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अमेरिका से तरुण कैलास के विवाह की रजत जयंती पर संस्मरण - श्रीनारद मीडिया

अमेरिका से तरुण कैलास के विवाह की रजत जयंती पर संस्मरण

अमेरिका से तरुण कैलास के विवाह की रजत जयंती पर संस्मरण

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मै और स्वस्ति एक ही शहर से हैं – जी, आरा से। गीत-संगीत, भाषा आदि में दोनों की घनी अभिरुचि है, हमेशा साथ-साथ मंच पर होते हैं। लोग मान लेते हैं कि लव मैरेज ही हुआ होगा। पर वास्तविकता इसके ठीक उलट है। एकदम ट्रेडिशनल शादी हुई थी हमारी। वो वाली जिसमें कि एक “अगुआ” या मध्यस्थ व्यक्ति होता। अगुआ वर-वधू पक्ष के संवाद/issues आदि को manage करने वाला सूत्रधार होता है।

अभी तो पचीस भी नहीं लगा था मेरा। IIT में M.Tech ख़त्म होने को था। हाँ, नौकरी के लिए कैम्पस सेलेक्शन हो चुका था।

पिताजी का एक दिन अचानक फोन आया था – “तुम्हारी शादी के लिए लड़की देख ली है। M.A Gold Medalist है और साथ-साथ संगीत में डबल प्रभाकर भी। प्रतियोगिता दर्पण में लेख भी छपता है उसका। आरा के प्रतिष्ठित प्रोफेसर परिवार से है। तुम ऐसी ही लड़की चाहते हो न?”

ये बात तो थी कि पिताजी से मेरा खुला संवाद होता था। उन्हें मेरी पसंद-नापसंद आदि का भली भाँति पता था। मेरा उनकी बात को काटने का तो वैसे भी कोई प्रश्न ही नहीं था। मैंने बस इतना भर कहा था कि नौकरी join करने के बाद शादी करते हैं पर पिताजी goal driven व्यक्ति थे। बिहार सरकार के सिंचाई विभाग में कड़क मिज़ाज SDO; रिटायर होने के पहले अपनी जिम्मेवारियों से निश्चिन्त होने का दृढ़ लक्ष्य था उनका, सो वही किया। उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि “शादी के लिए नवंबर में छुट्टी लेकर आरा आ जाओ”।

नवंबर में मैं IIT के गाइड प्रो. मनोज अरोड़ा सर से छुट्टी लेकर आरा आया था। मुझे छोड़, घर के बाक़ी सब सदस्य स्वस्ति को देखने महाराजा हाता गये थे। आकर सभी ने इस रिश्ते पर खुले दिल से प्रसन्नता और संतोष के साथ सहमति ज़ाहिर की। भईया संगीत-प्रेमी हैं। उन्होंने मुझे बताया कि लड़की बहुत ही सुंदर संस्कारी है। हारमोनियम बजाकर बहुत ही बढ़िया गीत सुनाई, एकदम लता मंगेषकर जैसा। पहली बार एक फ़ोटो भी मुझे दी गई – और तभी हमने इनको पहली बार “देखा”!

इसके कुछ दिनों के बाद ही “छेका” हो गया। रिंग “शिरोमणि” (जी, “ceremony” को देखता हूँ कि FB पर लोग “शिरोमणि” लिखते हैं) का कोई प्रचलन नहीं था तब।

विवाह में IIT के भी कुछ मित्र सम्मिलित हुए थे। उनमें एक दक्षिण भारतीय (तमिल) सहपाठी भी था। उसके मम्मी-पापा उसको बिहार के नाम से ही नहीं चाहते थे कि वह विवाह में शरीक हो। पर आरा आकर उसको घोर आश्चर्य हुआ कि यहाँ का पूरा माहौल और सबका बर्ताव कितना आदरपूर्ण और मधुर था। केवल घर पर ही नहीं, बल्कि शहर में भी। मेरे लिए रमना जाकर खुद surprise गिफ़्ट ख़रीद कर लाया। आकर बोला – “अरे! मैं तो मार्केट भी गया पर यहाँ तो shooting/fighting हुआ ही नहीं; TV में जैसा दिखाता, वैसा कुछ भी नहीं है रे, everything is normal!”

