तीन साल से रोजाना लापता हो रहे 15 से अधिक बच्‍चे,कहां गए 9340 मासूम.

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बच्‍ची से हैवानियत करने वाले को उम्रकैद की सजा

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार में पिछले तीन सालों से रोजाना 15 से अधिक बच्‍चे लापता हो रहे हैं। ऐसा हम नहीं, बिहार पुलिस कह रही है। बिहार पुलिस द्वारा मंगलवार को जारी आंकड़ों पर विश्‍वास करें तो तीन साल के दौरान लापता हुए बच्‍चों में से 9340 कहां गए, इसका अभी तक पता पहीं चल सका है।

तीन सालों में 16559 बच्‍चे लापता, 7219 ही मिले

आंकडों के अनुसार बिहार पुलिस व रेल पुलिस ने तीन सालों के दौरान 16559 बच्‍चों की गुमशुदी की रिपोर्ट दर्ज की। इनमें केवल 7219 ही मिल सके हैं। वे या तो खुद  घर वापस लौटे या पुलिस ने उन्‍हें खोजा। स्‍तब्‍ध करन वाली बात यह सामने आई है कि लापता बच्‍चों में से 9340 का अभी तक पता पहीं चल सका है, जो तीन साल के दौरान लापता बच्‍चों का करीब 55 प्रतिशत है।साल 2021 की बात करें तो 6395 बच्‍चों के लापता होने की रिपेार्ट पुलिस ने दर्ज की। श्‍ह आंकड़ा केवल उन लापता बच्‍चों का है, जो चुलिस फाइलों में दर्ज हैं। इनमें केवल 2838 ही बरामद किए जा सके हैं।

आखिर कहां गए बिहार से लापता 9340 बच्‍चे?

बड़ा सवाल यह है कि आखिर बिहार से लापता 9340 बच्चे कहां हैं? उनके साथ क्‍या हुआ? खास बात यह है कि लापता बच्‍चों में बच्चियों की बड़ी संख्या शामिल है। माना जा रहा है कि इन बच्‍चों में बड़ी संख्‍या देश के बड़े शहरों में बंधुआ या बाल मजदूर बनी हुई है। कुछ घरेलू काम में लगा दिए गए हैं। बच्चियां में अनेक के यौन शोषण के धंधेबाजों के चंगुल में फंसने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

दर्ज मामलों से कई गुना अधिक असली आंकड़े

लापता बच्‍चों के आंकड़े दर्ज मामलों से कई गुना अधिक हो सकते हैं, क्योंकि राज्‍य में सैकड़ों बच्चों के मां-बाप ऐसे भी हैं, जो बिना मामला दर्ज कराए बच्चों के लौटने की आस लगाए बैठे हैं। खासकर अशिक्षित व गरीब मां-बाप के बच्‍चों के मामलों में एफआइआर कम ही दर्ज होती है।

सारन में विशेष न्यायाधीश पाक्सो सह एडीजे षष्टम सुमन कुमार दिवाकर ने रसूलपुर थाना कांड संख्या 50 /19 के पाक्सो वाद संख्या 31 /19 में रसूलपुर थाना के रुजूल सिंह को आजीवन कारावास व अर्थदंड की सजा सुनाई है। पाक्सो एक्ट की धारा के अंतर्गत आजीवन कारावास तथा 25 हजार अर्थ दंड सुनाई गई है। अर्थदंड नहीं देने पर एक माह का साधारण कारावास भुगतना होगा। वहीं दफा 307 के अंतर्गत पांच वर्ष की सजा तथा 25 हजार अर्थदंड की सजा सुनाई है। सभी सजाएं एक साथ चलेंगी।

पट्टीदार ले गया था घर से बच्‍ची को 

रसूलपुर थाना क्षेत्र की महिला ने पीएमसीएच पटना में महिला थाना की पदाधिकारी के समक्ष अपना फर्द बयान दर्ज कराया था। महिला ने बताया कि 28 मार्च 2019 की रात करीब आठ बजे उसके पट्टीदार रुजुल सिंह उसके यहां आया। उनकी बेटी को मछली खिलाने के नाम पर बाहर ले गया। लेकिन काफी देर तक वह वापस नहीं आया। चिंता हुई तो वह रुजुल सिंह के घर गई ताकि बेटी को वहां से ला सके। लेकिन रुजुल सिंह के घर में पता चला कि बच्‍ची तो वहां गई ही नहीं थी। इसके बाद परिवारवालों ने कई जगह तलाश की लेकिन बच्‍ची का कोई पता नहीं चला। रात भर परिवार के लोग अनहोनी की आशंका से सहमे रहे।

सुबह में गांव के लोगों ने शोर मचाया क‍ि बच्‍ची चंवर में अचेत पड़ी हुई है। यह सुनकर वह दौड़ी-भागी पहुंची तो वहां उनकी बेटी अचेत पड़ी थी। उसके तन पर कपड़े नहीं थे। वह घायल भी थी। तब उसे इलाज हेतु एकमा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गई। वहां से पुनः इलाज के लिए पीएमसीएच रेफर कर दिया गया। अभियोजन की ओर से विशेष लोक अभियोजक पाक्सो सह लोक अभियोजक सुरेंद्र नाथ सिंह एवं उनके सहायक अश्वनी कुमार ने न्यायालय में सरकार का पक्ष रखा। डाक्टर तथा अनुसंधानकर्ता समेत कुल सात लोगों की गवाही न्यायालय में कराई गई थी।

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