमें सूर्योदय से पहले उठने से लेकर दिनभर के कार्य व रात्रि में सोने तक का समय सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है। वर्तमान में लोग न तो समय पर सोते हैं और न ही बिस्तर छोड़ने का समय निर्धारित है। इसलिए युवावस्था में ही लोग विभिन्न व्याधियों की गिरफ्त में आ रहे हैं। अनुशासित दिनचर्या तन-मन का अनुशासन है। इससे प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है और शरीर के दोष संतुलित रहते हैं।

ऋतुचर्या का रखें ध्यान: आयुर्वेद में व्याधि के उपचार से ज्यादा संतुलित आहार और जीवनशैली अपनाने का वर्णन है। ऋतुओं के बदलने से वातावरण में भी बदलाव होता है, जिसका असर हमारी सेहत पर पड़ता है। ऐसे में हमें भी अपनी जीवनशैली बदलनी चाहिए। इसमें यह ध्यान देना है कि खानपान, परिधान और दिनचर्या ऋतु के अनुरूप बनी रहे।

आहार में हो रसों का समावेश: आयुर्वेद के अनुसार भोजन में कुल छह रसों मीठा, नमकीन, खट्टा, कड़वा, तीखा और कसैले का समावेश होना आवश्यक है। इससे शरीर में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है। हालांकि यह शरीर की प्रकृति के अनुसार ही सुनिश्चित किया जाता है।

नियमित व्यायाम: आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ रहने के लिए पाचन तंत्र का स्वस्थ रहना जरूरी है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रहती है। पाचन तंत्र को सक्रिय रखने के लिए व्यायाम व योग करें। ऋतु के अनुसार हमारा आहार बदलता है और इसके साथ ही पाचन तंत्र की सक्रियता प्रभावित होती है। इसलिए खानपान के साथ नियमित व्यायाम अवश्य करें।

कोविड काल में खूब मिली सराहना: कोरोना काल में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी माना कि भारतीय प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद अपने आप में अनूठी है। जड़ी-बूटियों और संयमित जीवनशैली पर आधारित यह चिकित्सा सिर्फ बीमारी से मुक्ति नहीं दिलाती, बल्कि शारीरिक व मानसिक स्थिति को सकारात्मक रूप से समृद्ध करती है। इसके प्रयोग से शरीर विकारमुक्त होता है। इस पुरातन चिकित्सा पद्धति को सरकार आयुष मंत्रालय के माध्यम से समृद्ध बनाने में प्रयासरत है।

 

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