क्या आज भी बालिकाओं के जन्म को अभिशाप माना जाता है?

क्या आज भी बालिकाओं के जन्म को अभिशाप माना जाता है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हमारे देश में यह एक बड़ी विडंबना है कि हम बालिका का पूजन तो करते हैं। लेकिन जब हमारे खुद के घर बालिका जन्म लेती है तो हम दुखी हो जाते हैं। देश में सभी जगह ऐसा देखा जा सकता है। देश के कई प्रदेशों में तो बालिकाओं के जन्म को अभिशाप तक माना जाता है। लेकिन बालिकाओं को अभिशाप मानने वाले लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि वह उस देश के नागरिक हैं जहां रानी लक्ष्मीबाई जैसी विरांगनाओं ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे।

हमारे यहां आज भी बेटी पैदा होते ही उसकी परवरिश से ज्यादा उसकी शादी की चिन्ता होने लगती है। आज महंगी होती शादियों के कारण बेटी का बाप हर समय इस बात को लेकर चिंतित नजर आता है कि उसकी बेटी की शादी की व्यवस्था कैसे होगी। समाज में व्याप्त इसी सोच के चलते कन्या भ्रूण हत्या पर रोक नहीं लग पायी है। कोख में कन्याओ को मार देने के कारण समाज में आज लड़कियों की काफी कमी होने से लिंगानुपात गड़बड़ा गया है।

पिछले कुछ वर्षों में देश में जन्म के समय लिंगानुपात में बढ़ोतरी होना शुभ संकेत हैं। संसद में एक सवाल का जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्री ने बताया था कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना ने बालिकाओं के अधिकारों को स्वीकार करने के लिए जनता की मानसिकता को बदलने की दिशा में सामूहिक चेतना जगाई है। इस योजना ने भारत में सीएसआर (बाल लिंग अनुपात) में गिरावट के मुद्दे पर चिंता जताई है। यह राष्ट्रीय स्तर पर जन्म के समय लिंग अनुपात (एसआरबी) में 15 अंकों के सुधार के रूप में परिलक्षित होता है। जो कि 2014 में 918 था। जबकि 2022-23 में 15 अंक बढ़कर 933 हो गया।

अगर समाज में बेटियों को उचित शिक्षा और सम्मान मिले तो बेटियां किसी भी क्षेत्र में पीछे नही रहेगी। इसलिए यदि यह कहा जाय की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना नही हम सबकी एक जिम्मेदारी है तो इसमें कुछ गलत नही है। यदि हम सभी एक अच्छे समाज का निर्माण करना चाहते है तो हम सबका यही फर्ज बनता है हम इन बेटियों को भी भयमुक्त वातावरण में पढ़ाये। उन्हें इतना सशक्त बनाये की खुद गर्व से कह सके की देखो वह हमारी बेटी है जो इतना बड़ा काम कर रही है।

भारत में हर साल तीन से सात लाख कन्या भ्रूण नष्ट कर दिये जाते हैं। इसलिए यहां महिलाओं से पुरुषो की संख्या 5 करोड़ ज्यादा है। समाज में निरंतर परिवर्तन और कार्य बल में महिलाओं की बढ़ती भूमिका के बावजूद रूढिवादी विचारधारा के लोग मानते हैं कि बेटा बुढ़ापे का सहारा होगा और बेटी हुई तो वह अपने घर चली जायेगी। बेटा अगर मुखाग्नि नहीं देगा तो कर्मकांड पूरा नहीं होगा।

आज लड़किया लड़को से किसी भी क्षेत्र में कमतर नहीं हैं। कठिन से कठिन कार्य लड़किया सफलतापूर्वक कर रही हैं। देश में हर क्षेत्र में महिला शक्ति को पूरी हिम्मत से काम करते देखा जा सकता है। लड़कियों ने अपने काम और समर्पण के दम पर कई क्षेत्रों और क्षेत्रों में खुद को साबित किया है। वे अधिक प्रतिभाशाली, आज्ञाकारी, मेहनती और परिवार और अपने जीवन के लिए जिम्मेदार हैं। लड़कियाँ अपने परिवार और माता-पिता के प्रति अधिक देखभाल करने वाली और प्यार करने वाली होती हैं और वे हर काम में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देती हैं। देश की अर्थव्यवस्था में भी महिलाओं का अहम योगदान है। वे श्रम शक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और व्यवसायों की वृद्धि और विकास में योगदान देती हैं।

एक तरफ जहां बेटी को जन्मते ही मरने के लिये लावारिश छोड़ दिया जाता है। वहीं झुंझुनू जिले की मोहना सिंह जैसी बालिकायें भी है जो आज देश में फाईटर प्लेन उड़ा कर पूरे देश में जिले का मान बढ़ा रही हैं। समाज में सभी को मिलकर लडका-लडकी में भेद नहीं करने व समाज के लोगों को लिंग समानता के बारे में जागरूक करने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए।

बालिकाओं का कोख में तो कत्ल कर उन्हे धरती पर आने से पहले ही मारा जा रहा है। उससे भी घिनोना काम जिन्दा बालिकाओं के साथ किया जा रहा है। देश में बालिकाओं के साथ हर दिन बलात्कार, प्रताडना की घटनायें अखबारो की सुर्खिया बनती हैं। बालिकायें कही भी अपने को सुरक्षित नहीं समझती हैं। चाहे घर हो या स्कूल अथवा कार्य स्थल। हर जगह वहशी भेडिये उन पर नजरे गड़ायें रहते हैं। उन्हे जब भी मौका मिलता है नोंच डालते हैं। ऐसे माहौल में देश की बालिकायें कैसे आगे बढ़ पायेगीं।

समाज के पढ़े लिखे लोगों को आगे आकर कन्या भ्रूण हत्या जैसे घिनोने कार्य को रोकने का माहौल बनाना होगा। ऐसा करने वाले लोगों को समझा कर उनकी सोच में बदलाव लाना होगा। लोगों को इस बात का संकल्प लेना होगा कि ना तो गर्भ में कन्या की हत्या करेगें ना ही किसी को करने देगें। तभी देश में कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लग पाना संभव हो पायेगा।

सरकार व समाज को मिलकर ऐसे वातावरण का निर्माण करने का प्रयास करना चाहिये जिसमें बालिकायें खुद को महफूज समझ सकें। बालिकाओं पर अत्याचार करने वालों के मन में भय व्याप्त करने के लिये सरकार को कानून में और अधिक सुधार करना चाहिये। बालिकाओं को कई प्रकार के भेदभाव का शिकार होना पड़ता है।

समाज और राष्ट्र के विकास के लिए बालिकाओं के महत्व को स्वीकार करना और बढ़ावा देना आवश्यक है। शिक्षा प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार है। एक शिक्षित लड़की ही अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के आर्थिक विकास में योगदान दे सकती है। कानूनी सुरक्षा बालिकाओं के अधिकारों की सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण पहलू है। जागरूकता कार्यक्रमों और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से लड़कियों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को बदलने के लिए भी उतना ही आवश्यक है।

हमारे समाज का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम आज अपनी बच्चियों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं और उन्हें कितना महत्व देते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी सुरक्षा और सामाजिक सशक्तिकरण के माध्यम से बालिकाओं को सशक्त बनाना न केवल एक नैतिक दायित्व है बल्कि सामाजिक विकास के लिए एक जरूरी आवश्यकता भी है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लड़कियों को आगे बढ़ने, सीखने के समान अवसर मिले। तभी हम एक संतुलित, न्यायसंगत और समृद्ध समाज बना सकेगें।

Leave a Reply

error: Content is protected !!