हिंदी कथा साहित्य में 19 जनवरी 1990 की महता

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कश्मीरी पंडितों का निर्वासन क्यों ?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

“बुलबुल न ये वसीयत एहबाब भूल जाएं,
गंगा के बदले मेरे झेलम में फूल जाएं।”

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की ओर से सप्तम शोध परिसंवाद कार्यक्रम में गुरूवार को शोधार्थी सुनंदा गराईन के द्वारा शोध विषय कश्मीरी निर्वासित जीवन के अंतर्गत ’19 जनवरी 1990′ के घटना की प्रस्तुति हुई। जिसमें उन्होंने बताया कि भारत विभाजन के बाद की यह सबसे बड़ी त्रासदी है।

साहित्य में कश्मीर निर्वासन को लेकर अभिव्यक्ति कमजोर रही है, इस पर आलोचना मौन रही, सामाजिक चुप्पी और एकेडमिक चुप्पी भी बनी रही। इसलिए यह शोध आवश्यक है।19 जनवरी 1990 को अपने ही देश के एक भाग से पंडितों को पलायन करना पड़ा,जो एक त्रासदी से कम नहीं है।

बहरहाल इस निर्वासन को उन साहित्यकारों ने लिखा जिसने इस त्रासदी को झेला था।साहित्यकार चंद्रकांता की उपन्यास ‘कथा सतीसर’, क्षमा कौल की दर्द पुर,मूर्ति भंजन,उन दिनों कश्मीर, संजना कौल की पाषाण युग,मनीषा कुलश्रेष्ठ की शिगाफ और मीराकांत की ‘एक कोई था कहीं नहीं सा’ में इस त्रासदी का वर्णन मिलता है। ये सारे विस्थाप की पीड़ा का आख्यान है। टीका लाल टप्पलु, नीलकंठ गंजू, वकील प्रेमनाथ भट्ट भट्ट की बर्बर हत्या पूरे कश्मीर घाटी को मर्माहत कर दिया था।


19 जनवरी 1990 पूरे कश्मीर घाटी में सुबह से ही लाउडस्पीकर पर लगातार यह घोषणा कर हो रही थी कि काफिरों कश्मीर छोड़ो, तुम यहां से चले जाओ अपनी बहन बेटियों को यहाँ छोड़ दो। नारे लग रहे थे–

‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’,
‘यहां क्या चलेगा निजाम-ए-मुस्तफा’,
‘रलिव,चलिव या गलिव’ यानी हम में मिल जाओ,इस्लाम स्वीकार करो या भाग जाओ।
‘इंडियन डॉग गो बैक'(भारतीय कुत्ते वापस जाओ),
हम क्या चाहते आज़ादी!आज़ादी!आज़ादी।

कश्मीर के पूर्व गवर्नर जगमोहन अपनी पुस्तक ‘द फ्रोजन टर्बूलेंस ऑफ कश्मीर’ में इस पूरी घटना को बड़े विस्तार से लिखा है। जगमोहन 18 जनवरी 1990 को गवर्नर बनाए जाते है और 19 जनवरी को घटना होती है। इस घटना पर रोमानिया की इस्लामी क्रांति का भी प्रभाव था। रुबिया सईद का अपहरण और उनके पिता का मुफ्ती मोहम्मद सईद का भारत का गृहमंत्री बनना भी आतंकवादियों को ताकत प्रदान किया दिया।

कश्मीर कश्यप ऋषि के नाम पर पड़ा है। शैव दर्शन के अंतर्गत प्रत्यभिज्ञावाद यही की उत्पत्ति है। अगर 2000 वर्षों के भारत के साहित्यिक इतिहास को देखा जाए तो एक कश्मीर और दूसरा दक्षिण भारत में ही साहित्य व दर्शन आगे बढ़ा क्योंकि पूरा मध्य भारत वाह्य आक्रमण से बाधित रहा।

19 जनवरी 1990 के घटना की अगली कड़ी 26 जनवरी 1990 को होने वाली थी। क्योंकि 19 जनवरी को उपद्रवी सारे हिंदुओं को घाटी से निकाल देना चाहते थे और 26 जनवरी 1990 को कश्मीर को स्वतंत्र होने की घोषणा करने वाले थे।

इस निर्वासन के राजनीतिक कारणों में यह कहा जा सकता है कि सोवियत रूस ने 1989 में अफगानिस्तान पर से अपने कब्जे को समाप्त किया,ऐसे में सोवियत रूस से अमेरीकी मदद से लड़ने वाले आतंकवादी कश्मीर में पाकिस्तान की मदद से आ गये। कयोकि बांग्लादेश का अलग होना पाक को सदैव खटकता है, वह कश्मीर को भारत से तोड़ना चाहता है।

इस निर्वासन के धार्मिक कारण भी रहे क्योंकि धर्म के कारण इस्लाम में द्वन्द है। तुर्की को छोड़कर सभी जगह युद्ध हुए हैं,कट्टरता इस्लाम में निहित है। आज आप देख सकते हैं कि कोई इस्लामिक देश शांत नहीं है। यही कारण है कि इस्राइल देश को इनके विरूद्ध बड़े निष्ठुर कदम उठाने पड़ते हैं।

शोधार्थी सुनंदा द्वारा अपनी बात रखने के बाद कई शोधार्थियों ने इस विषय को लेकर प्रश्न किये,जिसका उन्होंने उत्तर दिया। तत्पश्चात हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव,शोध परिसंवाद के समन्वयक व सहायक आचार्य डॉ गोविंद प्रसाद वर्मा, शोध परिसंवाद की उप समन्वयक व सहायक आचार्य डाॅ आशा मीणा, सहायक आचार्य डॉ गरिमा तिवारी ने अपने सारगर्भित टिप्पणी से शोधार्थियों को लाभ पहुंचाया।

पूरे कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी विकास कुमार ने किया, जबकि प्रतिवेदन शोधार्थी स्मिता पटेल ने प्रस्तुत किया। वहीं सभी का धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थियों मनीष कुमार ठाकुर ने किया। इस मौके पर शोधार्थी मनीष कुमार भारती, मनीष कुमार श्रीप्रकाश, रश्मि सिंह, सोनू कुमार ठाकुर,सच्चिदानंद, राजेश पाण्डेय अवधेश कुमार, बिनाचिक बड़ाईक, अपराजिता, प्रतीक कुमार ओझा, मुकेश कुमार सहित कई छात्र उपस्थित रहे।

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