देश के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश अब प्रभावित नहीं होंगे,क्यों?
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priyranjan singh
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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत व पाकिस्तान के बीच शनिवार को सीजफायर की घोषणा से देश के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में होने वाले निवेश अब प्रभावित नहीं होंगे। इसके साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की चीन की मंशा नाकाम हो गई। पिछले चार दिनों से दोनों देशों के बीच जारी लड़ाई को देखते हुए एक बार ऐसा लगने लगा था कि चीन छोड़कर भारत में निवेश को लेकर दिलचस्पी दिखाने वाली कंपनियां फिर से चीन का या किसी अन्य देश का रुख कर लेंगी।
चीन इसलिए दे रहा पाकिस्तान का साथ?
चीन परोक्ष रूप से पाकिस्तान का इसलिए भी साथ दे रहा था ताकि दुनिया की नजरों में मैन्यूफैक्चरिंग हब के विकल्प के रूप में उभरने वाले भारत के कारोबारी माहौल को धक्का लगे और निवेश के लिए दिलचस्पी दिखाने वाली कंपनियां भारत से विमुख हो जाए।
अमेरिका से लेकर यूरोप व अन्य विकसित देश सप्लाई चेन के लिए भारत को चीन के विकल्प के रूप में देख रहे है। विदेश व्यापार विशेषज्ञों के मुताबिक पाकिस्तान के साथ युद्ध के लंबा चलने पर भारत की अर्थव्यवस्था के साथ वैश्विक रूप से भारत की छवि प्रभावित होती। भारत सबसे तेज गति से विकास करने वाला देश नहीं रह जाता और अगले दो साल में पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना भी पूरा नहीं होता।
सबसे तेज विकास कर रहा भारत
विदेशी कंपनियां या विकसित देश अभी भारत की ओर इसलिए भी आकर्षित हो रही है क्योंकि भारत पिछले कई सालों से सबसे तेज गति से विकास कर रहा है और आगे भी यह गति जारी रहने की संभावना है। इससे भारत खरीदारी क्षमता रखने वाले एक बड़े बाजार के रूप में उभर रहा है।
निर्यातकों ने बताया कि ट्रंप की शुल्क नीति खासकर चीन पर अमेरिका की तरफ से 145 प्रतिशत तक का शुल्क लगाने के बाद भारतीय निर्यात और मैन्यूफैक्चरिंग में बढ़ोतरी को लेकर एक माहौल बनने लगा है जो पाकिस्तान के साथ लड़ाई से प्रभावित होता नजर आ रहा था। खिलौना, लेदर, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कई आइटम के अमेरिकी निर्माता चीन को छोड़ अब भारत में अपनी यूनिट लगाने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं और इस काम के लिए अमेरिकी कंपनियां भारतीय कंपनियों के साथ सहभागिता को लेकर बातचीत भी कर रही है।
कई कंपनियां भारत में मैन्यूफैक्चरिंग का बना चुकी हैं मन
आईफोन बने वाली कंपनी एप्पल आने वाले सालों में अपने समस्त फोन चीन की जगह भारत में बनाने का मन बना चुकी है। चीन पर भारी शुल्क लगने के बाद वहां पर निर्माण करना और वहां से अमेरिका में निर्यात करना विदेशी कंपनियों के लिए फायदे का सौदा नहीं रहा। वाणिज्य मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक चीन को अव्यवहारिक होता देख इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ कई सेक्टर में विदेशी कंपनियां हाथ आजमाने के लिए सरकार के संपर्क में हैं।
ब्रिटेन के साथ हाल ही में हुए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के बाद भारत में निवेश करने वाली विदेशी कंपनियां अब भारत की जमीन से ब्रिटेन में भी बिना शुल्क के निर्यात कर सकेंगी। अमेरिका के साथ भी व्यापारिक समझौते को लेकर दोनों देशों के बीच गंभीर बातचीत चल रही है और जल्द ही इस समझौते के भी होने के आसार हैं। अमेरिका के साथ व्यापारिक डील होने के बाद भारत से अमेरिका में कई वस्तुओं का निर्यात शुल्क मुक्त हो जाएगा। ऑस्ट्रेलिया और यूएई जैसे देशों के साथ भारत का एफटीए पहले से हैं।