सत्येंद्र दुबे: सरकार के स्याह पृष्ठों में गुम हुई हत्या की गुत्थी।

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दुख का राष्ट्रीय राजमार्ग: स्वर्णिम चतुर्भुज योजना

सत्येंद्र दूबे एक अनुत्तरित प्रश्न का नाम है।

 ठेकों का अपराधीकरण होना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन ये सच्चाई है–  डीपी ओझा,तत्कालीन डीजीपी

सड़कों को आकर देने वाला सड़क पर ही मारा गया,क्यों?

सत्येंद्र दूबे की हत्या 27 नवंबर 2003 को गया जिले में हुई।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

इंजीनियर सत्येंद्र दुबे को याद करना उस महान आत्मा को नमन करना है जिसने धारा के विरुद्ध अपनी आवाज को बुलंद किया। आपसे मेरा परिचय दिल्ली प्रवास के दौरान हुआ जब मैं सिविल सेवा की तैयारी हेतु 1999 जिया सराय,नई दिल्ली आया। आप मेरे आवास के ठीक ऊपर वाले कमरे में अपने छोटे भाई धनंजय के साथ रहा करते थे। शाम को कार्यलय से आने के बाद लूंगी और गंजी पहन, बाहर टेबल निकालकर उसके निकट बल्ब जलाकर शाम 6:00 बजे से 1:00 बजे रात तक आप पढ़ाई किया करते थे।

कभी-कभी आप हम लोग के रसोई घर के भोजन का भी आनंद उठाया करते थे। आप से परिचय हुआ कि मै भी सीवान जिले का रहने वाला हूॅ,तब से और घनिष्ठता बढी। आपने पढ़ने के तौर-तरीके को बताया और ‘संकल्प’ कोचिंग संस्थान से जुड़ जाने को कहा।मुझे आज भी याद है कि 1 मई 2000 को UPSC का साक्षात्कार था और मैं आपके साथ यूपीएससी भवन गया था। उस समय आपको 173 वां रैंक मिला और सीबीआई ऑब्जर्वर के रूप में पद दिया जा रहा था लेकिन आप भूतल परिवहन मंत्रालय में इंजीनियर (IES) अधिकारी के पद पर दिल्ली में ही कार्य थे इसलिए आपने उस पद को ग्रहण करने से इंकार कर दिया।एक बार फिर से तैयारी में लगे रहे। आपके छोटे भाई धनंजय सरदार वल्लभभाई पटेल स्कूल में 12वीं तक की पढ़ाई कर रहे थे।

उन दिनों में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मैं आवेदन करता था जिसमें राजपत्रित अधिकारी के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती थी। आप मेरे छायाचित्र पर हस्ताक्षर किया करते थे,जिसकी एक बानगी आज भी मेरे पास सुरक्षित है।

कुछ दिनों के बाद मैं जिया सराय में ही अपने दूसरे आवास में चला गया। आपके बारे में भी पता लगा कि आप भी कहीं और दो कमरे का फ्लैट ले लिए हैं जहां अपनी दो बहनें और भाई के साथ रह रहे हैं। कभी कभी छोटे भाई धनंजय को बहनों के साथ जिया सराय की गलियों में टहलते मैं देखता था, मुझे लगता था कि सत्येंद्र दुबे जी अभी यहीं है। कुछ समय बाद मैं जिया सराय छोड़ बेर सराय आ गया और एक दिन वह मनहूस खबर मिली, वह दिन 27 नवंबर 2003 था। पता लगा की गया जिले में सुबह के समय आपको किसी ने गोली मार दी,मौके पर ही मृत्यु हो गई है।


ज्ञात हो आप सीवान जिले के नौतन प्रखंड अंतर्गत शाहपुर गांव के रहने वाले थे। सत्येंद्र दुबे ‘सेन्ट्रल नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ में डिप्टी जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने 1994 में आईआईटी कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक उत्तीर्ण किया था। नई दिल्ली स्थित भूतल परिवहन मंत्रालय में आप कार्य किया करते थे। यह विडंबना ही है कि गया जिले के मुख्यालय में जहाँ आपको गोली मारी गई,वहाँ से कुछ ही मीटर की दूरी पर गया के जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक का सरकारी आवास था। जबकी गया जिले के पुलिस अधीक्षक संजय सिंह आपके बैचमेट रहे थे।

