RBI@90: क्या दुनिया में चार देशों की करेंसी का ही बोलबाला है?

RBI@90: क्या दुनिया में चार देशों की करेंसी का ही बोलबाला है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

भारत को रुपये को वैश्विक स्तर पर अधिक स्वीकार्य बनाने की दिशा में काम करना होगा

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देश में जितने भी बैंक हैं, आरबीआई उनका बैंक है। इसलिए इसे बैकों का बैंक कहते हैं। केंद्रीय बैंक की है जो करंसी को जारी करता है। इससे जुड़े नियमों को बताता है। मॉनिटरी पॉलिसी जारी करता है और निगिरानी रखता है। वे वाणिज्यिक बैंक को ईमानदार रखते हैं। ये सारे काम चुनौतियों से भरे हैं। लेकिन पीएम मोदी ने आरबीआई को एक नया काम सौंपा है।

जो और भी कठिन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 अप्रैल को मुंबई में केंद्रीय बैंक की 90वीं वर्षगांठ समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि ये प्रयास होना चाहिए कि हमारा रुपया पूरी दुनिया में ज्यादा एक्सेसबल भी हो, एक्सेप्टेबल भी हो। एक और ट्रेंड जो बीते कुछ वर्षों में पूरी दुनिया में देखने को मिला है, वो है- बहुत ज्यादा आर्थिक विस्तार और बढ़ता हुआ कर्ज। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि भारत को रुपये को वैश्विक स्तर पर अधिक स्वीकार्य बनाने की दिशा में काम करना होगा।

4 देशों की करेंसी का ही बोलबाला

ग्लोबल करेंसी एक तरह की रिजर्व करेंसी होती है जिसका इस्तेमाल वैश्विक व्यापार में होता है। यह अधिकांश केंद्रीय बैंकों के पास है और यह आसानी से परिवर्तनीय है। आप इस मुद्रा को आसानी से खरीद और बेच सकते हैं। वर्तमान में दुनिया में 4 देशों की करेंसी का ही बोलबाला है। सबसे ऊपर डॉलर, फिर यूरो, पाउंड और जापानी मुद्रा येन का नंबर आता है। चीन भी अपनी मुद्रा को इंटरनेशनल बनाने की कोशिश कर रहा है और उसे भी आंशिक सफलता मिली है। भारत को मुद्रा के ग्लोबलाइजेशन से होने वाले फायदों के बारे में बखूबी पता है और इसका पूरी इकोनॉमी पर क्या असर होगा। इसका भी अंदाजा है। यही कारण है कि सरकार और रिजर्व बैंक हर हाल में ये काम पूरा करना चाहते हैं।

इंटरनेशनल करेंसी क्या होती है

बैंक फॉर इंटरनैशनल सेटलमेंट्स (BIAS) के मुताबिक, जिस मुद्रा का इस्तेमाल जारी करने वाले देश की सीमाओं के बाहर भी किया जाता है, वह इंटरनैशनल करंसी होती है। अमेरिका जाहिर तौर पर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। उसकी करंसी डॉलर दुनिया की प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं में से एक है। लेकिन यह इकलौती इंटरनैशनल करंसी नहीं। चीन का युआन भी काफी महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मदा है जिसे कई देशों ने अपनाया है।

डॉलर से परे देखने को मजबूर कई देश

कई देश फॉरेन रिज़र्व में संघर्ष कर रहे हैं। वे डॉलर का उपयोग लोन की रिपेमेंट और व्यापार करने के लिए करते हैं। परिणामस्वरूप डॉलर ख़त्म हो रहे हैं। जैसा की श्रीलंका के साथ 2022 में हुआ। इसलिए ऐसे कई देश हैं जो अन्य विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। जैसे लोकल करेंसी में व्यापार करना। दूसरा कारण थोड़ा राजनीतिक है। कई बड़े एक्सपोर्टर पश्चिमी प्रतिबंधों के प्रभाव में हैं।

रूस, चीन और ईरान इसके बड़े उदाहरण हैं। डॉलर का उपयोग करके उनसे व्यापार संभव नहीं है। ऐसे में देश क्या करें, वो डॉलर से परे देखने को मजबूर हैं। वे स्थानीय मुद्रा का उपयोग करने का प्रयास करते हैं। भारतीय क्षेत्र इन दोनों का मिश्रण है। हम श्रीलंका और बांग्लादेश से बहुत ज्यादा ट्रेंड करते हैं। जिनके पास वैश्विक मुद्रा भंडार  बेहद ही कम हैं। इसके अलावा हम पश्चिमी देशों का प्रतिबंध झेल रहे रूस और ईरान जैसे देशों के साथ भी व्यापार करते हैं। इसलिए हमें डॉलर के विकल्प की जरूरत तो है हीं। लेकिन इन सब से इतर एक और महत्वपूर्ण कारण रणनीतिक गोल को साझने की भी है।

भारत रुपये को वैश्विक कैसे बना सकता है?

भारत दुनिया की पाचंवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अपने कदम बढ़ा रहा है। ग्लोबल पॉवर का सीधा सा मतलब है कि आप वैश्विक मुद्रा पर पूरी तरह निर्भर नहीं रह सकते हैं। उसके लिए एक भरोसेमंद मुद्रा की दरकार है। रुपये के वैश्विकरण से उतार-चढ़ाव में भी मदद मिलेगी। यह आपको आर्थिक युद्ध के प्रभाव से भी महफूज रखेगा।

लेकिन भारत रुपये को वैश्विक कैसे बना सकता है? ये रातों रात नहीं हो सकता है। लेकिन इसके लिए हमें अपने पड़ोसी चीन की ओर देखना होगा। साल 2008 के मंदी के बाद उसने अपनी करेंसी को ग्लोबलाइज करने की ठानी। 16 साल बाद युयान अंतरराष्ट्रीय भागीदारी 5.8 प्रतिशत के आसपास है। ये अभी भी डॉलर, यूरो और पाउंड से पीछे है। इसलिए रुपए के साथ चमत्कार की उम्मीद बेमानी होगी।

भारत क्या कर सकता है

विभिन्न मुद्रा का वैश्वीकरण का भिन्न अतीत रहा है। पाउंड ने कॉलोनाइजेशन के दौर में उड़ान भरी। द्वितीश विश्व युद्ध का लाभ डॉलर को मिला। यूरो ने इंस्ट्यटूशन का इस्तेमाल किया। लेकिन किसी भी देश के वैश्विक मुद्रा बनाने के लिए आर्थिक जानकार कई सुझाव बताते हैं-

वित्तीय स्थिरता

आपका समग्र ऋण नियंत्रण में होना चाहिए

मुद्रास्फीति मॉडरेट रहना चाहिए

प्रति व्यक्ति आय ज्यादा होनी चाहिए

भारत के अलावा और कहां कहां चलता है रुपया

रुपया सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कई और देशों की भी मुद्रा है। हालांकि इनमें हर देश में रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले अलग-अलग है। श्रीलंका की मुद्रा का नाम भी रुपया ही है। 1 जनवरी 1872 को रुपया को वहां की आधिकारिक मुद्रा घोषित किया गया। भारत के पड़ोसी देश नेपाल में 1932 में रुपया को आधिकारिक मुद्रा बनाया गया। मॉरिशिस में पहली बार 1877 में नोट छापे गए। वहां भारतीय मूल के लोगों की संख्या ज्यादा है। इसलिए नोट पर भी उसका मूल्क भोजपुरी और तमिल भाषा में दर्ज होता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!