उस समय “हिंदुस्तान बैंड” आरा शहर का टॉप बैंड होता था। उसी का सट्टा हुआ था। उधर महाराजा हाता में द्वार पर, बारातियों के लिए आरा शहर के नामी कलाकारों द्वारा रफ़ी, मुकेश, किशोर के “मेरे दोस्त तुझे, तेरा मीत मुबारक” और “बहारों फूल। बरसाओ” जैसे गीतों से सजे भव्य संगीत कार्यक्रम आयोजित हुआ था। आजकल की शादियों में जो डीजे पर भोजपुरी में बजता है, उसको सुनकर कान में मानो लावा फूट जाये।

सगे-सम्बन्धियों के अलावा, कई साधु-संत भी विवाह में आमंत्रित थे जिनकी उपस्थिति माहौल को आध्यात्मिक गरिमा प्रदान कर रही थी।

आजकल तो विवाह पूर्व महीनों या सालों तक प्रेम-प्रसंग, courtship, डेटिंग, Live-in और ना जाने क्या-क्या का चलन है। इन चीजों को यह कहकर justify किया जाता है कि “अरे! बिना भली-भाँति एक-दूसरे को जाने-पहचाने, शादी कैसे कर लें?” और बावजूद इस “भली-भाँति के जान-पहचान के”, शादियों के टूटने के दर में घोर इज़ाफ़ा हुआ है। हमारी शादी पहले हुई, जान-पहचान बाद में। Actually जान-पहचान की कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। या यूँ भी कह सकते हैं कि अभी भी जानने-पहचानने की प्रक्रिया जारी है! ख़ैर, विदाई के बाद, मेरे साथ-साथ घर के सभी सदस्यों को, पहले दिन से ही ऐसा लगा ही नहीं कि स्वस्ति किसी दूसरे घर से आई है और हम एक-दूसरे से अपरिचित हैं।

..और दुसरे ही दिन पिताजी ने एक बड़ा surprise दिया था…

विवाह की दूसरी सुबह मैं पिताजी के चरण छूने उनके कमरे में गया था। तब पिताजी ने स्वस्ति को भी बुलाया था और कहा कि “मैं तुम दोनों को कुछ देना चाहता हूँ”। ऐसा कहकर उन्होंने अपनी आलमारी से एक लिफ़ाफ़ा निकाला और मुझे थमा दिया। मैंने लिफ़ाफ़ा खोलकर देखा तो वे हवाई यात्रा के टिकट थे। हमारी हनीमून के टिकट। पिताजी ने कहा था कि “यह मेरी तरफ़ से है। आपलोग कुछ दिन साथ-साथ घूम आइये”।

हम दोनों किंकर्तव्यविमूढ़! समय से बहुत आगे थे पिताजी। आज जिस तरह से “surprise” देने का चलन है, वह पिताजी ने २५ साल पहले ही कर दिया था, बिना कोई हऊव्वा बनाये। जाने कब प्लानिंग की होगी? और कब ये टिकट बनवाये होंगे? सनद रहे कि वह internet का जमाना नहीं था कि घर बैठे देश-विदेश के हवाई टिकट बन जाये।

एयरपोर्ट पर आने पर पता चला था कि किसी वजह से फ्लाइट कैंसल हो गई है। यात्री चाहें तो अपने टिकट की राशि ले लें या कल की फ्लाइट ले लें। रात्रि विश्राम पाँच सितारा होटल में एयरलाइन्स के जिम्मे। हमें और क्या चाहिए था – शटल बस से झट से चले गये होटल। डिनर और रात्रि विश्राम किया। फिर सुबह की फ्लाइट पकड़ी।

हनीमून से लौटकर स्वस्ति DAV आरा में संगीत शिक्षिका की नौकरी में पुनः कार्यरत हो गई। विवाह की मधुर स्मृतियों को समेटे मैं IIT वापस आ गया ताकि मैं M.Tech का बचा थीसिस कम्प्लीट कर सकूँ।

विवाह की मिठाई का डिब्बा लिए, रिमोट सेन्सिंग डिपार्टमेंट में जाकर जब मैं अपने प्रोफेसर से मिला, तो उन्होंने एक बुरी खबर सुना दी…

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