पूरे देश व विदेश में कोहराम मच गया, सारे पढ़े लिखे IIT के छात्रों ने सरकार के विरुद्ध बहुत बड़ा आंदोलन शुरू किया। देश ही नहीं विदेश में भी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद हुई। कहा गया कि वाजपेयी सरकार में भ्रष्टाचारियों पर नियंत्रण नहीं है। सतेंद्र दुबे ने सड़क निर्माण में हो रहे अनियमितता पर एक पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखा, जो पत्र लिक हो गया और गुपचुप तरीके से वह माफिया तक पहुंच गया, माफियाओं ने उन्हें हटाने की ठान ली और अंततः अपने एक मित्र की शादी से बनारस से लौटकर वह गया आ रहे थे| सुबह गया स्टेशन से रिक्शा पकड़कर अपने आवास तक जा रहे थे कि गया डीएम के आवास के कुछ ही मीटर की दूरी पर उन्हें गोली मार दी गई। बिहार कि सरकार ने मामला सीबीआई को सौंप दी,जांच हुई और अंततः एक नादान बच्चे पर इसका ठीकरा फोड़ा गया,कहा गया की लूट के कारण उन्हें पर गोली मार दी गई।

बहरहाल सत्येंद्र दुबे जी चले गए लेकिन उनकी ढेरों यादें,मेरे मन-मस्तिष्क में कौंधती है। फिर भी आज 27 नवम्बर है, उन्हें जब भी मैं याद करता हूं, आंखें भर आती हैं। वह कहा करते थे- “पाण्डेय जी में दिल्ली छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा, अभी धनंजय और बहनों के जीवन का सवाल है। ग़ौरतलब हो पाॅच बहनें और दो भाई में सत्येंद्र दूबे जी अविवाहित थे। पिता बागेश्वरी दूबे प्रतिष्ठित किसान के रूप में आज भी गांव में रहते हैं। छोटा भाई धनंजय नौकरी करते है। आपके एक बहन की शादी 2001 बैच के झारखंड कैडर के आईपीएस साकेत सिंह के साथ हुई।

सत्येंद्र दुबे की क्या गलती थी? वे राजमार्ग योजना पर ईमानदारी से अपना काम कर रहे थे। उन्होंने तो बस अपने विभाग में हर स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार और ठेकेदारी में हो रही गड़बड़ियों को लेकर शिकायत भर की थी। पत्र में उन्होंने बताया था कि–

  1. डिजाइन कंसल्टेंट्स ने जो डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट्स तैयार की हैं, वो इतनी ख़राब हैं कि उनके आधार पर काम ही नहीं किया जा सकता है। इसी के आधार पर सारे टेंडर्स अलॉट किए जाते हैं लेकिन ये एक कूड़े की तरह है।
  2. काम के लिए सामान वगैरह खरीदने के कार्यों को बड़े ठेकेदारों ने पूरी तरह से हाईजैक कर के रखा हुआ है। साथ ही ये ठेकेदार अपनी तकनीकी और वित्तीय क्षमताओं के फर्जी डिटेल्स देते हैं और उनके दस्तावेज भी गड़बड़ होते हैं।
  3. चेयरमैन के अप्रूवल वाली नोटशीट भी सार्वजनिक हो जाती है और इन बड़े ठेकेदारों को NHAI के बड़े अधिकारियों द्वारा भी फेवर किया जाता है।
  4. कॉन्ट्रैक्ट का ‘मोबिलाइजेशन एडवांस’ के रूप में प्रोजेक्ट का 10% भाग, अर्थात 40 करोड़ रुपए ठेकदारों को दिए जा चुके हैं और कहा गया है कि ये उनके ‘कुछ सप्ताह के कार्यों का अवॉर्ड’ है।
  5. इस प्रोजेक्ट पर काम के लिए NHAI अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिडिंग करवा रहा है लेकिन जब बात सच्चाई की आती है तो सारे प्रोजेक्ट्स छोटे ठेकेदारों को दिए जा रहे हैं, जो असल में इस काम को करने में सक्षम ही नहीं हैं और न ही वो गुणवत्ता से इसे कर सकते हैं।

जनता के रुपयों की लूट मची  है और योजनाओं को जमीन पर सही तरीके से लागू करने में क्या परेशानियाँ आ रही हैं।साथ ही इसे गोपनीय रखने की अपील भी की थी।  पत्र के साथ अपने सारे डिटेल्स अटैच कर दिए थे और इसे गोपनीय रखने को कहा था,लेकिन ऐसा नहीं हुआ|

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