क्या होली प्रतिवाद का उत्सव है?

क्या होली प्रतिवाद का उत्सव है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

होली के संबंध में विविध पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं. पुराणों में होली संबंधी दो कथाओं से ज्ञात होता है कि यह निरंकुशता के प्रतिवाद का उत्सव है. श्रीमद्भागवत् पुराण में प्रह्लाद चरित्र से जुड़ी एक कथा है. प्रह्लाद विष्णु उपासक थे. इससे पिता से वैमानस्यता हुई और और पिता हिरण्यकश्यपु ने उन्हें मारने के कई षड्यन्त्र किये.

किन्तु, असफल रहे. अंततः हिरण्यकश्यपु और हिरण्याक्ष की बहन होलिका ने विश्वास दिलाया और कहा, मेरे पास ऐसी सिद्धि है जिससे आग में नहीं जल सकूंगी और विष्णुभक्त प्रह्लाद भस्मीभूत हो जाएगा. इस प्रयोग के लिए लकड़ी, घास-फूस आदि का एक बृहद् अलाव बनाया गया और होलिका अपने भतीजे प्रह्लाद के साथ उस अलाव पर बैठी. प्रह्लाद भगवन्नाम के प्रताप से सुरक्षित रहे, गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रह्लाद के भगवन्नाम-निष्ठा पर कहा है- नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादु. भगत सिरोमनि भे प्रहलादू।। अन्नतर उसी होलिका दहन के भस्म से हरि भक्तों ने उत्सव मनाया और उसके स्मृति में होली मनायी जाती है.

दूसरी कथा भविष्योत्तर पुराण में वर्णित है- धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से फाल्गुन-पूर्णिमा के उत्सव का रहस्य पूछा कि प्रत्येक गांव-घर में बच्चे क्रीड़ामय क्यूं हो जाते है? होलाका क्यूं जलाते हैं? किस देव का पूजन होता है और किसने इस उत्सव का प्रचार किया? श्रीकृष्ण राजा रघु के संदर्भ में एक किंवदंती कहते हैं कि राजा रघु के पास लोग यह शिकायत लेकर पहुंचे ढोंढा नामक एक राक्षसी बालकों को बहुत सताया करती है, इसे लेकर भय का माहौल है.

राजा रघु ने राजपुरोहित से राक्षसी की नाश का कारण पूछा. पुरोहित ने शिव के वरदान के संबंध में बतलाया कि उसे शिव द्वारा वरदान प्राप्त है, देव, मानव आदि उसे नहीं मार सकते किन्तु क्रीड़ायुक्त बच्चों से भय खा सकती है. फाल्गुन पूर्णिमा को वसंत समाप्ति और ग्रीष्म का आगमन होता है, तब लोग हंसे और उत्सव मनायें, बच्चे लकड़ी के टुकड़े लेकर बाहर प्रसन्नतापूर्वक निकल पड़े, लकड़ियां और घास एकत्र करें, रक्षोघ्न मंत्रों को उच्चरित करते हुए उसमें आग लगायें, तालियां बजायें, अग्नि की तीन प्रदक्षिणा करें, हंसें और लोक-भाषा में अश्लील गायन करें; इसी शोर और अट्टहास से और होम से राक्षसी की मृत्यु होगी. जब राजा ने यह सब करवाया तो वह राक्षसी मर गयी.

उक्त दोनों कथाओं मे एक उभयता यह है कि पीड़ित बालक है और उत्पीड़क राक्षसी है. दूसरी बात है निरंकुशता के विरुद्ध लोक का प्रतिकार. होली जनसमूह प्रतिवाद विजय का उत्सव है. इसलिए यह बंधनमुक्त हो सर्वसमावेशी है.

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!